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क्या हुआ,
आपने भरोसा ही तो तोड़ा है,
धड़कते दिल को ही तो मरोड़ा है
विश्वास का अंतिम संस्कार ही तो किया है,
हृदय के अस्तित्व पर
प्रहार ही तो किया है,।
सहजता के साथ,
हमें अश्रुधार में ही तो
धकेला है,
अग्नि ज्वाला में दहकने
के लिए ही तो छला है।
थोड़ा विचार भी नहीं किया
जिसने प्यार किया
उसे ही दुत्कार दिया।
कारण भी आपने नहीं बताया।
आप के होंठ अब क्यों सिले हैं,
शायद आप के हृदय रक्त में
विष भी मिले हैं।
आप के हृदय में न वेदना है
न मस्तिष्क में चेतना है।
कोई बात नही,
जबतक आप के उत्तर
नहीं आते,
हम यूं ही जी लेंगे
बहते नयन रक्त को
यूं ही पी लेंगे,
कभी तो आप की संवेदना जगेगी,
कुछ तो आप हमसे बोलेंगे,
शायद हम उसी दिन
चैन से सो लेंगे।

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