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एक समय की बात है। शहर के पास एक कस्बे में एक परिवार रहता था। परिवार में माता पिता और उनका चौदह साल का पुत्र भोला रहता था। भोला पढ़ने लिखने में अव्वल था। और बहुत चुस्त फुर्तीला भी था। जिसके कारण उसे स्कूल की क्रिकेट टीम में भी खेलने का मौका मिलता था। परंतु उस गांव और शहर के बीच एक रेलवे लाइन थी। वैसे तो रेलवे लाइन पर ओवर ब्रिज था परंतु आम जनता जल्दी जाने के चक्कर में रेलवे ट्रैक पर से ही निकल जाती थी। बच्चे भी स्कूल जल्दी जाने के फिराक में कभी ट्रेक पर से तो कभी खड़ी हुई रेल के नीचे से रास्ता पार करते थे। एक दिन की बात है। भोला स्कूल जाने के लिए घर से निकला। रेलवे ट्रैक पर ट्रेन खड़ी थी। भोला ओवर ब्रिज न चढ़कर जल्दी के चक्कर में ट्रेन के नीचे से निकल ही रहा था की अचानक वहा खड़ी रेल चल पड़ी और उसके बस्ते का कोना कही ट्रेन में अटक जाने को वजह से वो दो पटरियों के बीच में फंसा रह गया। अचानक उसका एक पर ट्रेन की पटरी पर आ गया। पूरी तरह से कुचला गया। जब ट्रेन निकली तो भोला का पैर लहूलुहान था और बस उसकी सांसे चल रही थी। आनन फानन में आस पास भीड़ जमा हो गई और भीड़ ने ही उसे पास ही के अस्पताल पहुंचाया। भोला को होश आया तो उसका एक पैर कट चुका था। वह बहुत रोने लगा। तब उसकी मां ने उसकी हिम्मत बढ़ाई।
कुछ दिनों बाद भोला अस्पताल से घर आया और घर के कमरे में अकेला गुमसुम सा रहने लगा। बाहर जाता था। सभी उसकी उम्र के बच्चे उसका मजाक बनाते। लोग उसे लंगड़ा भोला, अपाहिज भोला कहकर बुलाते। उसे बहुत दुख होता। घर आकर वो खूब रोता। उसकी मां ने उसे समझाया की लोगो का काम तो होता ही है कहना तुम ऐसे हिम्मत मत हारो अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बनाओ तुम स्कूल भले ही मत जाओ पर खेलने से भी जी न चुराओ, जो हो गया उसे भूल ही जाओ। आगे अपना खेल में भविष्य बनाओ।
मां के इन वाक्यों से भोला को एक नई ऊर्जा मिली और उसका आत्मविश्वास बढ़ा उसे थोड़ी हिम्मत आई।
अब भोला फिल्ड पर जाकर क्रिकेट खेल रहे खिलाड़ियों को देखता और मन ही मन उनसे कुछ सीखता। एक दिन उसकी मुलाकात वहा के कोच विक्रम सर से हुई। उन्होंने भोला की सारी कहानी सुनी। और भोला ने भी अपनी खेल के प्रति उत्साह के बारे में बताया। कोच विक्रम ने उसे आगे बढ़ाने और आगे पैराओलंपिक में खेलाने की बात कही। भोला की खुशी का ठिकाना न रहा। भोला ने ये बात अपने माता पिता को बताई। वो बहुत प्रसन्न हुए। भोला रोज अभ्यास करने जाने लगा। और देखते ही देखते अपनी मेहनत के दम पर पैरालंपिक में अच्छे प्रदर्शन के लिए उसके खेल को सभी ने सराहा और उसे स्वर्ण पदक के सम्मानित किया। और सरकार द्वारा उसे नौकरी का भी प्रस्ताव दिया गया इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि कभी कभी जीवन में कुछ घटनाएं ऐसी हो जाती है। जो पूरे जीवन को हिला कर रख देती है। परंतु इससे जीवन का अंत नहीं हो जाता। लोग कुछ भी कहे। अपनी मेहनत के दम पर आत्मविश्वास के साथ मुसीबतों का मुकाबला करो। अपनी एक नई राह चुनो उसपर आगे बढ़ते जाओ।