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कब तक पथ-पथ लथपथ नारी युही फेंकी जाएगी

कब तक अस्मत ररस-ररस लोचन देवोूं से आस लगाएगी
यहााँ देव मौन हर बार हुए,पर वसन तेरे ही तार हुए
देखो आ धमके दु:शासन,सोया भी देखो प्रशासन
रीढ़ तोड़कर वज्र उसी की छाती में कब गाड़ोगी
अबला कब गााँडीव उठा कौरव का मस्तक फाड़ोगी॥
कृष्ण बनेगा कौन यहााँ कलयुग की इस माया में
कौन बनेगा रवव रश्मि काली अूंवधयारी छाया में
प त कप त जो भी वनकले आाँखोूं में इतना डर भर दो
आाँखोूं के अूंधो को अपने,तेज से नेत्रहीन कर दो
बहुत हो चुके शाूंवत वदये,अब ढाल-खड़ग की बारी है
अबला अब गााँडीव उठा दु:शासन से क्ोूं हारी है॥
भले भीम ने चीर वक्ष लहू पीने का ऐलान वकया
पर झुके हुए वसर रहे सभा में लज्जा पर न ध्यान वदया
यहााँ याचना असर नहीूं है,वकसी ने छोड़ी कसर नहीूं है
अब हाथ की च ड़ी तोड़ो भी,च ड़ी से आूंखे फोड़ो भी
पाथथ के जब हो हाथ बूंधे गााँडीव की वकस्मत मारी है
अबला अब गााँडीव उठा, खीूंची दु:शासन ने साड़ी है॥
नारी बेबस हर बार हुई,रक्षाबूंधन की भी हार हुई
नारी ने बाूंधे वकतने ही रक्षा बूंधन रूपी धागे
बाूंधने होूंगे रक्षा स त्र अब पुरुषोूं को होकर आगे
पर जब भी पौरूष हारे, मुूंडमाल गले डारे
रौद्र रूप धरना होगा,वसर भीड़ पड़ी आ भारी है
अबला अब गााँडीव उठा,चूंडी बनने की बारी है॥
जाूंघ वबठाने के हुए इशारोूं की जाूंघे तोड़ी जाएगी
चीर को हरने वाले के लहू से कृष्णा बाल धुलाएगी
प्रवशक्षण और तैयारी के पथ से जुड़ती नारी है
आत्मरक्षा का चुन ववकल्प अरर से वभड़ती नारी है
आधुवनक युग में आधुवनक, उपकरणोूं की भरमारी है
देखो अबला गााँडीव उठा, जा वसूंहनी सी ललकारी है॥

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