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हिंदी जान हिंदी शान,
हिंदी हमारी है पहचान,
भावना जुड़ी है इससे,
इससे है हमारे भाव,
हिंदी के है लाल हम,
कहलाते हिंद लाल हैं,
गर हिंदी को ही त्याग दें,
तो दुनिया में अनाथ है,
ह्रदय की गहराई से,
ये भाव खींच लाती,
आप बड़ों को छोटों को तुम,
हिंदी हमसे बुलवाती,
विपरीत हिंदी के फिरंगी,
एक लाठी हाँकती,
पूजन बड़ों का छोटू का सम्मान,
इस बात को ना मानती,
हिंदी की तो गालियों में,
एक अजीब चाव है,
जो मजा है चूतिये मैं,
रास्कल में ना वो भाव है।
हिंदी बोलती स्पष्ट,
न रहती है यह साइलेंट,
मातृभाषा है हमारी,
इसी का है यह साइड इफेक्ट,
हिंद में जो हिंदी की,
यह दुर्दशा हुई है आज,
मातृभाषा है हमारी,
इसी का है यह फल साहब,
घर होती शोना लैंग्वेज,
पलकों पर रखते बाबू साहब,
पर मातृभाषा है हमारी,
इसीलिए बटी है आज,
हिंदी के जने हैं हम,
हम हिंदी के गुलाब हैं,
मिट रही दिलों से आज,
अब कांटे बिन गुलाब है,
ना जी सकेंगे यह गुलाब,
जो कांटे ना दे इनका साथ,
थाम लो रे हाथ मां का,
मां से ही गुलाब है,
मां से ही गुलाब है।

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