लाशों को जलता देखना अपने आप में एक अनूठा अनुभव रहा। यह अनुभव उस अनुभव से बिलकुल अलग है जो की आप किसी अपने के मरने पर करते है। वो अनुभव होता है दुःख का और यह समय होता है आत्ममंथन का ।
राजा हरिशचंद्र घाट पर कुछ समय व्यतीत किया और एक जलते शव को देखते देखते, उस कहानी को याद किया जो की इस घाट के लिए प्रचलित है।
वहा से बढ़ते बढ़ते मणिकर्णिका घाट पहुंचे, जिसे कई लोग मसान घाट भी कहते है। अंतिम संस्कार इस घाट पर हो तो सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है, ऐसा कहा जाता है। ये भी बताया गया की यहां तकरीबन २५०-३०० पार्थिव शरीर हर दिन हिंदुओं के आखिरी संस्कार को प्राप्त हो जाते है।
मात्र १० मिनट के दौरान ८ शरीरों की पंचतत्व में विलीन होने की प्रक्रिया देखी। इन सभी चिताओं में अग्नि दी जा चुकी थी और सभी अलग अलग दौर में पहुंच चुके थे..
ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो यहां भी होड़ लगी थी की कौन पहले जलेगा..मानो जैसे इंसान अपनी फितरत यहां भी नही छोड़ पा रहा था।
उसी दौरान २ नई पार्थिव शरीरों को भी वहा आते देखा, शायद ये दोनों अपने जीते जी भी कही न कही किसी न किसी चीज़ के लिए प्रतीक्षा की कतार में रहे होंगे और आज इस अंतिम क्रिया के लिए भी..
डोम राजा, जैसा उन लोगो को जो चिता में अग्नि देते है तथा इस पूरी प्रक्रिया में सक्रिय होते है, अग्नि देने के बाद विभिन्न समय पर शव को डंडे से मारते रहते है।
ध्यान दिलाता चलूं की ये शव ऐसे किसी व्यक्ति का था जिससे उसके परिवार वाले बेहद प्यार करते थे।।
कुछ समय पहले इसके लिए ही विलाप कर रहे थे..और अब..
अब वो किसी और के हाथों डंडे खा रहा है।।
खैर, आपके परिजन जो आपको लगी एक खरोच के लिए भी सोचते रहते थे, इस वक्त आप पर पड़ रहे डंडे देख कर भी खामोश रहेंगे, ठीक इन जलती चिताओं के परिजन जैसे। यहां जब आप लगातार चिताओं को जलता देखते हैं, आप समझते हैं की जिंदगी क्षणभंगुर है। आप को इस चीज का साक्ष्य मिलता है की आपकी इज्जत तब तक ही है, जब तक आप जिंदा है। और जब आप ये समझते है कि जिंदा है तो इज्जत है, तब आपको होती है चिंता। चिंता और चिता में सिर्फ एक बिंदु का फासला है यह भी स्पष्ट समझ आता है।
किसी पहली हार के बाद जैसे इंसान हताश हो कर अनगिनत फैसले लेता है खुद में सुधार लाने के, वैसे ही यहां रहते हुए आपके मन में अपने जीवन को सुधारने के कई खयाल आते है।
आप जब तक यहां रहते है, तब तक आप खुद में मजबूर हो कर ये सोचते है की क्या यही जीवन है। अपने जीवन के बारे में जितनी सोच किसी को रात को सोने से पहले होती है, उससे भी ज्यादा चिंता यहां खड़े खड़े हो सकती है, खुद ब खुद।
आप खुद से कई सवाल पूछते है, वो मुश्किल सवाल जिनसे आप हमेशा बचते आये है ।
आप खुद से पूछते है की अगर जीवन इतना क्षणिक है तो क्या इसे और बेहतर तरीके से नहीं जीना चाहिए?
आप यहां खड़े खड़े एहसास करते है की जब अंत यही है तो ये गिले शिकवे के साथ क्यू हो?
आप सोचते है ।
आप सोचते है सभी चीज़ें बदल देंगे, आप सोचते है अब से किसी को शिकाय का मौका नहीं देंगे, आप और भी बहुत कुछ सोचते है।
ये सोच वास्तव में मृगतृष्णा के सामान है क्योंकि हमेशा की तरह सोच एक सिमित समय के लिए आपके पास ठहरती है, फिर वो निकल पड़ती है। वो कहा जाती है, ये तो मुझे नहीं पता, पर वो अपनी इच्छा से वापस कभी भी आ जाती है ।
आपको गर कभी ऐसी सोच आये तो शायद सब को तो नहीं , पर किसी भी एक को गर अपने पास रोक सके तो रोक लीजियेगा।
और अगर ऐसी सोच आती ही नहीं और आपको लग रहा है की जो आप कर रहे, जैसा कर रहे वो उचित है, तो ज़्यादा कुछ न करें, बस
मेरी कही सारी बातों को दरकिनार कर, लगा आइएगा शमशान का इक चक्कर । ।
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