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विश्व का विशालतम प्रजातंत्र भारत भौगोलिक दृष्टि से विश्व का सातवाँ सबसे बड़ा देश है, जबकि जनसंख्या के दृष्टिकोण से दुनिया का सबसे बड़ा देश है। भारत की सबसे बड़ी विशेषता इसकी विविधता है। यहाँ विभिन्न धर्मों, भाषाओं, संस्कृतियों और परंपराओं का संगम होता है। भारत में 22 से अधिक आधिकारिक भाषाएँ हैं और यहाँ हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और अन्य धर्मों के अनुयायी रहते हैं। यह विविधता न केवल सांस्कृतिक है, बल्कि भौगोलिक, ऐतिहासिक और सामाजिक भी है।

आज भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में एक है और यह 2047 तक उच्च मध्य आय के दर्जे तक पहुंचने की आकांक्षा के साथ इस पथ पर आगे बढ़ने के लिए तत्पर है। देश यह भी सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि विकास का जारी क्रम जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार है और 2047 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का अपना लक्ष्य हासिल करने के अनुरूप ही है।

औपनिवेशिक दमन काल से लेकर भारतीय विरासत और विज्ञान की दुनिया भर में मान्यता भारत के प्रति पश्चिमी देशों के रवैये में परिवर्तन को दर्शाती है। भारत अब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का दरवाजा खटखटा रहा है। भारत के दावे को व्यापक समर्थन भी मिल रहा है। कई मामलों में भारत विरोधी रुख अपनाने वाले देश भी सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के मामले में भारत का समर्थन कर रहे हैं। स्पष्ट है कि नया भारत अंतरराष्ट्रीय मामलों में महज दर्शक बनकर नहीं रहने वाला, बल्कि एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए सक्रिय खिलाड़ी की भूमिका निभाने के लिए तैयार है। एक विराट संस्कृति के धनी इस विशाल राष्ट्र का अब यही नया कर्तव्य है।

भारत की प्रतिष्ठा के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी विश्वसनीयता भी बढ़ी है। यह प्रतिष्ठा सद्भावना से जुड़ी है, जिसका प्रभाव एशिया और अफ्रीका के कई देशों में स्पष्ट दिखता है। कई देश भारत को मार्गदर्शक और भरोसेमंद मित्र के रूप में मानते हैं और वैश्विक मंच पर उनके हितों की वकालत करने में उसकी भूमिका की सराहना करते हैं। इसका एक उदाहरण अफ्रीकी संघ को जी-20 में शामिल कराने का है जो भारत की पहल पर ही संभव हुआ।

भारत की वैक्सीन कूटनीति ने भी वैश्विक पटल पर अमिट छाप छोड़ी है। घरेलू स्तर पर चुनौतियों का सामना करने के बावजूद भारत ने तमाम गरीब देशों को टीके वितरित किए जबकि कनाडा जैसे विकसित देश अपने ही नागरिकों के लिए टीकों की जमाखोरी के लिए आलोचना का सामना करते रहे। योग और आयुर्वेद जैसी पद्धतियों के प्रभाव से भी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और प्राचीन भारतीय ज्ञान ने वैश्विक प्रभाव डाला है। अपनी सांस्कृतिक शक्ति के दम पर भी भारत विश्व को अभिभूत कर रहा है और अपनी प्राचीन गौरवशाली विरासत को पुनर्स्थापित करने में जुटा हुआ है।

भारत के पास विशेषताओं का एक संयोजन है, जो अन्य देशों के पास नहीं है। प्रतिभा, महत्वाकांक्षा, स्तरीयता, सकारात्मकता, विविधता में एकता, शिक्षा के प्रति एक गहन प्रतिबद्धता, आईटी, औषध तथा वैज्ञानिक शोध जैसे क्षेत्रों में विश्व स्तर की उत्कृष्टता, एक विस्तृत रूप से बढ़ता हुआ मध्यवर्ग तथा एक जीवंत लोकतंत्र आदि भारत की ऐसी विशिष्टताएं हैं जो उसे विश्व के अन्य सभी देशों से अलग बनाती हंा और उसकी प्रगति का मूल आधार भी हैं।

