नैसर्गिक सुषमा से अलंकृत, सनातन संस्कृति का सक्रिय वाहक, पुरातन शिल्प कला, भवन निर्माण कला की अद्भुत नक्काशियों वाली इमारतें, पारंपरिक सनातन की पद्धति को संजोए हुए हैं, तथा उनका पूर्ण अनुपालन करते हुए, दक्षिण भारत संभवतः अखंड सनातन संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है। इससे भी बड़ी बात यह है कि हर तरह के तकनीकी विज्ञान ने भी, सफलतापूर्वक अपने पैर, सुरसा के मुख सदृश पूर्णरूपेण पसारे हुए हैं।

स्वदेशी तथा विदेशी पर्यटकों को, मंत्रमुग्ध कर देने वाले मंदिर, केवल मात्र पूजा स्थली ही नहीं हैं, अपितु हमारी कला में वैज्ञानिकता का ,अविस्मरणीय समावेश भी प्रदर्शित कर रहे हैं। हमारे पूर्वज कला के क्षेत्र में सीमा रहित ऊँचाइयों को स्पर्श करते रहे हैं। हमारे हृदय, मस्तिष्क और चेतना को पूर्णरूपेण वशीभूत कर देते हैं। दक्षिण भारत के राज्यों को, देवों की भूमि के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ के मंदिरों की नक्काशी, इतनी सुंदर और मनमोहक होती है कि पर्यटक इन्हें अपलक निहारते रहते हैं।

इन मंदिरों की भव्य संरचना, विजयनगर और द्रविड़ शैलियों का आकर्षण संजोए हुए हैं।आंध्र प्रदेश राज्य के गोलमालिदामादा दक्षिण भारत का लोकप्रिय हिंदू मंदिर है। यह मंदिर 16 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है। आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में स्थित कनक दुर्गा मंदिर, कृष्णा नदी के तट पर इंद्रकीलाद्री की पहाड़ी पर स्थित है। प्रमुख मंदिरों में श्रीशैलम मल्लिकार्जुन मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों में से एक है। लेपाक्षी का वीरभद्र मंदिर अनंतपुर जिले में है। यहाँ राम वन गमन के समय सीता माता को, रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए, युद्ध करते हुए जटायु ने अपने प्राण त्यागे थे।

तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर दक्षिण भारत का सबसे चमत्कारी तथा धनी मंदिर माना जाता है। यह आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले के तिरुपति में, तिरुमला की पहाड़ी पर स्थित है। इस मंदिर की पहाड़ी पर 7 चोटियाँ होने के कारण, इस मंदिर को सात पहाड़ियों का मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर को भूलोक वैकुंठ धाम भी कहते हैं , अर्थात् पृथ्वी पर विष्णु का निवास इस मंदिर में बाल दान करने की भी परंपरा है। जिसे मोक्कू कहा जाता है।

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तिरुमला वेंकटेश्वर मंदिर - दक्षिण भारत 

इस मंदिर में विष्णु भगवान की मूर्ति काले रंग की है ।जो जमीन के नीचे से स्वयं प्रकट हुई थी। मूर्ति के स्थान को आनंद निलयम कहते हैं। शुक्रवार को भगवान बालाजी की पूरी मूर्ति के दर्शन किए जा सकते हैं।

मंदिरों के बड़े प्रवेश द्वार को गोपुरम कहते हैं। जो भक्त और श्रद्धालु वैकुंठ एकादशी के अवसर पर यहाँ भगवान के दर्शन के लिए आते हैं। उनके पाप धुल जाते हैं। जन्म मरण के बंधनों से मुक्ति मिल जाती है।

कर्नाटक की कावेरी नदी दक्षिण भारत की बहुत ही पवित्र नदी मानी जाती है। यह पश्चिमी घाट में ब्रह्मगिरि पहाड़ी से निकलकर, बंगाल की खाड़ी में गिरती है। इस नदी पर पवित्र त्यौहार पांचालिंगा का आयोजन किया जाता है। कावेरी बारहमासी नदी है। कावेरी को दक्षिण भारत की गंगा तथा गोदावरी को दक्षिण गंगा कहते हैं यहाँ नीलगिरी पर्वत श्रेणी की, सबसे ऊँची चोटी अन्नामलाई पहाड़ी पर है। इस पहाड़ी को हाथी पर्वत के रूप में भी जाना जाता है।मलयगिरी पर्वत भारत के सप्तकुल पर्वतों में से एक है। महर्षि अगस्त्य ने यहाँ तपस्या की थी।

केरल का नृत्य पदायणी:

