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मादक चीजों में आजकल नशीली दवाओं का नशा सभी प्रकार के लोगों में बढ़ता चला जा रहा है। नशीली दवाओं की बढ़ती लत पूरी पीढ़ी को समाप्त कर रही है। यह स्थिति आने वाली पीढ़ी के सामाजिक और वैयक्तिक स्वास्थ्य के लिए बडी गंभीर चुनौती है। नई पीढी नशीली दवाओं की ओर बढी तेजी से आकर्षित हो रही है। एक पूरी पीढी नशे के गर्त में डूब रही है। आइये, इसकी पडताल करें।

मादक द्रव्यों का प्रयोग एवं नशे की बढ़ती लत आजकल गंभीर चिन्ता का विषय है। आज की यह स्थिति आने वाली पीढी के लिए सामाजिक व्यवस्था में साम्य, और सामाजिक एवं वैयक्तिक स्वास्थ्य के लिये प्रश्नवाचक बन जायेगी।

प्राचीन भारत में सोमरस का प्रयोग किया जाता था। जो ऋिषिमुनि युगदृष्टा होते थे उनके द्वारा इष्ट सिद्धि के क्रम में व्यवधान न हो, इस उद्देश्य से चित्तवृत्ति निरोध के लिये सोमपान प्रचलित रहा।

मध्य युग में स्वस्थ जीवन के लिये मादक द्रव्यों का सेवन किया जाता था। उन्हंे सामाजिक आवश्यकता समझा जाता था। प्रायः उच्च अभिजात्य वर्ग इनका उपयोग अधिक करते थे। प्रारंभ से ही हमारे समाज में वर्ण व्यवस्था के अनुसार ही विभिन्न वर्णाें के रीति रिवाज, आहार, व्यवहार, वस्त्राभूषण तथा व्यवसायादि निर्धारित रहे है। आज भी मादक द्रव्यों के प्रयोग का संबंध, धर्म, जाति, क्षेत्र, अथवा वर्ग समूह में देखने को मिलता है। कुछ वर्णों में मद्यपान परम्परा रही है। किन्तु आज के युग मे मद्यपान पर उनका आधिपत्य नहीं रहा है। अब तो कुछ वर्ण, धर्म अथवा जाति विशेष, समय-समय पर इन मादक द्रव्यों का प्रयोग समूह में अथवा व्यक्तिशः करते है। यथा होली-दीपावली के अवसर पर भांग, गांजा आदि सामान्यतया व्यवहृत होते है। आतिथ्य स्वरूप भी इनका व्यवहार विवाह जन्मोत्सवादि अन्य सामाजिक एवं पारिवारिक उत्सवों पर वर्ग विशेष में अभिजात्य वर्ग में सम्पन्नता के कारण मादक द्रव्य प्रायः प्रयुक्त होते है। ग्रामीण श्रमिक वर्ग भी इससे अछूता नहीं रहा है। शहरी जीवन में सामाजिक नियंत्रण एवं सामुदायिकता का अभाव होने से घर से बाहर, व्यक्ति मादक द्रव्यों के सेवन के लिये मुक्त रहता है। मध्य वर्ग के लोग प्रायः धूम्रपान करते है। यदा कदा मद्यपान भी। उच्च, मध्यवर्ग और उच्च अभिजात्य वर्ग मद्यपान करते है।

राहत की तलाश:-

शहरी परिवेश में अन्य भी कारण हैं जिनसे व्यक्ति में अलगाव, नैराश्य, नीरसता, क्षोभ तथा भटकाव उत्पन्न होता है। अस्तु इनसे तथाकथित सहत पाने हेतु शहरी व्यक्ति, मादक द्रव्यों के प्रयोग की ओर आकर्षित होता है। युवावर्ग समाज का महत्वपूर्ण अंग है एवं उपयुक्त वर्णित सामाजिक परिस्थितियों एवं उनके परिणामों से विशेषतः प्रभावित होने से मादक द्रव्यों के सामान्य प्रयोग से समान रूपेण प्रभावित है, तथा उपयुक्त अवसरों में प्रायः मादक द्रव्यों के प्रयोग से अछूता नहीं रहा है। इन मादक द्रव्यों के प्रयोग की ओर युवा वर्ग की आनुशंगिक प्रवृत्ति है।

इसके अतिरिक्त अन्य भी विभिन्न परिस्थितियां, पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव अथवा अंधानुकरण सामाजिक तथा पारिवारिक विघटन अथवा बदलाव के कारण उत्पन्न हुई है। जिनके कारण युवा वर्ग मादक द्रव्यों के प्रयोग की ओर यहां तक की अफीम, चरस, एल.एस.डीए., स्मैक तथा विभिन्न टेंकुलाइजर्स के प्रयोग की ओर आकर्षित होता है। परिणामस्वरूप ज्ञात अज्ञातरूपेण मादक द्रव्यों के यह अनुरिक्त विशेषकर युवा वर्ग में, प्रधानरूपेण तथाकथित विश्वविद्यालय संस्कृति के प्रभाव के परिणाम स्वरूप बढ़ी है। महानगरीय उच्च शिक्षण-संस्थाओं के तदर्थ किये गये सर्वेक्षण से जो तथ्य ज्ञात हुये है, उनमें इन मादक द्रव्यों के सेवन की युवावर्ग की बढ़ती प्रवृत्ति का द्योतक होता है।

