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विश्व के विशालतम प्रजातंत्र भारत को एक गौरवशाली इतिहास, सांस्कृतिक विविधताओं, अनेकता में एकता और वसुधैव कुटुंबकम की भावना आदि तथ्यों के कारण ही महान देश की संज्ञा दी जाती है। यह हमारा सौभाग्य है कि हम ऐसे देश के नागरिक हैं जिसका अतीत और वर्तमान दोनों ही गौरवशाली हैं। इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम विश्व की प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं में सम्मिलित है। न जाने कितने ही देशभक्तों के त्याग और बलिदान के पश्चात हमारे देश को सैकड़ों वर्षो की गुलामी से 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। यद्यपि देश को स्वतंत्र हुए 75 वर्षों की अवधि व्यतीत हो चुकी है तथापि हमारा देश अभी भी विकसित राष्ट्रों की सूची में स्थान नहीं बना सका है और अनेक समस्याएं हमारी प्रगति की राह में रुकावट बनी खड़ी हैं। ऐसे में देश की वर्तमान परिस्थितियों के दृष्टिगत अगले 25 वर्षों में देश के सर्वांगीण विकास का खाका खींचा गया है और यह आशा की गई है कि स्वतंत्रता के 100 वर्ष पूर्ण होने तक हम अपने देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में सक्षम हो सकेंगे और हमारा देश संपूर्ण विश्व में अपनी एक अलग पहचान स्थापित कर सकेगा।
ऐसा माना जा रहा है कि स्वतंत्रता के बाद जिस समर्थ, सक्षम और आत्मनिर्भर भारत के निर्माण का स्वप्न हमारे महापुरुषों ने देखा था, अब उस स्वप्न के साकार होने का समय आ गया है। वस्तुत: देखा जाए तो विगत 75 वर्षों में भारत के उत्कर्ष और उत्थान के स्वर्णिम अध्याय भविष्य के आत्मनिर्भर भारत की नींव बन रहे हैं। स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद के आगामी 25 वर्ष के समय को 'अमृत काल' की संज्ञा दी गई है। हमारी सनातन परंपरा में भी 75 से 100 वर्ष के बीच की वय अमृत काल के रूप में निरूपित की गई है। अमृत काल का यह समय भारत उदय की बेला है। बदलते वैश्विक समीकरणों में ऐसे भारत का उदय जो सक्षम और सामर्थ्यवान होने के साथ-साथ विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान भी रखता हो, यही अमृत काल की अवधि में भारत का महत्वपूर्ण लक्ष्य है।
'अमृत काल' वस्तुतः वैदिक ज्योतिष से निकला एक शब्द है जिसका अर्थ है किसी भी नए काम की शुरुआत के लिए सही समय। यही वह समय है जब बड़ी से बड़ी उपलब्धि को प्राप्त किया जा सकता है।
अमृत काल की बात करते हुए देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 15 अगस्त 2022 को दिए गए भाषण के मुख्य बिंदुओं का स्मरण होना स्वाभाविक ही है। देश के 76वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘आज जब हम अमृत काल में प्रवेश कर रहे हैं, अगले 25 वर्ष हमारे देश के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।’’ उन्होंने कहा कि जब वह 130 करोड़ देशवासियों के सपनों को देखते हैं और उनके संकल्पों की अनुभूति करते हैं तो आने वाले 25 साल के लिए देश को ‘‘पंच प्रण’’ पर अपनी शक्ति, अपने संकल्पों और अपने सामर्थ्य को केंद्रित करना है। उन्होंने कहा, ‘‘हमें पंच प्रण को लेकर 2047 तक चलना है जब आजादी के 100 साल होंगे। आजादी के दीवानों के सारे सपने पूरा करने का जिम्मा उठाकर चलना है।’’
प्रधानमंत्री ने ‘‘विकसित भारत’’ को पहला प्रण बताया और कहा कि इससे कुछ कम नहीं होना चाहिए। गुलामी की हर सोच से मुक्ति पाने को दूसरा प्रण बताते हुए कहा कि गुलामी का एक भी अंश अगर अब भी है, तो उसको किसी भी हालत में बचने नहीं देना है। उन्होंने कहा कि इस सोच ने कई विकृतियां उत्पन्न की हैं, इसलिए गुलामी की सोच से मुक्ति पानी ही होगी। प्रधानमंत्री ने विरासत पर गर्व करने को तीसरा प्रण बताया और कहा कि यही वह विरासत है जिसने भारत को स्वर्णिम काल दिया है। उन्होंने एकता और एकजुटता को चौथा प्रण तथा नागरिकों के कर्तव्य को पांचवां प्रण बताया। उन्होंने कहा, ‘‘आज जब अमृत काल की पहली प्रभात है, हमें इस 25 साल में विकसित भारत बना कर ही रहना है। अपनी आँखों के सामने इसे करके दिखाना है।’’