इस दिव्य नृत्य में नर्तक, कोल्हो पहनते हैं कुमी तमिलनाडु का सरल लोक नृत्य है। कोलाट्टम इस नृत्य को गाँव के स्थानीय त्योहारों के दौरान किया जाता है। इसमें छड़ी से ताल प्रदान की जाती है। पेरिनी आंध्र प्रदेश का प्रमुख नृत्य है। यह थांडवम योद्धाओं का पुरुष नृत्य है। यह नृत्य ड्रम की हरा के साथ किया जाता है। थापेटागुलु गुल्लू आंध्र प्रदेश का नृत्य है। इसमें 10 से अधिक व्यक्ति भाग लेते हैं। कुचिपुड़ी, भरतनाट्यम, ओडीसी यहाँ के बहुत प्रसिद्ध नृत्य हैं। दक्षिण भारत अपनी हस्तकला तथा समुद्री व्यापार के लिए बहुत प्रसिद्ध था।

गुरुवयूर केरल:

दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार सभा एक ऐसा संगठन है, जिसका मुख्य लक्ष्य दक्षिण भारत और गैर हिंदी- भाषी लोगों के बीच ,हिंदी का प्रचार प्रसार करता है। यह चेन्नई शहर में स्थित है। थिरुस्सुर जिले में स्थित गुरुवयू को धरती पर भगवान श्री कृष्ण का बैकुंठ भी कहा जाता है। यहाँ भगवान श्री कृष्ण को गुरुवयूरप्पन के नाम से जाना जाता है। यह भी दक्षिण भारत के धनी मंदिरों में से एक है।

सबरीमाला मंदिर केरल: 

केरल में सबरीमाला में स्थित अय्यप्पा मंदिर करोड़ों श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र है।मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में ,रह -रहकर एक ज्योति दिखती है। इस ज्योति के दर्शन अनेक श्रद्धालु प्रतिवर्ष करते हैं ।इस ज्योति के साथ शोर भी सुनाई देता है। अय्यप्पा भगवान शिव तथा मोहिनी अवतार विष्णु के पुत्र थे। 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के अतिरिक्त सभी प्रवेश कर सकते हैं।

मदुरई मीनाक्षी मंदिर तमिलनाडु:

माता पार्वती तथा भगवान शिव के मिलन का साक्ष्य यह मंदिर है ।यह अद्भुत स्थापत्य तथा वास्तु के कारण, आधुनिक विश्व के सात आश्चर्यों की सूची में प्रथम स्थान पर है। इस मंदिर में अप्रैल तथा मई के महीने में, मदुरई का सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार चिथिरई मनाया जाता है।

तंजावुर तमिलनाडु:

यह स्थान भगवान शिव के बृहदेश्वर मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।यह विश्व के प्रथम ग्रेनाइट मंदिर के रूप में प्रसिद्ध है। यह मंदिर तंजौर में है। इस मंदिर के शिखर ग्रेनाइट के 80 टन के टुकड़े से बने हैं।यह विश्व का सबसे ऊँचा मंदिर है। यह मंदिर वास्तुकला ,पाषाण तथा ताम्र में शिल्पांकन, प्रतिमा विज्ञान चित्रांकन, नृत्य ,संगीत, आभूषण तथा उत्कीर्ण कला का भंडार है। इसके गुंबद की परछाई कभी पृथ्वी पर नहीं पड़ती। इस मंदिर को तंजौर के किसी भी कोने से आप देख सकते हैं।

हंपी कर्नाटक:

तुंगभद्रा नदी के तट पर बसा, कर्नाटक का हंपी शहर, प्राचीन समय में विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हुआ करता था। तुंगभद्रा नदी के पुराने नाम, पंपा से हंपी नाम पड़ा। जो ब्रह्मा जी की पुत्री थीं। यह शहर यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर की सूची में सम्मिलित है। यहाँ भगवान शिव का विरुपाक्ष मंदिर है।

श्रीपुरम स्वर्ण मंदिर तमिलनाडु:

वेल्लूर जिले में देवी नारायणी को समर्पित यह महालक्ष्मी मंदिर, 15000 किलो शुद्ध सोने से निर्मित वृत्ताकार है।

चामुंडी पर्वत कर्नाटक:

चामुंडी पर्वत की चोटी पर स्थित 12वीं शताब्दी का, चामुंडेश्वरी मंदिर ,चामुंडी देवी को समर्पित है। इसे होयसाला राजवंश ने बनवाया था। इस स्थान पर देवी ने महिषासुर का वध किया था। यहाँ नंदी की एक विशाल मूर्ति है।

साक्षरता में दक्षिण भारत बहुत आगे है।

भाँति -भाँति के धान का बहुत बड़े पैमाने पर उत्पादन होने के कारण, यहाँ का प्रमुख खाद्य चावल ही है। यहाँ तक कि मंदिरों में भी नमकीन तथा मीठे ,सभी प्रकार का प्रसाद अधिकतर चावलों का ही होता है।