राजकीय लोभ:-

वास्तविकता तो यह है कि मादक द्रव्यों का उत्पादन एवं विक्रय राजकीय राजस्व प्राप्ति का सशक्त साधन बनता जा रहा है। जिसके मोह से शासन मुक्त नहीं हो पा रहे है। मादक द्रव्यों का बढ़ता उत्पादन एवं व्यापार शासन उद्यमियों, देशविद्रोहियों तथा कूटनीतिज्ञों के लिये लाभकारी हो सकता है, किन्तु युवा वर्ग के मादक द्रव्य के प्रयोग के प्रति आकर्षण एवं परिणाम स्वरूप अनुरक्ति युवा मानस तथा भावी पीढ़ी को जिस रूप से प्रभावित कर रहा है तथा उसके परिणाम स्वरूप जो विभिन्न समस्याएं हमारे सामने आ रही है वह शासन एवं समाज को नवीन नशानीति के विषयों में पुनः विचार की अपेक्षा करती है। सोवियत संघ में इन दिनों सरकार युवा विरोध के बावजूद शराब नियंत्रण कर रही है।

युवा वर्ग की मादक द्रव्यों के प्रयोग से अनुरक्ति के लिए संचार एवं प्रचार माध्यमों की भी अपनी अहम भूमिका रही है। पाश्चात्य देशों के साथ आवागमन बढ़ जाने, व्यावसायिक संपर्क तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान इसी प्रकार विभिन्न पाश्चात्य चलचित्रों एवं दूरदर्शन द्वारा मादक द्रव्यों प्रयोग के जो दृश्य प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर प्रदर्शित किये जाते हैं, उनसें भी युवा वर्ग के मानस पर मादक द्रव्यों के प्रयोग में अनुरक्ति बढ़ाने वाला प्रभाव पड़ता है अर्थात् मादक द्रव्यों के प्रयोग के प्रति युवा वर्ग की अनुरक्ति बढ़ती है। विभिन्न पत्र-पत्रिकायें प्रचार पोस्टर एवं पाश्चात्य चलचित्र तथा दूरदर्शन के प्रर्दशन से, युवावर्ग पाश्चात्य संस्कृति एवं जीवन पद्धति का अंधानुकरण अथवा अपनाने को प्रवृत होता है, युवा वर्ग की यह मानसिकता मादक द्रव्यों के प्रयोग में अनुरक्ति बढ़ाने में सहायक है। चलचित्र दूरदर्शन के डाक्यूमेंट्री, विज्ञापनों में मादक द्रव्यों के व्यावसायिक प्रचार हेतु जनाकर्षक तौर पर प्रदर्शन एवं इन द्रव्यों के व्यावसायिक प्रचार पोस्टर भी युवावर्ग में मादक द्रव्यों के प्रयोग के प्रति अनुरक्ति बढ़ने में सहायक है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिये तीसरी दुनिया लाभकारी बाजार है। इनके द्वारा उत्पादित सिगरेट एवं शराब का विगत दशकों में तीसरी दुनिया में व्यापक प्रचार प्रसार हुआ है। जिसके दुष्परिणाम छिपे नहीं है।

युवा अनुरक्ति के कारण:-

मादक द्रव्यों के प्रयोग के प्रति अनुरक्ति में मुख्य कारण आज के युवा वर्ग की मानसिकता है। युवावर्ग प्रारंम्भ में यह जानने के लिये मादक द्रव्यों का प्रयोग करता है- कि प्रयोग करके देखते है, क्या होता है। महज जिज्ञासावश यह चलने लगता है। एक नया अनुभव होता है। फिर मौजमस्ती के लिये प्रयुक्त करते है। अधिकांश बाद में छोड़ देते है। अथवा यौवन की दहलीज पर कदम रखने में होने वाले विभिन्न शारीरिक तथा मानसिक परिवर्तनों तथा इसी क्रम में स्कूली एवं ग्रामीण परिवेश से, विश्वविद्यालय माहौल के खुलेपन में आने के परिणाम स्वरूप तथा इसी जीवन में सर्वथा नए एवं अछूते मोड़ पर उत्पन्न अपने साहस को मादक द्रव्यों के प्रयोग के माध्यम से युवा वर्ग अभिव्यक्त करता है। शुरूआत में प्रायःमित्रों के प्रभाव से, मजबूरन, औपचारिक शिष्टाचार के तहत अर्थात् अशिष्ट न लगे, अथवा पिछड़ा न समझ लें, इस हीन भावना के कारण मित्रों के साथ अथवा विशिष्ट सामाजिक एवं पारिवारिक अवसरों पर परिजनों के साथ मादक द्रव्यों का प्रयोग करना पड़ता है। पश्चात यह युवा वर्ग इन मादक द्रव्यों का सेवन अपने अत्याधिक आत्मविश्वास के कारण, यह जानते हुए भी कि मादक द्रव्यों के परिणामस्वरूप इनके प्रति अनुरक्ति बढ़गी एवं कालान्तर में पूर्णतः अनुरक्त हो जाने पर इनके प्रयोग से छुटकारा पाना दुष्कर है, फिर भी एक अथवा अध्कि मादक द्रव्यों का प्रयोग एक बार या कई बार कर लेते हैं, एवं पूर्णतः अनुरक्त भी नहीं होते हैं।

