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पूर्वी उत्तर प्रदेश कभी जाना नहीं हुआ था. लम्बे समय से विचार भी था. इस बार बच्चों का मन भी बना और हम लोग निकल पड़े ट्रेन में वापसी का टिकट तो कन्फर्म हो गया मगर जाने के टिकट नहीं मिले जयपुर से सीधी हवाई सेवा बंद. दिल्ली होकर जाना पड़ा टर्मिनल बदलने में ही पसीना निकल गया इलेक्ट्रिक कार्ट ढूंढते रहने के बजाय चल पड़े. अयोध्या का हवाई अड्डा अभी प्रारम्भिक चरण में है लेकिन रामायण के पात्रों के चित्र ठीक ठाक है. ऑटो टेक्सी वालों का व्यवहार सर्वत्र एक जैसा है. भाव ताव करना पड़ता है.ठहरने की जगह दूर दर्शनपुर में मिली. शाम को पास के सूरज कुंड में लेजर शो देखा भारत माँ के चित्र की झांकी भी थी दीपकों की रौशनी भी थी. प्रवचन भी थे लेकिन थकान के कारण हम होटल आ गए गरम गरम दाल रोटी का आनंद लिया सो गए.

सुबह एक ऑटो वाले को राम मंदिर व अन्य स्थानों को घुमाने के लिए बुक करा और चल दिए, अयोध्या पर ढेरों पुस्तकें हैं. पुराणों में इसका एक नाम साकेत भी दिया गया है. सूर्य वंशी राजाओं के राज्य कौशल राज्य की राजधानी रहीं है यह नगरी रघु,राम भागीरथ जैसे राजाओं ने यहाँ राज किया है पाञ्च जैन तीर्थंकरों ने यहाँ जन्म लिया और शिखरजी में मोक्ष लिया. अयोध्या के जिस वैभव का वर्णन वाल्मीकि रामायण में किया गया है वो दूर दूर तक नहीं है. आसपास के गांवों में गरीबी, बीमारी और बेकारी है खेती पशुपालन का ही सहारा है.

फैजा बाद का नाम भी राजस्व रिकार्ड में था. लेकिन सबसे पहले जैन मंदिर गए जैन मंदिर तक भारी भीड़ के कारन पैदल ही जाना पड़ता है मंदिर के आसपास काफी जगह है, धर्मशाला और भोजन शाला है. नास्ता किया दर्शन भी किये और राम मंदिर की और रुख किया पुलिस का भारी बंदोबस्त ठाठे मारता जन समुद्र हिम्मत जवाब देने लगी मगर राम का नाम लेकर भीड़ के रेले में घुस गए तीन घंटे के बाद प्रभु राम के दर्शन कर प्रसाद लेकर बाहर आये तो मन को असीम शांति मिली घर परिवार के स्वास्थ्य ,सुख शांति की कामना की, दन्त धावन कुंड हनुमान गढ़ी के दर्शन कर आये. 

अभी मंदिर बन रहा है, डॉम लगा कर दर्शन व्यवस्था की गयी है. प्रबंधन में भारी सुधार की जरूरत है... पुलिस सर्वत्र एक जैसी है राज्यपाल के आने से सभी को खदेड़ दिया गया यह वी.आइ.पी संस्कृति बंद होनी चाहिए अफसर, पुलिस वाले नेता सभी बड़े लोगों को भी सामान्य दर्शन करने चाहिए. पंडों पुजरिओं की दादागिरी पर रोक होनी चाहिए जल्दी दर्शन के नाम पर लूट है इसे रोकने के प्रयास जरूरी है. हमारे ऑटो वाले को पुलिस ने खदेड़ दिया था उसे ढूंढना पड़ा लेकिन मिल गया.

भरत कुंड गए सरयू के तट पर आचमन किया यही गुप्तार घाट है यहीं राम ने व लक्ष्मण ने जल समाधी ली थी. दशरथ भवन व सीता का मायका कहे जाने वाले स्थल तक गए. वही जनक आये थे ऐसी मान्यता है.

इस शहर कोअब रोज़गार मिलने लगा है.कृषि विश्वविध्यालय है एक आंबेडकर यूनिवर्सिटी भी है. जल्दी ही यहाँ पर बड़े होटल माल रिसोर्ट हो जायेंगे ओर एक पवित्र धर्मिल स्थल टूरिस्ट स्पॉट बन जायगा शायद यही नियति है यही विकास है यही प्रभु इच्छा है.