आने वाले वर्षों में भारत का रूपांतरण इसका रणनैतिक लक्ष्य होगा। आधुनिकीकरण तथा समन्वित विकास के माध्यम से स्वयं को 21 वीं सदी की सफल शक्ति में बदलने के प्रयास के क्रम में भारत को वैश्विक निवेशकों के साथ साझेदारी करते हुए देखना अपेक्षित है। भारत के मूलभूत ढांचे का आधुनिकीकरण, विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा, राजनैतिक, धार्मिक, पारिस्थितिक तथा आर्थिक महत्व की एक विस्तृत परियोजना, आने वाले वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करना, साझा हितों को बढ़ावा, सबके लिए इस विश्व को एक बेहतर स्थान बनाते हुए शेष अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ कार्यवाहियों में सहयोग करना आदि कार्यों की संपूर्ण विश्व को भारत से अपेक्षा है। भारत विश्व मंच का एक जिम्मेदार सदस्य है और अच्छाई, स्थिरता तथा संपन्नता के लिए एक शक्ति। विश्व को और ज्यादा बेहतर, सुरक्षित तथा खुशहाल बनाने के लिए काम करने से भारत का महत्व लगातार बढ़ता जाएगा। स्थिरता, शांति और समृद्धि की शक्ति के रूप में यह सकारात्मक भूमिका निभाएगा, ऐसी विश्व समुदाय की अपेक्षा है।

निश्चित रूप से भारत के पास प्रगति के अनेक अवसर हैं और संपूर्ण विश्व भारत से विभिन्न सकारात्मक अपेक्षाएं रखता है किंतु भारत के सामने चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। हमारे पास-पड़ोस में चीन का बढ़ता प्रभाव सबसे बड़ी चुनौती है। चीन को आज वैश्विक महाशक्तियों में शुमार किया जाता है तो इसके पीछे कुछ ऐसे कारण हैं जिनका भारत में अभाव दिखाई देता है। भारत और चीन के दृष्टिकोण में अंतर को यह अंग्रेज़ी कहावत स्पष्ट कर देती है- India Promises but China Delivers अर्थात् भारत केवल वादे करता है, लेकिन चीन वादा करके उन्हें निभाता भी है।

पिछले दो दशकों से चीन पूरी दृढ़ता के साथ म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका और नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। उसके काम करने का तरीका अलग है, वह केवल धन ही उपलब्ध नहीं कराता, बल्कि इन देशों में बुनियादी ढाँचा बनाने का काम भी करता है। चीन ने इन देशों में सड़कें, पुल, बंदरगाह और हवाई अड्डों की कई परियोजनाएँ पूर्ण की हैं। आज चीन दक्षिण एशिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता हुआ दिख रहा है और भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा है।

रूस हमारा पुराना मित्र है लेकिन पिछले कुछ समय से अमेरिका के साथ हमारी बढ़ती निकटता के कारण रूस हमारे पड़ोसी पाकिस्तान और चीन के साथ संबंधों को बढ़ावा दे रहा है। यह भारत के लिये एक चुनौती तो है ही, साथ ही चिंता का कारण भी है।

भारत की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (1170 डॉलर) 161 अन्य देशों की तुलना में कम है। विश्व बैंक के गरीबी के आंकड़े बताते हैं कि भारत में 456 मिलियन लोग गरीब हैं जो दुनिया के गरीबों का लगभग एक तिहाई है और पूरे उप-सहारा अफ्रीका से भी अधिक है।
स्वास्थ्य और पोषण लक्ष्यों के मामले में भारत काफी पीछे है। विश्व के आधे से अधिक कम वजन वाले बच्चे यहीं रहते हैं तथा विश्व भर में होने वाली मातृ एवं शिशु मृत्यु में 5 में से 1 मृत्यु यहीं होती है।

