जब से मनुष्य ने सभ्यताओं का निर्माण करके, समाज में रहना शुरू किया है, तब से उपभोक्ता बन कर अपनी जीविका को सुलभ बनाने की असीम दौड़ में शामिल है| जैसे-जैसे सदियां बीती वैसे-वैसे हमारी जीवनशैली, जरूरत, और लेन-देन के तरीकों में भी बदलाव आया, जहां पहले वस्तु विनियम प्रणाली का इस्तेमाल होता था और समय के साथ समझ एवं सोच में प्रगति आई और वस्तु के बदले वस्तु के लेनदेन की प्रणाली का अंत हुआ और वस्तु के बदले पैसे या पैसों के बदले वस्तु खरीदने-बेचने की प्रणाली ने अपनी जगह बनाई, आज के आधुनिक युग में भी यही प्रचलन में है इस प्रकार मनुष्य सभ्यता का निर्माण करने के बाद से ही उपभोक्ता है|
आधुनिक युग में जहां एक तरफ नवीनीकरण का उभार आ रहा था उसके साथ उपभोक्ताओं के संरक्षण का सवाल भी पनप रहा था| अमूमन संपूर्ण विश्व के अधिकतर देशों की सरकारों ने अपने देश के उपभोक्ताओं के अधिकार के संरक्षण के लिए उपयुक्त कदम उठाना शुरू किए, और इसी के समक्ष हमारी भारत सरकार ने भी उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए अत्यंत ठोस कदम उठाए और उनको जनहित में जारी किया|
प्रगति में केवल प्रौद्योगिकी, शिक्षा या स्वास्थ्य के क्षेत्र में आई बल्कि लोगों के द्वारा क्रय-विक्रय के तरीकों में भी आई| इस आधुनिकता के क्रमकाल में ई-कॉमर्स कंपनियों ने भी बढ़ोतरी की और उपभोक्ताओं तक सेवाएं पहुंचाई लेकिन इसके साथ ही खेल आया ऑनलाइन धोखाधड़ी का|
डिजिटल भुगतान के जमाने में, ऑनलाइन हो रही जालसाजी ने अपनी जगह बनाई, भारत में सन, 2019 में कुल 33968 मामले सामने आए धोखाधड़ी के, जिससे कुल 6.82 अरब रुपयों का नुकसान हुआ|
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 को ऐसे मामलों को कम करने तथा उपभोक्ताओं के अधिकारों का संरक्षण के लिए ठोस कदम के रूप में देखा जा सकता है|
विषय-विस्तार :
साल 1983 को इंटरनेट के जन्म का साल माना जाता है, इंटरनेट के आने के बाद पूरी दुनिया में नवीनीकरण का तूफान सा आ गया| अब कोई भी व्यक्ति जिसके पास कंप्यूटर है, वह इंटरनेट की सुविधा का लाभ उठा सकता था, और ऐसे ही इंटरनेट के कारण आगमन हुआ आने वाले समय में ई-कॉमर्स कंपनियों का जैसे-अमेजॉन, फ्लिपकार्ट, फेसबुक इत्यादि और इसके साथ ही वक्त के साथ इंटरनेट हर किसी के लिए सुलभ हुआ, जिसके कारण ई-कॉमर्स ने अपनी रफ्तार पकड़ी और जहां उपभोक्ताओं को सामान को खरीदने या बेचने के लिए दूर-दराज तक जाना होता था अब वह काम अपने घर बैठे-बैठे करने में सक्षम थे| इस आधुनिकता के भी अपने कुछ नुकसान थे, जहां यह उपभोक्ताओं के लिए अत्यंत सुलभ था, तो इसके कुछ नुकसान भी थे, जिनका यह भागीदार बना|
वक्त के साथ इंटरनेट का प्रचलन पूरी दुनिया में फैला, अब किसी भी व्यक्ति का सबसे महत्वपूर्ण अंग हो गया था उसका डाटा, इंटरनेट के जमाने में डाटा को सुरक्षित होना अत्यंत आवश्यक है, आज किसी और के डाटा का गलत मानसिकता के लोग अनेक प्रकार से फायदा उठा सकते हैं|
हर साल अनेक ई-कॉमर्स कंपनियों पर उपभोक्ताओं के डाटा की चोरी के मामले सामने आते हैं, कुछ आंकड़ों से बात स्पष्ट करें तो सन 2018 में लगभग 2.9 करोड लोगों के डाटा की चोरी का मामला सामने आया| इस तरह हर साल ई-कॉमर्स कंपनियों पर उपभोक्ताओं के डाटा की चोरी को करने जैसे संगीन इल्जाम लगते हैं| ऐसे आंकड़ों के सामने आने से उपभोक्ताओं के सरंक्षण पर विचार करने की आवश्यकता और अधिक बढ़ जाती है|
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए सर्वेक्षण के अनुसार ऑनलाइन धोखाधड़ी के प्रकार निम्नलिखित है-
ऑनलाइन खरीदारी,
