तुमने कहा वो मोटी है
वो खाना छोड़ कर बैठ गयी
तुमने कहा शरीर सुडौल नहीं
वो पोछा लगा पेट कम करने लगी
तुमने कहा रंग साँवला है तुम्हारा
वो ढेरों उबटन मुँह पर मलने लगी
तुमने कहा तुम स्टेटस की नही मेरे
वो तौर तरीके तहजीब सीखने लगी
पर क्यूँ???
तुम क्यूँ हर बार उसमें नुख़्स निकालते हो
क्यूँ तरह तरह के साँचे में उसे ढालते हो
क्यूँ नही समझा कभी त्याग उसका तुम्हारे लिए
क्यूँ उसे उस की नज़रों मे ही नीचे गिराते हो ??
तुम समझना ही नही चाहते कि
सुंदरता देह मे नहीं मन में बसती है
तुम देखना ही नही चाहते कि
प्रेम को उसकी आँखें तरसती है
काश तुमने ये चमक धमक से परे
एक प्रेम की दुनिया देखी होती
काश तुम जान पाते कि
हर इक लड़की खूबसूरत होती है
पर तुम रह रहे हो अपनी बनाई शर्तों के जाल में
कभी देखो करीब से पहुँच गये हो ये किस हाल में
कभी किया है क्या महसूस तुमने एहसास उसके ??
कभी देखा है क्या खुद को आईने मे साथ उसके ??
देखना कभी गौर से
तुम्हारी हर शर्तों को पूरा करते
हर बार खुद को बदलते बदलते
वो स्वयं में सम्पूर्ण नज़र आएगी
और साथ खड़े तुम
हर बार नाक भौंह सिकोड़े
खुद को अतृप्त ही पाओगे
वो निखर जाएगी
खुद की नज़रों में एक दिन
और तुम.......
आदतन कमी ही तलाशते रह जाओगे ।