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ये कहानी है एक अलबेली सी लड़की की , जिसने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ देखा और सहा । पर फिर भी हिम्मत ना हार कर चेहरे पर मुस्कुराहट रखकर उसने अपनी जिंदगी में सफल होने का प्रण लिया । यह कहानी हमें बड़ा कुछ सिखाएगी और यह कहानी शुरू होती है अलबेली के जन्म से.........

ओ हो लड़की हो गई !!!

28 अगस्त 1998 की शाम थी , घर के सारे मर्द खेतों में टयूबल के बोर का काम कर रहे थे कि घर से खबर आई मुबारक हो बेटी हुई है और यहाँ से शुरू होती है अलवेली की कहानी । माँ और पिता को छोड़कर घर में कोई खास खुश नहीं था ।अलबेली के पिता तो सबको खुशी से बता रहे थे कि घर में लक्षमी आई है। पर उधर अलबेली के चाचा बोल रहे थे हुह!! लड़की आ गई घर में । अलबेली अपने पिता की दूसरी संतान थी । उसका एक बड़ा भाई था । आखिर क्यों लड़के पैदा होने पर जयादा खुशी मनाई जाती हैं और लड़की होने पर नहीं???

अलबेली का नाम रखा गया । उसके पिता ने उसे नाम दिया - रजनीश अर्थात चांद । समय बीता रजनीश बड़ी हुई। जब वह 3 साल की हुई उसके छोटे भाई ने जन्म लिया। अलबेली बड़ी बहन बन के बहुत खुश थी । वह अपने दोनों भाईयों से बहुत प्यार करती । जब उसका बड़ा भाई स्कूल जाता तो वह बहुत रोती । भाई मैं भी जाउंगी स्कूल और वही दरवाजे पर रोते रोते सो जाती और भाई के घर आने वाले समय पर दरवाजे पर खडी़ हो कर इतजार करती । उसका भाई दौड़ के घर आता और अपनी बहन को गले लगा लेता। बडा़ पयारा सा था ये भाई बहन का पयार ।

हाँ तो फिर घर जमाई रख लेना!!!!

अलबेली अब स्कूल जाने लगी । उसकी पहली गुरु बनी उसकी माँ, जिसने उसे ऊगलीं पर पहाडे गिन कर लिखने सिखाये। जयादा पढी़ लिखी न होते हुए भी वह अपनी बच्ची को थोड़ा बहुत पढ़ाया करती थी। जब एक दिन अलबेली की मां अलबेली और उसके भाई को बदाम दे रही थी तो, अलबेली की दादी ने आकर उससे कहा यह क्या कर रही हो तो अलबेली की मां ने कहा पढ़ने वाले बच्चों को बादाम जरूरी होते हैं इसलिए इनको बादाम दे रही हूं । अलबेली की दादी ने कहा लड़कियों को कौन बता देता है। अलबेली की मां ने जवाब दिया लड़का लड़की में क्या फर्क है । अगर लड़के को खाने के लिए बादाम दिए जा सकते हैं तो लड़कियों को क्यों नहीं । मैं तो लड़का लड़की में कोई फर्क नहीं समझती। तो अलबेली की दादी ने गुस्से होकर कहा हां तो फिर घर जमाई भी रख लेना इसके लिए । अलबेली की मां ने अपनी सासू मां से कुछ नहीं कहा और अंदर जाकर रोने लगी। आखिर क्यों फर्क समझा जाता है लड़के और लड़की में ???

अपनी मां को भी ले जाना साथ में नाचने के लिए!!!!

दिन बड़ते गए अलबेली बड़ी होती गई अब वह पांचवीं कक्षा में पढ़ती थी । वह पढ़ाई में बहुत अच्छी थी और उसे नाचने का भी बहुत शौक था। स्कूल के एनुअल फंक्शन में वह भाग लेना चाहती थी। उसका नृत्य देखकर अध्यापिका ने भी उसे एनुअल फंक्शन में परफॉर्मेंस के लिए चुन लिया था । जब उसने घर आकर यह बात बताई तो उसकी मां बहुत खुश हुई । उसके मंझले चाचा ने यह बात सुन ली और वह बहुत गुस्सा होने लगे की जरूरत क्या है

लड़कियों को ऐसे में भाग लेने की । अब लड़कियां भी सबके सामने नाचेगी । तो अलबेली ने कहा पर चाचा जी मैं एनुअल फंक्शन में भाग लेना चाहती हूं और मुझे नाचने का भी बहुत शौक है। तो उसके चाचा ने गुस्सा होकर कहा अगर तुमने इतना ही शौक है भाग लेने का तो जाओ अपनी मां को भी ले जाना वहां नाचने के लिए ।आखिर इतनी बंदीशे क्यों ???? अलबेली के कोमल से दिल पर जैसे चोट लग गई हो उसने फिर दोबारा कभी भी भाग लेने को नहीं बोला।

अरे तुम्हारा मुंह तो पंजाबी जूती जैसा है!!!!