दूसरे दिन सुबह 155किलो मीटर दूर प्रयाग के लिए बस से निकले लेकिन आप भी निजी बस चालकों से सावधान रहे, बड़ी मुश्किल से रोडवेज की बस से तीर्थराज प्रयाग पहुंचे. इस बार होटल गंगा किनारे था मगर जिस रास्ते से वो ले गया उस में भयंकर खड्डे, जुग्गी झोपड़ियाँ कबाड़ी वालों के गौदाम कई बार ऑटो उलटते उलटते बचा. लेकिन हम सुरक्षित पहुँच गए. शाम को गंगा नहाये यही पर जल पुलिस से वास्ता पड़ा एक अधिकारी ने सभी नावों को गंगा से वापस बुला लिया .पास के उथले जल में स्नान हुआ, गंगा आरती भी हुई देखी मन में गंगा यमुना सरस्वती को नमन किया २०२५ के कुम्भ की तेयारी शुरू हो चुकी है.

प्रयाग के त्रिवेणी संगम तक गए आनंद आया .यही आनंद भवन और चन्द्र शेखर आज़ाद पार्क है. यही कही धर्मवीर भारती व अन्य प्रसिद्द हिंदी लेखक हुए. इलाहबाद विश्व विद्ध्यालय तो प्रसिद्द हैं ही. सरस्वती घाट पर बैठे. गंगा की लहरें जीवन देती है जीवन और मोक्ष बस यही है मानवता का सार. बाज़ार में खाने के बजाय होटल में दाल रोटी बनवाना ठीक लगा .चुनाव का कही कुछ असर नहीं दिखा. 

सुबह 120किलो मीटर दूर बनारस याने वाराणसी याने काशी चल दिए. काशी के बिना मुक्ति कहाँ. बोद्ध जैन और हिन्दू सनातन धर्म की त्रिवेणी याने बाबा भोले नाथ की नगरी मणिकर्णिका घाट राजा हरिश्चन्द्र घाट की काशी. मरनात कास्यात मुक्ति शायद यही उक्ति है. एलिज़ाबेथ भी यहाँ आई थी वर्तमान प्रधान मंत्री दस साल से यहाँ से सांसद है.शहर सुन्दर है लेकिन सफाई व्यवस्था लचर है बाजारों में भयंकर भीड़ है लेकिन इस पवित्र शहर को होटल से नहीं घाटों से समझा जाना चाहिए हर घाट पर भयंकर भीड़. अश्वमेध घाट हो या मणिकर्णिका सब का अपना महत्त्व... कहा भी है –

रांड सांड सीढि सन्यासी,
इनसे बचे तो सेवे कासी.

लेकिन अब सांड गायब है ,सन्यासियों को आश्रमों में जगह मिल जाती है. नगर वधुओं ने ताम जाम समेट लिए है.

संगीत, नृत्य, गायन वादन के घराने आखरी सांसें गिन रहे हैं. संकट मोचन हनुमन मंदिर मे सो साल से एक समरोह चलता है. साहित्य का जो माहोल बंगाल से चल कर आया था वो चला गया इलाहबाद याने प्रयाग राज फिर दिल्ली लखनऊ पटना जयपुर, कुशवाहा कान्त की हत्या के बाद माहोल समाप्त भया.

एक अन्य लेखक ने लिखा है - चली कुल बोरन गंगा नहाय के. शरद जोशी ने लिखा –जिनके हम मामा है. काशी का आम आदमी मन की तरंग में रहता है. 

इस बार गंगा किनारे के होटल में ही जगह मिल गयी.