संभ्रात युवा पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने की स्थिति में यह शिक्षा के परिणाम स्वरूप डेटिंग करता है। इस क्रम में आपसी झिझक मिटाने के लिए मादक पदार्थो के प्रयोग के प्रति वह अनुरक्त होता है। बदलते परिवेश में भारतीय परम्परा एवं सामाजिक व पारिवारिक बदलाव के कारण, सामुदायिकता एवं सामाजिक नियंत्रण का अभाव तथा विघटित होकर छोटे होते परिवारों से युवा वर्ग के सम्मुख विभिन्न नवीन समस्यायें उत्पन्न हुई हैं। इन समस्याओं से संघर्ष करने के लिये, अथवा समस्याओं से मुक्ति या बचाव के लियें भी मादक द्रव्यों के प्रयोग के प्रति युवा जन आकर्षित होते है।

महाविद्यालयों में अध्ययनरत युवावर्ग अच्छे अंक अर्जित करने, अध्ययन में एकाग्रचित होने, देर रात तक जागने तथा स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिये भी मादक द्रव्यों के प्रयोग की ओर प्रवृत्ति होते है। वर्तमान शिक्षा पद्धति की एकरसता सर्वाधिक खटकने वाली है। इसे धैर्य के साथ निर्वाह करने के लिये युवा पीढ़ी मादक द्रव्यों का प्रयोग करती है। प्राचीन काल में भी ज्ञान प्राप्ति के लिए साधना के क्रम में एकरसता को धैर्य के साथ निर्वाह करने के लिये, (ऋषि महर्षि) मादक द्रव्यों का सेवन करते थे।

अव्यावहारिक शिक्षा पद्धति के कारण व्याप्त निराशा एवं व्यापक बेरोजगारी की वजह से, अर्थात् उच्चतम अर्हता प्राप्त कर लेने पर भी रोजगार का अभाव अथवा योग्यता के अनुरूप स्तर से निम्न रोजगार मिलने पर या व्यावहारिक शिक्षा प्राप्त के विपरीत रोजगार मिलने पर पनपी नैराश्य भावना, (मानसिकता) के कारण भी युवा वर्ग मादक द्रव्यों के प्रयोग में अनुरक्त होता हैं पारिवारिक विघटन के परिणाम स्वरूप अध्ययन हेतु छात्रावास वैसे भी मादक द्रव्यों के गढ़ होते है। अर्थात् वे द्रव्य वहां सुलभ होते हैं यह समाज कण्टकों का वह वर्ग विशेष है जो मुफ्त इन मादक द्रव्यों के वितरण से शुरूआत करता हैं एवं इनके प्रयोग में व्यक्ति जब अनुरक्त हो जाता है, तो इन्हें अच्छी खासी आय का साधन बना लिया जाता हैं एवं कई बार पैसा बटोरने की अंधी दौड़ में चिकित्सक वर्ग भी शरीक होता है।

युवा वर्ग, सांस्कृतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक क्रांति के परिणामतःसामाजिक वर्जनाओं एवं मर्यादाओं को पूर्णतः ध्वस्त कर देने तथा युवा छात्रायें भी तथाकथित नारी मुक्ति अर्थात् पुरूष आधिपत्य से मुक्ति अथवा माता-पिता के नियंत्रण से मुक्ति हेतु विद्रोह के लिए मादक द्रव्यों के प्रयोग की ओर अनुरक्ति होती है।

यदा-कदा अध्ययन में फिसड्डी एवं माता-पिता के अत्यधिक नियंत्रण से त्रस्त एवं विरोध स्वरूप घर से भागे, युवा वर्ग में भी मादक द्रव्यों के प्रयोग में अनुरक्ति देखने को मिलती है। विगत दशकों में स्थिति बडी तेजी से बदली है। अब विश्वविद्यालय में जाने वाली युवतियां फैशन के नाम पर मादक द्रव्यों को (ड्रग्स) लेने लग गई हैं। युवकों के प्रयोग में अनुरक्ति का वर्ग (ड्रग एडिक्शन सोसायटी) क्रेज बन कर उभरा है। गांजा, अफीम, एल.एस.डी. आदि का प्रभुत प्रयोग पिछले दशक में युवतियों में होने लगा है। छात्राओं का एक बडा तबका मनोवैज्ञानिक तथा मानसिक कारणों से नशे से जुडा हैं तथा यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि छात्रायें छात्रों की तुलना में टेंªक्विलाइजर्स का ज्यादा प्रयोग करती है।

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