हे उर्मी ,अपराधी हूं मैं तेरा
पहले थोड़ी सी मेरी भी सुन लेना फिर चाहे जो सजा तुम मुझको देना।
जो भैया संग ना जाता , शायद ही खुद को क्षमा कर पाता ।
मैं किनकर्तव्यविमूढ हों जाता ,
भैया को सदा असहा ही पाता
तुम हो मान मेरे जीवन का, तुम से शान ही मेरी हे ।
तुम्हारे साथ साथ वियोग की पीड़ा मेने भी झेली हैं।
हे ,प्रिय जो राह चुनी मेने वह राह बहुत कँटीली थी ,
भैया का ध्यान ना कैसे रखता छोड़ उन्हें वन में ,तुम संग कैसे रहता
हूँ अपराधी बड़ा तुम्हारा
तुमसे मैं कुछ बोल ना पाया
जाते समय तुमसे मिल ना पाया
तुम्हारी कुछ भी सुन ना पाया ॥
सोचा तुम तो हो साया , संग हमेशा तुमको ही पाया।
इसलिए कुछ कह ना पाया , मेरी वेदना तुम ही तो समझोगी ।
राह कर्तव्य की मैं छोड़ ना पाया
हे ऊर्मि अपराधी हूँ मैं तेरा
जो सजा दोगी क़बूल हे मुझको ॥

.    .    .

Discus