शाम को घाटों के अवलोकन के लिए निकल पड़े नाव ली दूसरे किनारे पर जाकर नहाये माँ गंगा को प्रणाम किया सभी घाटों तक की यात्रा नाव से ही हो पायी. अद्भुत नज़ारा मणिकर्णिका घाट जहा पर हर समय जीवन की नश्वरता का बोध होता है हरिश्चंद्र घाट तो सत्य का प्रमाण है. गंगा आरती का आनंद. नाव में बैठ कर भी लिया जा सकता है हमने घाट पर खड़े होकर लिया. बाबा विश्वनाथ के दर्शन. बहुत भीड़ मगर मंदिर में व्यवस्था माकूल. यहाँ भी वि आई पी और उनके मिलने वाले आगे आगे बाकि की जनता पीछे यह व्यवस्था बदलनी चहिये, लोकर से सामन लेने में कुछ परेशानी हुई पास की गलियों में भी खूब घूमे. कबीर की गादी देखि कबीर चोरा भी देखा कबीर रोड से भी आना जाना हुआ. भारतेंदु नाट्यशालाअभी भी चलती है. भारतेंदु के घर तक नहीं जा सके .प्रेमचंद का गाँव लमही भी पास में ही है.शहर में खाने पीने के कई ठोर है एक लस्सी वाला बहुत प्रसिद्द है .बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के पास से भी गुजरे. बनारस को जीने और समझने के लिए कई जन्म चाहिए ,घाटों का पौराणिक महात्म्य खूब लिखा गया है. बनारसी पान और बनारसी भाषा भी खुश कर देती है ,काशी का अस्सी पढ़ा था सो मज़ा आया. शहर को सफाई की सख्त जरूरत है हजारों पंडों से बचना भी जरूरी है घाटों के आसपास खाने की व्यवस्था अच्छी नहीं है बाज़ार तो चांदनी चौक से ज्यादा भीड़ भाड वाले है साड़ियों की दुकाने ही दुकाने, हे भगवान पति कैसे बचे ? कोई नुस्खा निकाला जाना चाहिए.

बनारस के आम आदमी की स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं दिखा, भदोही के कालीन गलीचा बिकते कम दिखते ज्यादा,आधी रात तक बाज़ार में चक्कर काटे तो कुछ बात बनी. घाट के पास के एक रेस्तरा में खाया और होटल आ गये .गरिबों के लिए कई स्थान है जहा रहने खाने की व्यवस्था है वहीं रह कर आदमी अपने अवसान का इंतज़ार कर सकता है, कई बार खूब समय लग जाता है.लेकिन काशी तो बस काशी है. बंगला भाषा संस्कृति का भी प्रभाव है ,अयोध्या की तुलना में यहाँ का मानुस थोडा रुखा और मस्त मौला है.

बड़े बंगले बड़े लोग बड़ी कारें और संकुचित मन .यही है जीवन और जीवन की नश्वरता का प्रमाण.

सुबह उठ कर विन्ध्य वासनी माँ के दर्शन के लिए बड़े बेटे ने टेक्सी कर ली सो चल पड़े. रास्ते में खेत थे आम के पेड़ थे हरयाली कम पानी की कमी आम भारतीय गांवों जैसी ही हालत. रास्ते सड़कें ज्यादा ठीक नहीं काम चल रहा है, सड़कों को चोड़ा करने के लिए दोनों तरफ के मकान दुकान तोड़ दिए गए मुआवजा मिला मगर जमीन चली गई ‘लगभग 70 किलो मीटर पर माँ का मंदिर नव रात्र के कारण भारी भीड़, लेकिन दर्शन हो गए, माँ वैष्णों देवी के बाद सबसे बड़ा मंदिर. कई बड़े नेता और अफसर यहाँ ढोक लगते हैं मगर वि आई पी कल्चर यहाँ भी हावी. बाद में अष्ट भुजा मंदिर भी गए. वापसी हुई, फिर बनारस फिर फिर काशी घाट पे आरती आस्था, श्रद्धा, निष्ठा का अभूतपूर्व संगम. व्यक्ति खुद भी आरती कर सकता है. पत्नी की फरमाइश पर साड़ियों की दुकान में गए टेक्सी वाला इस बार सीधा दुकान में घुसा कर खाना खाने के नाम पर चला गया. सेल्स मेन भयंकर शालीन मीठा जैसे अमृत लेकिन बिल देख कर मन खट्टा हो गया खूब बारगेनिंग के बाद सौदा हुआ. सौदे के बाद हम कार तक पहुंचे तब तक सेल्स मेन चाय की दुकान पर था, हमें पहचानने से भी इनकार .उसका धंधा हो चुका था.

होटल में आये सुबह फिर अयोध्या के लिए बस ली फिर रास्ते में प्रयाग, फिर अयोध्या से ट्रेन से जयपुर लेकिन ट्रेन लेट थी प्लेटफार्म पर भीड़ अव्यवस्था हो गयी डिब्बों के नंबर सही नहीं थे गलत डिब्बे में घुसे फिर सही जगह पहुंचे इस चक्कर में चप्पल कहीं छूट गयी मगर अयोध्या धाम का स्टेशन शानदार भोजन व्यवस्था भी अच्छी और किफायती. 

यात्रा सुखदायनी रही... कुछ थके जरूर मगर मन की साध पूरी हुई. 

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