आज सुनाने जा रही हूं कहानी उन लड़ाको की
मर मिटी जो देश प्रेम में बनी मिसाल हजारों की
भगत सिंह गांधी नेहरू बोस को सबने जाना था
पर उनके साथ खड़ी वीरांगनाओं को कब किसने पहचाना था
वो लक्ष्मी काली सरस्वती का रूप धर के आई थी
आजादी की लड़ाई में उन्होंने भी आवाज़ उठाई थी

आरंभ करें वहां से जहां स्वतंत्रता प्रेम जन्मी थी
क्योंकि झांसी वाली रानी की बात ही निराली थी
गुलामी ना स्वीकार थी झांसी उनकी जान थी
उस युद्ध के पीछे एक और पहचान थी
झलकारी बाई नाम था उनका बनी परिभाषा जो एक योद्धा की
साहस और निष्ठा कण कण थी उनकी काया की
कर समर्पित खुद को रानी को महफूज़ किया
आजादी के लिए उस रन चंडी ने खुद को बलिदान किया
राजा जहां डर रहे वहां गुहार लगी पटरानी की
गेंडनीलू चेन्नम्मा हजरत जैसे महिलाओं ने परिभाषा दी समरागी की

भारत मां की पीड़ा को एक मां ने ही पहचाना था
अपने लाल की शहीदी पर एक आंसू ना बहाया था
मूलमती का साहस जग में बड़ा ही न्यारा था
एक जवान के बदले उसने दूसरा भी वारा था
यह किस्सा भी था बडे़ अनोखे साहस का, पर अफसोस नाम दे दिया इसको भी लाचारी का

जुनून से भरी हजरा कहां बंदूक से झुकने वाली थी
तिरंगा झुकना पाए इसलिए सीने में तीन गोलियां खाई थी
कदम रुके नहीं नजर झुकी नहीं थी हिम्मत आजादी पाने की
देखो पर अब कहां होती है चर्चा इस कहानी की

दुर्गा ही था नाम जिनका फिर कहां किसी से डरती थी
एचएसआरए हसरा की जो पहली महिला शक्ति थी
भगत सिंह के पलायन को रूपरेखा दे अंजाम दिया
मातृभूमि की सेवा में जमकर जिसने बलिदान किया
फिर क्यों सिर्फ निष्क्रिय सबहस्त उन्हें बताया था
जबकि गरम दल तो उन्होंने भी चलाया था

नेता जी ने खून मांगा वह संपूर्ण समर्पित हो गई
भारतीय सेनानी में अपना भी परचम फेरा गई
वह शेरनी की तरह हथियार उठाकर चल पड़ी
कंधे मिलाएं बेटों के साथ थी बेटीया भी खड़ी
लक्ष्मी सहगल देश प्रेम में इतनी दीवानी थी
लुटा डाली देश के विकास में अपनी पुर्ण जवानी थी

वह घर और बाहर दोनों जगह थी लड़ रही
गुलामी से आजाद का सफर वह भी थी तय कर रही
सत्याग्रह से दांडी यात्रा तक उनके वह साथी थी
पर मोहनदास के आगे कहां कस्तूरबा की कुर्बानी थी

आजादी क्या कुछ सेनानियों से आई थी
या देश के हर नागरिक ने जान लगाई थी
फिर क्यों उनके बलिदानों व वीरता का ज्ञान नहीं होता है
पुरुष प्रधान इस जग में क्यों इनका नाम नहीं होता है
जो हर मैदान में एक प्रेरणा की मूरत है
अरे अपने देश की माटी को कहते ही मां की सूरत है
पर इतिहास के पन्नों में यह वीरांगनाएं गुम है
और आज भी कई इतिहासकारों को इसका बड़ा गम है
अपने इन शब्दों से बस यही गीत सुनाती हूं
खोए हुए उन नामों की मैं फिर से याद जगाती हूं

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