ख्वाहिशों का समंदर गहरा,
हर लहर में एक सपना ठहरा।
कुछ पूरी, कुछ अधूरी सी,
ज़िंदगी की कश्ती है बस चलती सी।
कभी ऊँची उठती, कभी गिरती,
लहरें उम्मीदों की, कभी संभलती।
किनारे मिलते नहीं हर बार,
फिर भी मन में रहती है पुकार।
मोती चुगने की चाहत में,
गहराइयों में उतरते जाते।
कुछ मिलते, कुछ रह जाते,
फिर भी हिम्मत नहीं हारते।
ये समंदर है अनमोल,
हर बूंद में है कोई बोल।
ख्वाहिशों के इस दरिया में,
हम सब बस बहते जाते।
न जाने कब मिलेगा किनारा,
न जाने कब थमेगा ये नज़ारा।
बस चलते रहना है इस राह पर,
ख्वाहिशों के इस समंदर पर।