क्रेडिट और डेबिट कार्ड,
टेलीमार्केटिंग और अवांछित ईमेल,
नौकरी और पैसे कमाने के झूठे वादे,
लॉटरी या जुआ,
यात्रा और छुट्टियों का झांसा,
फोन सेवाओं द्वारा आदि|
इससे कुछ सामान्य तरीकों से उपभोक्ता के साथ धोखाधड़ी की जाती है, उपभोक्ता के डाटा का इस्तेमाल करके उसको ऐसे आकर्षक प्रस्ताव दिए जाते हैं, और उनसे पैसे हड़पने की कोशिश होती है|
उपभोक्ता का शोषण:
विडंबना की कह सकते हैं लेकिन शिक्षित समाज में भी उपभोक्ता का शोषण अनेक प्रकार से होता है, सिर्फ ई-कॉमर्स में ही नहीं बल्कि सामान्य बाजारों में भी उपभोक्ता का फायदा उठाया जाता है|
सिर्फ इस विषय पर बात करें, कि कैसे उपभोक्ता का शोषण होता है, तो भी हमारे सामने अनेक दृश्य आते हैं, लेकिन कैसे? हम कुछ बिंदुओं के माध्यम से इसको समझते हैं –
हालांकि हम यह जानते हैं कि पिछले दशक में भारत की साक्षरता दर में बड़ा उछाल आया है जहां 2011 में यह 72.99% थी, वही आज 2021 तक यह बढ़कर 77.70% हो गई है| देश में साक्षरता एक अच्छी गति से बड़ी है, लेकिन बाजार की निरक्षरता उपभोक्ताओं पर गहरा प्रभाव डालती है, और यही निरक्षरता उपभोक्ताओं के शोषण का कारण बनता है| उपभोक्ता को अपने अधिकारों का कम ज्ञान उसमें जहालत पैदा करता है, जिसका परिणाम स्वरूप बाजारों द्वारा भरपूर फायदा उठाया जाता है|
अपने अधिकारों का ज्ञान केवल जहालत ही पैदा नहीं करती बल्कि इसके और भी गलत परिणाम निकलते हैं, दुकानदार अक्सर उपभोक्ता को भ्रमित करता है, सामान्य तरीके से समझा जाए तो दुकानदार उपभोक्ता के सामने समान का गलत डाटा पर करता है, जैसे-सामान की गुणवत्ता, उसका मूल्य, समाप्ति तिथि, अथवा प्रतिकूल प्रभाव जैसी अत्यंत आवश्यक जानकारी को गलत पेश करता है| दुकानदार द्वारा पेश की गई गलत जानकारियों के प्रभाव में आकर उपभोक्ता घटिया प्रकार की वस्तुओं को भी खरीद लेता है|
उपभोक्ता के शोषण की कहानी सिर्फ छोटे-मोटे घरेलू सामान पर ही नहीं रुकती, बल्कि विक्रेता अन्य सामान जिसमें कपड़े, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सामान शामिल हैं, उसमें भी उपभोक्ता का शोषण करता है| अक्सर विक्रेता अपने सामानों की सारी जिम्मेदारी उपभोक्ता पर डाल देता है, फिर यदि सामान में खराबी पहले से ही हो, तो भी विक्रेता वह जिम्मेदारी अपने ऊपर नहीं लेता और इसी प्रकार उपभोक्ताओं को अनेक बार नुकसान उठाना पड़ता है|
भारत में उपभोक्ता आंदोलन:
एक नजर इतिहास की तरफ डाली जाए तो यह प्रतीत होता है, कि हमारे देश में उपभोक्ताओं का इतिहास बहुत पुराना है, यहां सिंधु घाटी सभ्यता से व्यापार का प्रचलन था, उस वक्त क्रय-विक्रय के लिए वस्तु विनियम का प्रयोग था लेकिन उपभोक्ता उस समय भी था, और सामान का लेनदेन चरम पर था, और जहां उपभोक्ता है, वहां उसके शोषण का इतिहास भी सामने आता है|
उपभोक्ताओं के अधिकारों का शोषण के चलते भारत में कई उपभोक्ता आंदोलन भी हुए, 1960 के दशक के बाद उपभोक्ताओं में जागरूकता लाने के लिए अनेक लेख लिखे गए “सामाजिक शक्ति” का प्रदर्शन हुआ जहां उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों से रूबरू करवाया गया, यह सिलसिला 1970 के बाद तक चला| जहां अनेक उपभोक्ता संगठनों का निर्माण हुआ| भारत सरकार ने अनेक छोटे-मोटे कदम भी उठाए लेकिन 1986 में भारतीय सरकार ने उपभोक्ता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, “उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986” लागू किया, जो सी.ओ.पी.आर.ए. के नाम से प्रसिद्ध हुआ|
उपभोक्ताओं के लिए कानूनी संरक्षण:
