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समान नागरिक संहिता,
मानवता की अमिट छांव।
जन्म की आज़ादी,
अधिकारों की चादर,
सबको मिले वो न्याय का आदर।
हक और अधिकारों का ये महासागर, सबके लिए समान, नहीं है किसी का अनादर।
ना जात, ना धर्म, ना बोली का फ़र्क, एकता की पंथ के लिए बनी ये परम्परा।
समानता की परिभाषा, सबके हो अंतर्मन, प्रत्येक इंसान को मिले समान अधिकार।
जनगणना की बस्ती में, सबका हो सम्मान, ना भेदभाव का नगर, हो एकता का अभिमान।
धर्म, जाति, भाषा की दीवारें तोड़ो, प्रेम का अमृत फैलाओ
समान नागरिक अधिकार मिले सभी को
ऐसा देश बनाओ
एकता की झड़ी फैलाओ, जगत को जगाओ, समान नागरिक संहिता में हम सब एक साथ हैं। यही संदेश जन जन तक फैलाओ ।
सबको मिले वो आज़ादी का सुख, सम्पूर्ण
मानवता हो खुशहाल और समृद्ध।
एक देश, समान अधिकार, एक संविधान हो हमारा ।

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