यदि देश के विकास के संदर्भ में किए गए प्रयासों की बात करें तो आज नौ करोड़ घरों में महिलाएँ उज्ज्वला योजना से लाभान्वित होकर धुएँ से मुक्ति के साथ एलपीजी चूल्हे पर भोजन बना रही हैं। अटल पेंशन योजना लगभग चार करोड़ बुजुर्गों के लिए सहारा बनी है तो प्रधानमंत्री आवास योजना में 2.38 करोड़ परिवारों को अपना पक्का मकान मिला है। इसी प्रकार प्रधानमंत्री जनधन योजना के अंतर्गत 45 करोड़ से अधिक लोगों के बैंक खाते खुले हैं और उनमें एक लाख 66 हजार करोड़ की राशि जमा हुई है।
स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत देश के छह लाख से अधिक गांव आज खुले में शौच के कलंक से मुक्त होकर स्वच्छता की मिसाल प्रस्तुत कर रहे हैं। लगभग 47 लाख श्रमिकों को प्रधानमंत्री श्रमयोगी मानधन योजना का लाभ मिल रहा है तो देश के लगभग साढ़े नौ करोड़ ग्रामीण घरों में नल के माध्यम से शुद्ध पेयजल पहुंच रहा है। बीते कुछ वर्षों में सड़क और बिजली जैसी सुविधाओं के बाद अब गांवों तक ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क अर्थात डेटा की ताकत पहुंच रही है।
भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि है। अतः देश में किसानों तक अधिकाधिक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने हेतु वर्ष 2013-14 के 21933 करोड़ के सापेक्ष कृषि विभाग का बजट 2022-23 में एक लाख 24 हजार करोड़ रुपए किया गया है। इसी प्रकार वर्ष 2013-14 में हमारा खाद्यान्न उत्पादन 265 मिलियन टन था जो 2021-22 में 316 मिलियन टन के रिकार्ड स्तर पर जा पहुंचा है। बागवानी फसलों का उत्पादन भी 334 मिलियन टन के रिकार्ड स्तर को छू रहा है।
सरकार ने स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों के अनुसार किसानों को लागत मूल्य का कम से कम डेढ़ गुना समर्थन मूल्य प्रदान करने का कदम उठाया है। वर्ष 2013-14 में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1310 रुपए और गेहूं का 1400 रुपए प्रति क्विंटल था जो कि वर्ष 2021-22 में बढ़कर क्रमश: 1940 और 2015 रुपए प्रति क्विंटल हो गया है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के अंतर्गत अब तक 11.30 करोड़ किसानों को 1.82 लाख करोड़ रुपए प्रदान किए जा चुके हैं जबकि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के दायरे में अब तक 37.52 करोड़ किसान आए हैं और दस करोड़ से अधिक किसानों को लगभग एक लाख 16 हजार करोड़ रुपए का दावा भुगतान प्राप्त हुआ है।
वर्ष 2021-22 में बैंक या सहकारी संस्थाओं के माध्यम से किसानों को मिलने वाले कर्ज की राशि 2013-14 की तुलना में दोगुनी से अधिक बढ़कर लगभग 16.5 लाख करोड़ रुपए हो गई है। किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के माध्यम से अधिकाधिक किसानों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से फरवरी 2020 से विशेष अभियान प्रारंभ किया गया जिसमें तीन करोड़ से अधिक नए केसीसी कार्ड बनाए गए हैं।
इसके अतिरिक्त शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, रेल, सड़क, पर्यटन तथा औद्योगीकरण में प्रगति हेतु सार्थक प्रयास करते हुए और नए रोजगार सृजन के साथ-साथ स्वरोजगार को बढ़ावा, अर्थव्यवस्था में सुधार तथा पारदर्शी एवं भ्रष्टाचार मुक्त तंत्र की स्थापना के प्रयासों से देश के विकास का खाका खींचा गया है। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 की मुक्ति के साथ शांति और लोकतंत्र की स्थापना, उत्तर-पूर्वी राज्यों में विकास की राह खुलना, कोविड-19 महामारी का बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ मुकाबला और टीकाकरण अभियान के साथ प्रतिरक्षण, विज्ञान, तकनीकी एवं शिक्षा के क्षेत्र में नवीन आयाम के साथ भारत उदय का अमृत काल प्रारंभ हो चुका है।
भारत के विकसित राष्ट्र के रूप में आगे बढ़ने का स्वप्न तभी साकार हो सकता है, जब देश के नागरिक अपने कर्तव्यों को समझकर तन्मयता से पालन करें। नागरिक इसके लिए तभी प्रोत्साहित होंगे, जब नेता अपने आचरण से उदाहरण प्रस्तुत करेंगे। इस समय देश की सबसे बड़ी चुनौती अर्थव्यवस्था की गति और रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना है जिससे बेरोजगारों को रोजगार मिल सकें। देश को अगले 25 वर्षों में विकसित राष्ट्र बनाने का प्रण लेने, व्यवस्था को भ्रष्टाचार और परिवारवाद से मुक्त करने, नई खोज तथा अनुसंधान पर बल देने और नई शिक्षा नीति से रोजगारपरक शिक्षा को बढ़ावा देने जैसी बातों का लक्ष्य भी विकास को गति देना है।