भारत सरकार द्वारा उपभोक्ताओं के सरंक्षण तथा उनके हितों की रक्षा के लिए अनेक कानूनी अधिनियम बनाए| इन कानूनों का संक्षेप विवरण कुछ इस प्रकार है-
भारतीय मानक ब्यूरो अधिनियम,1986: इस अधिनियम के तहत उपभोक्ताओं के संरक्षण के लिए भारतीय सरकार ने भारतीय मानक संस्थान के स्थान पर भारतीय मानक ब्यूरो का गठन किया| इसकी दो मुख्य गतिविधियां है : उत्पादकों के लिए गुणवत्ता मानकों का निर्धारण करना और BSI चिन्ह योजना के जरिए उन को प्रमाणित करना| इसके द्वारा निर्धारित गुणवत्ता मानक सुरक्षा और कार्य निष्पादन के अनुरूप पर्याप्त जांच के बाद उत्पादकों को अपने उत्पाद पर मानक चिन्ह ISI प्रयोग करने की अनुमति दी जाती है|
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986: यह अधिनियम उपभोक्ता सरंक्षण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण कदम था, इसके अंतर्गत उपभोक्ता किसी भी प्रकार की धांधली के ऊपर कानूनी कार्रवाई कर सकता है तथा इस अधिनियम के तहत केंद्र और राज्य स्तर पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद की स्थापना का भी प्रावधान है|
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019: यह हाल में लिया गया सबसे महत्वपूर्ण उपभोक्ता अधिनियम है इसलिए इस अधिनियम के बारे में हम विस्तार से जानेंगे|इस अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ताओं के निम्नलिखित अधिकारी को स्पष्ट किया गया है : - ऐसी वस्तुओं और सेवाओं की मार्केटिंग के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करने जो जीवन और संपत्ति के लिए जोखिमपूर्ण है| - वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शुद्धता, मानक और मूल्य की जानकारी प्राप्त होना| - प्रतिस्पर्द्धी मूल्य पर वस्तु और सेवा उपलब्ध कराने का आश्वासन प्राप्त होना| - अनुचित या प्रतिबंधित व्यापार की स्थिति में मुआवजे की मांग करना। इस अधिनियम के तहत ग्राहकों की जानकारी पूर्ण निर्णय हेतु किसी भी फल के लिए यह अनिवार्य होगा कि वह विक्रेता के साथ किए गए समझौते से संबंधित रिटर्न, रिफंड, एक्सचेंज वारंटी/गारंटी भुगतान के तरीकों शिकायत निवारण तंत्र की पूर्ण जानकारी प्रदर्शित करें|
इस प्रकार हमारी सरकार ने अत्यंत महत्वपूर्ण कदम उठाकर उपभोक्ता के हितों की रक्षा करने की बेजोड़ कोशिश की है और उपभोक्ता के सरंक्षण की कोशिश की जा रही है|
उपभोक्ता के अधिकार:
उपभोक्ता के अधिकारों के लिए भारत में अत्यंत स्पष्ट व मजबूत कानून है, भारत में निष्पक्ष तरीके से हर उपभोक्ता के पास उसके अधिकार है, यह महत्वपूर्ण है, कि एक उपभोक्ता के रूप में किसी व्यक्ति को बुनियादी अधिकारों के साथ-साथ अदालत और प्रक्रिया के बारे में भी पता हो|
सामान्य तौर पर भारत में उपभोक्ता अधिकार निम्नलिखित है :
सुरक्षा का अधिकार: सूचना का अधिकार का अर्थ है, अनुचित व्यवहार प्रथाओं के खिलाफ उपभोक्ता की रक्षा के लिए माल की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और कीमत के बारे में सूचित किया जाना।
चयन का अधिकार: ग्राहक को चुनने का विशेषाधिकार सुरक्षित रखना चाहिए। कोई भी व्यापारी किसी भी वस्तु का सिर्फ एक ब्रांड नहीं बेच सकता है। यह अवसंरचना पर लगाम लगाने के लिए किया गया है। अवसंरचना को रोकना लगातार ग्राहक के हितों के विरुद्ध है।
सुनवाई का अधिकार: विशेषाधिकार को तीन अलग-अलग निहितार्थों में समझा जा सकता है। व्यापक दृष्टिकोण से, इसका तात्पर्य यह है कि किसी भी बिंदु पर, खरीदार के हितों को प्रभावित करने वाले विकल्प विधायिका और खुली नींव द्वारा लिए जाते हैं, खरीदार को सलाह दी जानी चाहिए।