भारत में सामाजिक बहिष्कार एक कटु वास्तविकता बनी हुई है। अनुसूचित जनजातियाँ सामान्य जनसंख्या से बीस वर्ष पीछे हैं और अनुसूचित जातियाँ दस वर्ष पीछे हैं। आर्थिक उदारीकरण के लगभग 25 वर्ष बीत जाने के बाद भी देश में आर्थिक विकास का लाभ समाज के सभी वर्गों तक पर्याप्त रूप से नहीं पहुँच पाया है, जो तीव्र आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है। अभी भी भारत में स्वास्थ्य, शिक्षा और सुरक्षा जैसे आधारभूत सामाजिक परिणामों को प्राप्त करने की दिशा में प्रयास जारी हैं। पिछले कुछ समय से भारत के आर्थिक विकास में आई कमी का कारण वैश्विक आर्थिक संकट बताया जा रहा है, लेकिन विकास दर को बनाए रखने में विफलता का एक बड़ा कारण प्रतिभाओं का समुचित सदुपयोग न होना और कुशल श्रम की कमी भी है।

कोई भी देश अपनी विकास दर को तभी बनाए रख सकता है, जब आधारभूत उद्योगों के सभी मानकों पर उसके प्रदर्शन में निरंतरता बनी रहे। पारंपरिक तरीके से भारत की अर्थव्यवस्था उस तेज़ी से नहीं बढ़ सकती, जिसकी अपेक्षा और आवश्यकता वैश्विक महाशक्ति कहलाने के लिये अनिवार्य मानी जाती है। इसके लिये सार्वजनिक और निजी क्षेत्र को उत्पादकता और निवेश बढ़ाने के लिये नवाचार को अपनाना होगा जो कम चुनौतीपूर्ण नहीं है।

भारत विश्व का सबसे बड़ा हथियार आयातक देश है, और यह भी उतना ही सत्य है कि हथियारों के मामले में आत्मनिर्भर हुए बिना कोई भी देश वैश्विक महाशक्ति होने का दावा नहीं कर सकता। अब यह भी स्पष्ट हो चुका है कि कोई भी महाशक्ति हथियारों की अपनी तकनीक किसी भी देश से साझा नहीं करती। ऐसे में भारत का इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना एक बड़ी चुनौती है।

भारतीय उद्योगों, उद्यमियों और निवेशकों को विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की बाधाओं को पहचानना होगा। सरकार को दस अंकों में विकास दर हासिल करने के लिये विकास कार्यों को रफ़्तार देनी होगी और बड़ी-छोटी परियोजनाओं को समय पर पूरा करना होगा, जो एक प्रमुख चुनौती है।

देश में नवाचार, शोध एवं विकास और विदेशी निवेश में रुकावट बनने वाली विभिन्न चुनौतियों और मुद्दों में रिश्वत, भ्रष्टाचार और कुशल श्रम का न होना शामिल हैं।
मौजूदा समय में देश में विदेशी निवेश लाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो गया है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय उद्योग जगत भारत के नियम-कानूनों, भ्रष्टाचार और बुनियादी विकास से जुड़े मुद्दों को लेकर सावधानी बरत रहा है।

देश में शिक्षा व्यवस्था की पहली बड़ी चुनौती है, उसमें कौशल विकास का अभाव होना। उत्कृष्ट संस्थानों से हर साल निकलने वाले लाखों छात्रों में कौशल की बेहद कमी है और उन्हें अंतरराष्ट्रीय मानकों पर बेहद कमज़ोर माना जाता है। अगले दो दशकों तक कुशल श्रम की आवश्यकता को पूरा करने के लिये लगभग 70 लाख लोगों को विशिष्ट शिक्षा और प्रशिक्षण उपलब्ध कराने की आवश्यकता होगी। पारंपरिक शिक्षा नीतियों के साथ ऐसा करना संभव नहीं होगा।

