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सुकून कहीं बिकता नही दुकानों में ,
ये छिपा रहता दिल के किसी कोने में ,
भाग-दौड़ में खो जाते हैं इसके निशान,
फिर भी इसके बिना हर कोई है परेशान।
न शोर-शराबे में इसे ढूंढ पाओगे,
न ऊंचे मकानों में इसे बुला लाओगे।
सुकून तो है उस मुस्कान में,
जो अपनों की खुशी से खिल जाती है।
कभी किताबों की पुरानी खुशबू में,
कभी बचपन की उन मीठी बातों में।
कभी मां के हाथों के पकवान में,
कभी बारिश की पहली बूंदों में।
सुकून को महसूस करो, खोजो मत,
ये अंदर है, इसे बाहर में देखो मत।
जब जीवन से शिकायतें कम हो जाएं,
तब समझो, सुकून की राह मिल जाए।

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