सूचना का अधिकार: सूचना का अधिकार का अर्थ है, अनुचित व्यवहार प्रथाओं के खिलाफ उपभोक्ता की रक्षा के लिए माल की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और कीमत के बारे में सूचित किया जाना।
सुने जाने का अधिकार: सही सुने जाने का अर्थ है कि उपभोक्ता के हितों को उचित मंचों पर उचित विचार प्राप्त होगा। उपभोक्ताओं को उपभोक्ता के कल्याण पर विचार करने के लिए स्थापित विभिन्न मंचों में प्रतिनिधित्व करने का भी अधिकार है।
निवारण का अधिकार: निवारण अधिकार का अर्थ है अनुचित व्यापार प्रथाओं या उपभोक्ताओं के बेईमान शोषण के विरुद्ध निवारण का अधिकार। साथ ही उपभोक्ता की वैध शिकायतों के उचित निपटान का अधिकार सुनिश्चित करना।
उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार: उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार का अर्थ है जीवन भर एक सूचित उपभोक्ता बनने के लिए ज्ञान और कौशल प्राप्त करने का अधिकार।
उपभोक्ता जागरूकता का महत्व:
उपभोक्ता के हितों के संरक्षण के लिए केवल सरकार द्वारा कानून तथा अधिनियम बनाना ही काफी नहीं है, बल्कि उपभोक्ता में जागरूकता भी जरूरी है|
उपभोक्ता जागरूकता का अर्थ है विभिन्न उपभोक्ता उत्पादन कानूनों, निवारण तंत्र और उपभोक्ता अधिकारों के बारे में ज्ञान रखने के लिए जागरूक होना जिसमें उपभोक्ता द्वारा खरीदे जाने वाले सामानों और सेवाओं से स्वास्थ्य और सुरक्षा की सुरक्षा का अधिकार, गुणवत्ता, मूल्य, शक्ति के बारे में सूचित होने का अधिकार शामिल है।
सामान्य तौर पर उपभोक्ता को अपने हितों का संरक्षण करने की कहां-कहां जरूरत है-
बैंकिंग सेवाएं प्राप्त करते समय,
चिकित्सा सेवाएं लेते समय,
पेट्रोल रसोई गैस प्राप्त करते समय,
खरीदारी करते समय, आदि |
इस प्रकार उपभोक्ताओं को अपने हितों के क्षेत्र के बारे में भी पता होना आवश्यक है और अपने हितों का संरक्षण करना भी उतना ही आवश्यक है|
सारांश:
वक्त के साथ बदल रही दुनिया में उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण के लिए सोचना भी जरूरी है, यह हमने समझा साथ ही उपभोक्ता खुद की जिम्मेदारियों को समझ कर उनको अपने हितों के क्षेत्र के बारे में ज्ञान होना भी आवश्यक है| ई-कॉमर्स कंपनियां जिस तरह आज अपना एकाधिकार बाजार पर जमा रही है उसको नजर में रखकर सरकार भी महत्वपूर्ण कदम उठा रही हैं|
भारत सरकार ने उपभोक्ता सरंक्षण 2019 जैसे अधिनियम लागू करके उपभोक्ताओं के हितों का सरंक्षण करने की महत्वपूर्ण कोशिश की है |
भारत सरकार द्वारा लागू किया गया उपभोक्ता संरक्षण,2019उपभोक्ताओं की सभी किस्मों को पूरा करने के लिए तैयार किया गया है, चाहे वह ऑनलाइन हो, टेलीशॉपिंग हो या ऑफलाइन; भ्रामक विज्ञापन को कम करने के लिए उपयुक्त उपाय किए गए हैं। एक्ट ऑनलाइन उपभोक्ताओं की जरूरतों को पूरा करता है और शिकायत निवारण के लिए एक तेज विवाद तंत्र प्रदान करता है और मध्यस्थता के माध्यम से विवादों को हल करने का एक अभिनव (इनोवेटिव) तरीका भी प्रदान करता है। अभी भी बहुत से ऐसे उपभोक्ता है जो यह अनुभव तो करते है कि उन्हें लूटा जा रहा है अथवा उनके अधिकारों का हनन हो रहा है लेकिन जानकारी के अभाव में आयोग तक पहुंचने से कतराते है। कई लोगों को लगता है कि सामान्य मुकदमों की तरह ही यहाँ पर भी पैसे और समय की बर्बादी ही होगी तो यह सोच गलत है। ऐसी सोच रखने वालों के लिए ही विश्व उपभोक्ता संरक्षण दिवस के आयोजन के द्वारा उपभोक्ता को जागरूक करने का प्रयास किया जाता है। अंततः हमें जागरूक होना अत्यंत आवश्यक है|