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किसका होगा राजतिलक
ये खबरों में है धूम मची
झूठी खबरें सच को ढाँपे
खबरों में खबर है कहाँ बची
ले किसकी इजाजत कैसे
कुर्सी को सिंहासन कह जाते है
वो राजा कैसे हो सकते है
वो राजा कैसे कहलाते है
जन सेवक जो है हर जन के
जो हम में से ही आते है
जिसे चुनकर हम ही बनाते है
जो एक-एक वोटो की बूंद से
सत्ता का सागर पाते है
वो राजा कैसे हो सकते है
वो राजा कैसे कहलाते है
सेवा-भाव, समर्पण संग
जो घूम-घूम कर पैदल पथ पर
घर-घर जाकर हाथ जोड़कर
वोटो के एक एक टूक को खाकर
वादों को हजम कर जाते है
वो राजा कैसे हो सकते है
वो राजा कैसे कहलाते है
जो झूठ पोटली में भर कर
वादों के जुमले गढ़ कर
लोगों को लोगों से डरा
धर्म-जाति का भेद करा
आपस की द्वेष ज्वाला से सत्ता की रोटी पकाते है
वो राजा कैसे हो सकते है
वो राजा कैसे कहलाते है
कहते है खुद को जनसेवक मतदान से पहले
होते ही मतदान पड़े नेहले पे दहले
देश के एक तबके की हालत ज्यों की त्यों है
युवा,किसान,सैनिक,नारी बेबस से तकते क्यों है
आते है गिरते रुपए को और गिराते है
वो राजा कैसे हो सकते है
वो राजा कैसे कहलाते है
सड़कों पर चलती नारी सम्मान खोजती
अर्थव्यवस्था समृद्धि का आह्वान खोजती
पेड़ों पर लटके कृषक फल, पकी फसल की आस लगाते
युवा अवसरों की खातिर घूम घूम चप्पल घिसवाते
त्रस्त हुए भारत से बस“भारत माँ की जय”बुलवाते है
वो राजा कैसे हो सकते है
वो राजा कैसे कहलाते है
एक ही रास्ता दिखता है वो भी धुंधला सा
शिक्षा के स्तंभों पर बैठा देश संभला सा
मानवता विमुक्त हो जंजीरों से छूटेगी एक दिन
सोच पुरानी धर्म-जाति की टूटेगी एक दिन
आओ मिलकर “वसुधैव कुटुंबकम” का नारा आज लगाते है
जनता ही सच में राजा है
जनता को राजा बनाते है  
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