अलबेली काफी बड़ी हो गई थी । अब वह दसवीं कक्षा में थी। अलबेली के निचले दांत बाहर को थे जिसकी वजह से उसकी ठुड्डी बाहर को थी और जैसे जैसे वह बड़ी होती गई उसकी ठुड्डी और लंबी और बाहर को होती गई। एक दिन जब स्कूल से छुट्टी के बाद सभी बच्चे घर जाने के लिए बस में बैठे थे तो अलबेली की कक्षा की सबसे सुंदर लड़की ने कहा अरे रजनीश वैसे तुमसे एक बात कहूं तुम्हारी ठुड्डी देख कर तुम्हारा मुंह पंजाबी जूती जैसा लगता है जैसे पंजाबी जूती कि आगे वाली चोंच बाहर को होती है वैसे ही तुम्हारी ठुड्डी बाहर को है । उस लड़की की यह बात सुनकर अलबेली को बहुत ज्यादा दुख हुआ । घर आते ही उसने खाना नहीं खाया। रात को वह रोती रही अंदर ही अंदर उसने इस बात को दिल पर लगा लिया था । वह चुपचाप रहने लगी किसी से बात नहीं करती थी। उसने अपना चेहरा तक शीशे में देखना बंद कर दिया था । इस बात को 2 महीने हो गए । वह हर रात रोती अपने चेहरे को कोसती रहती है कि आखिर भगवान ने उसे ऐसा चेहरा क्यों दिया। फिर 1 दिन उसकी मां ने उससे पूछा तुम चुप चुप क्यों रहती हो। तो अलबेली ने सारी बात अपनी मां को बताई । तो अलबेली के मां ने कहा अरे पागल तू क्या उस लड़की की बातों में आ गई और तुम्हें पता भी है तुम कितनी सुंदर हो जरा मेरी आंखों से देखो अपने आप को और तुम्हें किसने कहा बाहरी सुंदरता ही सब कुछ होती है। हमारी सुंदरता हमारे कर्मों से होती है, हमारे संस्कारों से होती है और तुम्हें तो भगवान का शुक्र करना चाहिए कि उसने तुम्हें सारे अंग पैर सही सलामत दिए जरा उनकी भी तो देखो जिनके पास आंखें नहीं है जिनके पास पांव नहीं है। भगवान ने तो तुम्हें फिर भी इतना अच्छा बनाया है फिर क्यों ऐसे सोचते हो ।अलबेली को अपनी मां की कही बात समझ आ गई अब उसे पता चल गया कि असल सुंदरता क्या होती है।

तुम पास तो हो गई हो ना!!!!

दसवीं की कक्षा के नतीजे का दिन था । अलबेली के भाई ने नतीजा दखा तो वह बहुत खुश हुआ । उसने अलबेली को बताया कि वह 88 प्रतिशत अंको से पास हुई है ।अलबेली खुश हुए और अपने पिताजी को अपना नतीजा सुनाने के लिए गई। उसने बोला पिताजी आपको पता है आज दसवीं का नतीजा गया है । तो उसके पिता ने से कहा तुम पास तो हो गई हो ना । तो उसने अपने पिता को बड़ी खुशी से कहा अरे पिताजी पास तो क्या मैं तो 88 प्रतिशत अंकों से पास हुई हूं और अपनी कक्षा में तीसरे स्थान पर आई हूं। उसके पिता जी बड़े खुश हुए क्योंकि उनके घर में कोई इतना होशियार नहीं था और न कभी किसी के इतने नंबर नहीं आए थे।

आप चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा!!!!

जब अलबेली 11वीं कक्षा में हुई यह तब की बात थी। इन दिनों घर के कुछ हालात ठीक नहीं थे । जिसकी वजह से अलबेली भी अपनी पढ़ाई में इतना ध्यान नहीं दे पाती थी। अलबेली के तीनों चाचा चाहते थे कि जमीन और घर का बंटवारा कर दिया जाए हम अलग अलग रहना चाहते हैं । अलबेली के पिता को यह बात मंजूर नहीं थी वह अपने भाइयों के साथ मिलजुल कर रहना चाहते थे एक सुखी परिवार की तरह । पर उनके भाई ऐसा नहीं चाहते थे । इसी दुख के चलते अलबेली के पिता सदमे में चले गए। जिसकी वजह से उनकी मानसिक हालत थोड़ी खराब हो गई और थोड़े समय बाद उनके भाइयों ने उन्हें अलग कर दिया । अब अलबेली के घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई क्योंकि उसके पिता की मानसिक हालत भी ठीक नहीं थी और अलबेली और उसके दोनों भाई भी पढ़ते थे । घर में कमाने वाला कोई नहीं था ।अलबेली की माँ रोती रहती अब घर का खर्चा कैसे चलेगा बच्चों की स्कूल की फीस कैसे दे होगी यह सब बातें उनकी चिंता का विषय बनी हुई थी तो अलबेली और उसके भाइयों ने अपनी मां को सांत्वना देते हुए कहा मां चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा । हम सब ठीक कर देंगे । तो अलबेली उसके भाई और उसकी मां मिलकर अपने खेतों में सब्जियों उगाया करते थे और अलबेली का छोटा भाई इन सब्जियों को गांव में बेचा करता था । जो पैसे मिलते उससे घर का खर्चा चल जाया करता था और उसके पिता की दवाई भी आ जाया करती थी । थोड़े समय बाद अलबेली के पिता की हालत में भी सुधार आने लगा पर उनके भाइयों का उनसे दूर होने का गम अंदर ही अंदर उन्हें खा रहा था और वह चुप चुप रहने लगे किसी से बात नहीं करते थे ।

