परवाह नहीं थी खुद की उसको, परिवार का मुखिया वो था।
प्यार- हँसी से भरा- पुरा परिवार का रखवाला था।
फिर क्या हुआ जब उजड़ा उसका हँसता खेलता परिवार जो था।
एक दिन आया कहर था ले गया उसको साथ।
साँसे रुक गयी उसकी फिर ले गया खुशियाँ साथ।
क्या करे अब बुढी मैय्या, बच्चे भी हैं साथ।
लग गया उन्हे भी अब गरीबी का ये साथ।
न भर पाया पेट उनका न बुझ पायी अब प्यास।
कटते गए वो दिन ऐसे ही, न दिया किसी ने साथ।
चल बसी अब बुढी मैय्या, जिसका था बच्चों पर हाथ।
अब क्या करे बच्चे बेचारे हो गए अब अनाथ।
खबर उनकी सबको थी, पर न दिया किसी ने साथ।
अंत में अनाथ आश्रम ने की थी उनकी तलाश।
दुख है परिवार से बिछड़ने का उन्हे, पर खुश हैं बाकी बच्चों के साथ।
न भूलेंगे कभी वो बच्चे,एक कहर आया था ऐसा जो ले गया परिवार साथ।