तुम गई बहुत कुछ बीत गया
कितनों से कितना कुछ छीन गया,
तुम्हे सब खबर मुझे सुननी है
तुम जब नहीं थे उसकी दुखद कहानी है,
नाम लक्ष्मण जैसे कोई भाई है
ना भरत जैसे प्रजा संभाली है,
कपट के तालाब भर गए
और सत्य का मटका खाली है।
हां मंथरा जैसे कई मिलेंगे
फूट डाल चले जाएंगे,
और कैकई के जैसे बातों में आजाएंगे।
सीख गए थे जो पाठ नहीं किसी को वह स्मरण,
कनक के हिरण के लिए यहां हो रहे हैं रोज मरण,
संतुष्टि का भाव अब मुक्त हो गया
सदा जीवन उच्च विचार बस रह गए अब कथन।
अब भी यहां भेदभाव है शबरी का बुरा हाल है
जात पात रूप रंग,
सबके है अंग अंग,
केवट की भी नाव अब खोस ली ना कोई उसके संग।
निसहाय की सहाय में जटायु ने पंख फैलाए थे,
स्त्री के सम्मान में अपने प्राण गवाए थे,
परंतु ना जटायु से वीर रहे
हर क्षण खिचते कितने चीर रहे।
धर्म के पक्ष में विभीषण आए थे
राज पाठ छोड़ नैतिकता का साथ निभाए थे ,
करनी कर्म को भूल गए
कहते है भेदी ने लंका ढाए थे।
अब राम तुम घर आए हो
अब राम राज्य भी लौट आएगा
संग अपने इक नया युग की किरण लाएगा
अब न दशानन जीत पाए , असत्य फिर से सर झुकाए,
अब सीता से अग्नि परीक्षा ना लेना ,
पापी का दंड पीड़ित को ना देना ,
इस युग हो केवल न्याय , ना कोई हो असहाय।
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