समय बीतता गया अलबेली ने 12वीं की परीक्षा भी अच्छे अंको से पास कर ली। अब उसने कॉलेज के एडमिशन फॉर्म को भरकर उस पर अपने पिताजी के हस्ताक्षर करवा कर उसे कॉलेज में जमा करवा दिया । उसके ठीक 3 दिन बाद अलबेली के पिता की अचानक से मृत्यु हो गई। अलबेली, उसकी मां और उसके भाई सदमे में चले गए। उनकी तो जैसे सारी दुनिया ही उजड़ गई हो । बाप का साया उनके सर से उठ चुका था। रो-रोकर अलबेली और उसकी मां का बुरा हाल हो रखा था। उन्हें समझ नहीं आ रही थी क्या यह असल में उनके साथ हो रहा है या फिर वह कोई बुरा सपना देख रही है। एक पल में उनकी सारी दुनिया उजड़ गई। अब घर की सारी जिम्मेदारी अलबेली के बड़े भाई पर आ गई। उसके भाई ने कॉलेज जाना छोड़ दिया ताकि वह अपने छोटे भाई बहन को पढ़ा सके और अपने घर का खर्चा चला सके। अलबेली का बड़ा भाई एक गायक बनना चाहता था पर उसने अपने सारे सपने अपने भाई बहन के लिए त्याग दिए। अब वह खेती करके अपने भाई बहन की फीस भरता था । रिश्तेदार उसे कहते थे कि क्या पढ़ाना है लड़की को इसकी शादी कर दो । पर अलबेली के भाई ने कहा नहीं मैं अपनी बहन को पढा़ऊंगा और उसे इस काबिल बनाउंगा कि वह अपनी सारी जरूरतें खुद पूरी कर सके उसे अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए किसी के आगे हाथ न फैलाने पडे़ ।

अलबेली के भाई की मेहनत रंग लाई अलबेली एक अच्छी यूनिवर्सिटी में मास्टर्स कर रही है और तीनो भाई बहन की मेहनत की वजह से आज उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी है । इतनी अच्छी तो नहीं जितनी उनके पिताजी के होते हुए होती थी । पर फिर भी उन्होंने इतने बुरे समय में भी हौसला नहीं छोड़ा और बिल्कुल नीचे से शुरू करके अपनी आर्थिक स्थिति को काफी ऊंचा उठाया है । यह उनके माता पिता के संस्कारों का नतीजा है, उनकी परवरिश का नतीजा है कि उनके बच्चे बुरी संगत में नहीं पडे़ और अपनी जिम्मेदारियों को समझा । अलबेली ने भी अपने प्यार से अपनी दादी का दिल जीत लिया अब उसकी दादी उससे बहुत प्यार करती है और अब उसे खुद कहती हैं तू बदाम खाया कर तूने पढ़ना होता है ना तो तू दूध बदाम पिया कर ।

अलबेली की कहानी बताती है कि मुसीबतें कितनी भी बड़ी हो हमें उनका डटकर सामना करना चाहिए । कड़ी मेहनत से हम कोई भी मुकाम हासिल कर सकते हैं और प्यार से हम किसी का भी दिल जीत सकते हैं । अलबेली में कितना कुछ सहा अपनी जिंदगी में। थोड़ा सा रो कर फिर हस दिया करती थी ताकि उसकी मां उसे हंसता हुआ देखकर खुश हो सके ऐसी थी अलबेली। पर कुछ सवाल जेहन में आते हैं कि क्यों लड़का और लड़की में भेदभाव किया जाता है ? क्यों लड़कियों को पढ़ाने से पहले सोचा जाता है ? क्यों लड़कियों की शादी जल्दी कर देनी चाहिए ? ऐसे और भी बहुत सारे सवाल है जो हर लड़की जाना चाहती है कि क्यों वह अपनी मनपसंद का कुछ नहीं कर सकती? 

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