भारत अपनी आय का एक बड़ा भाग हथियारों, रक्षा उपकरणों और विमानों पर खर्च करता है। यदि इनका निर्माण भारत में प्रारंभ हो जाए तो दूसरे देशों पर सामरिक निर्भरता में कमी, पूंजी की बचत और देश में रोजगार में वृद्धि होगी। आत्मनिर्भरता की सबसे बड़ी आवश्यकता ईंधन और खाद्य तेलों के क्षेत्र में है। ऊँचे दामों पर इनके आयात से देश में महंगाई की समस्या बढ़ती है। सौर और पवन जैसे अक्षय ऊर्जा के स्रोतों का तीव्र विकास करके ऊर्जा की निर्भरता को कम या समाप्त किया जा सकता है। इससे पूंजी की बचत होने के साथ तेल-निर्यातक देशों की मनमानी से भी मुक्ति मिलेगी। साथ ही किसानों को गेहूं, धान और गन्ने के अतिरिक्त तिलहन और दलहन की खेती के लिए भी प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
हम आज भी स्कूली शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा और सुरक्षित पेयजल के क्षेत्रों में अत्यधिक पिछड़े हुए हैं। इन क्षेत्रों का मिलाजुला उत्तरदायित्व राज्य और केंद्र सरकार का है। सरकारी स्कूल-कालेजों और चिकित्सालयों की लचर व्यवस्था के कारण गरीब परिवार भी अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में पढ़ाने और इलाज के लिए निजी चिकित्सालयों में जाने पर मजबूर हो जाते हैं, जिसमें उनकी कमाई का बड़ा हिस्सा खर्च हो जाता है। इसी प्रकार देश की लगभग आधी आबादी दूषित पेयजल पीने को विवश है। इसलिए मुफ्त की रेवड़ियाँ बाँटने के बजाय यदि सरकारी स्कूलों में अच्छी शिक्षा और चिकित्सालयों में अच्छा उपचार तथा आमजन को पीने लायक सुरक्षित पानी उपलब्ध कराया जाए तो यह अधिक उचित होगा। इसी प्रकार भ्रष्टाचार लगभग सर्वत्र लागू है और चाहे सार्वजनिक क्षेत्र हो अथवा निजी क्षेत्र, कोई भी इससे अछूता नहीं रह सका है। हमारे देश के विकास में भ्रष्टाचार भी एक बहुत बड़ी बाधा है जिसका निदान किया जाना अनिवार्य है।
सामाजिक क्षेत्र की ओर दृष्टिपात करें तो भारत में आज भी जाति, धर्म तथा संप्रदाय के नाम पर मतभेद एवं विवाद सामान्य हैं और महिलाओं की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। इसी प्रकार बढ़ता हुआ पर्यावरण प्रदूषण भी चिंता का विषय बना हुआ है तथा बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, तीव्र जनसंख्या वृद्धि और अर्थव्यवस्था की समस्याएं भी लगातार तेजी से पांव पसार रही हैं। इनमें से धार्मिक आधार पर विवाद की समस्या कुछ कम हुई है, परंतु शेष मुद्दों और जलवायु परिवर्तन से बचाव के उपायों पर नीतियां बनाना अत्यंत आवश्यक है।
केंद्र और राज्यों की वर्तमान सरकारें जिस सोच और संकल्प के साथ ग्रामीण से लेकर शहरी क्षेत्रों और राज्यों तथा देश के विकास हेतु सार्थक योजनाएं बनाने और क्रियान्वित करने में लगी हैं तथा शिक्षा, कृषि, स्वास्थ्य, अनुसंधान, रोजगार और अर्थव्यवस्था आदि प्रत्येक क्षेत्र में हम निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर हो रहे हैं, उसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आने वाला ढाई दशक भारत के उस स्वर्णिम वैभव को वापस लौटाने वाला होगा जब हम गर्व से कह सकेंगे कि भारत समृद्धि और खुशहाली का देश है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार यह अमृत काल हमारे लिए कर्तव्यकाल है। हमें प्रयत्नों की परिसीमा और परिश्रम की पराकाष्ठा तक पहुंचकर अमृत काल में भारत उदय का संकल्प पूर्ण करना है।
इस संबंध में यह भी विचारणीय है कि किसी भी देश का विकास उसके नागरिकों पर निर्भर करता है और देश के विकास को तभी गति मिल सकती है, जब उसके नागरिक अपना-अपना कर्तव्य समझते हुए ईमानदारी से काम करें। इसलिए हमें यह समझना होगा कि नेता हों या सरकार, हमें सपने दिखा सकते हैं और उन्हें साकार करने के लिए बढ़ावा भी दे सकते हैं, परंतु कर्तव्य निभाना तो नागरिकों के हाथों में ही है।
अंततः हम यह कह सकते हैं कि यदि देश के सभी नागरिक अपने कर्तव्यों का भली-भांति पालन करते सरकार का सहयोग करें तो सभी चुनौतियों और बाधाओं को पार करते हुए अमृत काल में भारत अवश्य ही विकसित राष्ट्र बन सकेगा और हम राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की इन पंक्तियों को सार्थक कर सकेंगे -
"सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है?
उसका कि जो ऋषिभूमि है, वह कौन? भारतवर्ष है॥"