श्री विष्णु भगवान के पद्मनाभ मंदिर में प्रत्येक पुरुष, बालक हो या वयस्क, धोती धारण करके ही मंदिर में प्रवेश कर सकता है। बनियान भी नहीं पहन सकते हैं। महिलाएँ भी इस मंदिर में, केवल साड़ी पहनकर ही भगवान के दर्शन कर सकती हैं।

यहाँ पर दसों दिशाएँ, तरह- तरह की फुलवारी से समृद्ध हैं। फूलों को भगवत भक्ति की विशेष सामग्री के रूप में, अनिवार्य रूप से उपयोग किया जाता है। समस्त स्त्रियों के सवेरे के सौंदर्य प्रसाधन के रूप में, बालों में सुसज्जित गजरा, महिलाओं के लौकिक आकर्षण में चार चाँद लगा देता है।

आपको यहाँ प्रत्येक घर की दहलीज, अनुपम, नयनाभिराम रंगोली से अवश्यमेव देदीप्यमान मिलेगी। विशिष्ट पर्वों पर रंगोली का आकार, रंग और साज-सज्जा में अभूतपूर्व वृद्धि हो जाती है। प्रत्येक पुरुष का ललाट यहाँ, चित्ताकर्षक टीके से सुसज्जित रहता है।

चारों ओर छिटकी, सौम्यता से मुस्कुराती, खिलखिलाती हुई हरीतिमा, किस पर बरबस अपना जादू नहीं चलाएगी। मार्गों के उभय किनारों पर सुशोभित वृक्ष, दोनों तरफ से झूमते हुए, नर्तन -सा करते हुए मस्तकों से, परस्पर अभिवादन- सा करते हुए दृष्टिगोचर होते हैं।

भोजन करने के लिए घर में भी तथा होटलों में भी, थाली या प्लेटों के ऊपर, केले का पत्ता अवश्य बिछाते हैं। जो औषधीय गुणों से युक्त तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत उपयुक्त होता है।

अमावस्या के दिन, प्रत्येक धनी तथा निर्धन व्यक्ति गाजे बाजे के साथ ,पूर्ण आस्था में डूबकर, विष्णु भगवान के मंदिर में जाकर, अपनी अर्चना और वंदना को विष्णु भगवान को समर्पित करते हैं।

यहाँ के कुछ स्थानों का मौसम तो इतना अलबेला है। संभवतः यह कहावत यही के लिए बनी होगी, ना सावन सूखे ना भादो हरे अर्थात् पूरे वर्ष एक ही जैसा मौसम बना रहता है। ग्रीष्म ऋतु में वातानुकूलित यन्त्र के तथा शिशिर ऋतु में रजाई के दर्शन ऐसे ही दुर्लभ हैं। जैसे, रेगिस्तान में लहराता झरना। अन्य पर्यटन स्थल भी बहुत आकर्षक हैं ।महाबलीपुरम, कोयंबटूर, मैसूर तथा बैंगलोर।

खाद्य पदार्थ इडली, सांभर, बड़ा, हैदराबादी बिरयानी, उत्तपम, उपमा ,पायसम, रागी मु्द्दे इत्यादि भारत में ही नहीं, अब तो यह संपूर्ण विश्व की भोजन सामग्री बन चुका है। मैसूर सिल्क, कांजीवरम, तमिलनाडु सिल्क, न जाने कितनी तरह की साड़ियाँ यहाँ प्रचलित हैं।

किसी भी त्योहार पर अथवा शुभ कार्य के पूर्व, पशु बलि के स्थान पर यहाँ साबुत पेठा फोड़ कर, उसमें सिंदूर या रोली भरकर, दरवाजे के दोनों तरफ एक- एक टुकड़ा रख देते हैं। जिसे शुभ माना जाता है।

दक्षिण भारत की चारों भाषाएँ, मलयालम, तेलुगु कन्नड़, तमिल उत्तरी भारत की हिंदी भाषा के साथ, सहोदर भगिनी के समान गल बहियाँ डाले रहती हैं। प्रत्येक विद्यालय में, यहाँ अपनी अपनी प्रांतीय भाषाओं के साथ, हिंदी भी अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग है।

भारत के इस प्रायद्वीप वाले क्षेत्र में ,आकार ऐसा अनुभूत होता है। जैसे कोई बिछड़ी हुई बेटी चिर प्रतीक्षित, चिर परिचित अपने पूर्वजों की स्थली में, प्रविष्ट होकर एक दिव्य, सुखद आश्चर्य से ओतप्रोत हो गई हो।

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