निस्संदेह देश को विकसित बनाने के लिए कई और महत्त्वपूर्ण सेवाओं तथा सुविधाओं की गुणवत्ता बढ़ाने की आवश्यकता होगी। देश में प्रत्येक नागरिक के पास सुविधापूर्ण आवास, चौबीस घंटे शुद्ध पेयजल और बिजली आपूर्ति, हाई-स्पीड ब्राडबैंड और बैंकिंग सुविधाओं तथा उच्च जीवन प्रत्याशा के साथ विश्व स्तरीय और सस्ती स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की पहुंच बढ़ानी होगी। सभी क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी का अधिकाधिक प्रयोग, सार्वजनिक परिवहन और दूरसंचार सहित अत्याधुनिक बुनियादी ढांचा निर्मित करना होगा। देश के शहरों, बाजारों तथा व्यापारिक और वित्तीय केंद्रों को दुनिया के सबसे बड़े और शीर्ष केंद्रों के रूप में पहचान दिलानी होगी। उत्पादन, सेवाओं, अनुसंधान और नवाचार में आगे बढ़ना होगा। एक ऐसी जीवंत ग्रामीण अर्थव्यवस्था बनानी होगी, जिसमें ग्रामीण जीवन स्तर शहरी क्षेत्रों के बराबर दिखाई दे। साथ ही औसत ग्रामीण आय देश की प्रति व्यक्ति आय के बराबर लानी होगी।

इन चुनौतियों के बावजूद, भारत सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है और वित्त वर्ष 2023-24 में इसका तीव्र गति से विकास हुआ है। बुनियादी ढाँचे में सार्वजनिक निवेश और रियल एस्टेट में बढ़ते घरेलू निवेश से विकास को गति मिली है। कृषि क्षेत्र में कम प्रदर्शन के बावजूद, उत्पादन क्षेत्र में 9.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई और सेवाओं के क्षेत्र में स्थिरता बनी रही। घाटे में कमी और मजबूत विदेशी पोर्टफोलियो निवेश प्रवाह के साथ, विदेशी मुद्रा भंडार अगस्त 2024 की शुरुआत में 67,010 करोड़ डाॅलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया। मध्य अवधि में, विकास के सकारात्मक रहने की आशा है, विशेष रूप से सेवा क्षेत्र में। वित्त वर्ष 2024-25 में विकास दर 7 प्रतिशत तक पहुंच सकती है और वित्त वर्ष 2025-26 और 2026-27 के दौरान मजबूत बनी रहेगी।

यदि हम वर्तमान संदर्भ में देखें तो वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) 20-25 अरब डॉलर रहने का अनुमान है। बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट में यह अनुमान जाहिर किया गया है। भारत सरकार द्वारा देश में व्याप्त विभिन्न समस्याओं के समाधान एवं देश के विकास हेतु प्रभावी योजनाएं बनाने एवं उनके सफल क्रियान्वयन के फलस्वरुप विश्व फलक पर भारत की स्थिति मजबूत हुई है।

वैश्विक विश्लेषण भारत की विकास संभावनाओं के लिए बहुत सकारात्मक रहे हैं। आशा है कि अगले कुछ वर्षों में भारत में 100 अरब डॉलर का बड़ा निवेश आएगा। भारत संभवतः सदी के अंत तक चीन से 90 से 100% बड़ा होगा और अमेरिका की तुलना में यह 30 से 40% विशाल होगा। भारत का दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना 30-40 वर्ष की समय सीमा में कभी भी संभव हो सकता है। विश्व ने जितना सोचा था, भारत उससे कहीं अधिक तेजी से आगे बढ़ा है। धूमिल वैश्विक दृष्टिकोण के बीच भारत का चमकता स्थान सुरक्षित है और भारत की वृद्धि दर मजबूत बनी हुई है।

निष्कर्षतः हम यह कह सकते हैं कि अपने विकास के मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं और चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए तथा विश्व की समस्त अपेक्षाओं को यथासंभव पूर्ण करते हुए भारत अपनी प्रगति के प्रत्येक अवसर का पूरा लाभ उठाएगा। निकट भविष्य में भारत अंतरराष्ट्रीय फलक पर देदीप्यमान सूर्य की भांति सभी को अपनी चमक से प्रकाशित करते हुए एक बार पुनः संपूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करेगा, इसमें कोई भी संशय नहीं है। 

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