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माथे पर पड़ी सलवटे, आंखों का धुंधलापन
ये मंजर देख घबराता है।
व्याकुल है मन देख ये दृश्य , कोई कैसे अपने माता पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ चला जाता है।
कितनी मेहनत कर हम उन्हे पढ़ाते है। उन्हे काबिल बनाते है
वो हो संतान थोड़े से पैसे कमाने की खातिर हमे यहा छोड़ जाते है।
वृद्धावस्था एक अमिशाप है हमारे लिए
क्युकी दुर्सो पर निर्भर हो जाते है। जो जमा की थी पूंजी वो अपनों को दे जाते है।
इस अवस्था में बीमारी के कारण अपने आपको असहाय पाते है।
हमे चाहिए प्यार और परिवार बच्चो से है बस इतनी दरकार
हम तो पके फल है डाली से कभी भी टूट जायेंगे।
बस यही संदेश देकर जायेंगे, समझो इस बात को बुढ़ापा तुम्हे भी आना है।
अगर छोड़ा तुमने हमे वृद्धाआश्रम में कल तुम्हे भी जाना है।
बूडापे में हमे न इतना रुलाओ
घर में ही रखो किसी कौने में
पर वृद्धाआश्रम न भिजवाओ।
अगर बचाना है हमारी संस्कृति को तो वृद्धाश्रम को हटाना है।
पाना है यदि सुख सच्चा तो माता पिता की सेवा में जीवन बिताना है।
माता पिता है अनमोल, एक बार जाते तो नही आते।
इस दरवाजे के पीछे से इन बूढ़ी आंखो ने जो देखा वो मैने बताया।
निर्णय आपको करना है कितना और क्या समझ आया?

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