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प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में उन्नति के शिखर पर पहुंचने का सपना देखता है और उसने पूरा करने का भरसक प्रयास भी करता है। हर कोई चाहता है कि उसके सपनों या कल्पना के संसार में दिखाई देने वाली वस्तुएं उसके पास हों किन्तु यह भी एक कड़वा सत्य है कि जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को सब कुछ नहीं मिलता। समाज में जो व्यक्ति अपने निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त कर आगे बढ़ जाता है, उसे सभी सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। ऐसे लोगों को हम सफल मनुष्यों की श्रेणी में रखते हैं लेकिन प्रयासों के बाद भी यदि कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता तो समाज उसे असफल मानता है। सार यही है कि इस संसार में सफलता ही व्यक्ति को सम्मान दिलाती है और असफल व्यक्ति को समाज सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता। ऐसे में सफलता का महत्वपूर्ण होना स्वाभाविक ही है।

"जब हम सफलता की बात करते हैं तो उसके साथ ही असफलता का भय भी स्वयं प्रकट हो जाता है। हम कितना भी आशान्वित होकर कार्य करने के बारे में सोचें किंतु कहीं न कहीं असफल होने की बात मन में आ ही जाती है। यह तो निश्चित है कि सफलता की राह सरल नहीं है और यदि हमें सफल होना है तो बाधाओं से पार पाना होगा। ऐसे में कई बार यह होता है कि हम इन बाधाओं का सामना करने से पहले ही डर जाते हैं और यह डर हमारे मन पर हावी हो जाता है। इसी प्रकार किसी कार्य को कुशलता पूर्वक संपन्न करने में स्वयं को सक्षम न मानने का डर भी हमें घेर लेता है। कभी-कभी हम लक्ष्य को अधिक बड़ा या जोखिम वाला मानकर असफलता के बारे में अत्यधिक सोचने लगते हैं। ऐसे ही अन्य कई कारणों से हम प्रयास किए बिना ही हार मान लेते हैं अथवा भय युक्त वातावरण का निर्माण कर लेते हैं जिसके कारण अनेक प्रयासों के बाद भी सफलता दूर की कौड़ी बन जाती है।

असफलता का डर इतना बड़ा होता है कि कई बार हम अपने लक्ष्य की ओर कदम ही नहीं बढ़ा पाते हैं। हमें यही डर लगा रहता है यदि हम असफल हो गए तो क्या होगा? यह डर हमें जोखिम लेने से पहले ही रोक देता है। यदि यह भय लगातार बना रहे तो हमारे आत्मविश्वास में कमी आने लगती है। हम भविष्य में अपनी उपेक्षा होने, समाज में तिरस्कार होने तथा असफल व्यक्तियों में गिनती होने के डर से अपनी मंजिल की ओर बढ़ाने से पूर्व ही डगमगा जाते हैं। इस प्रकार हम प्रयास करने से ही पीछे हटने लगते हैं, काम को बार-बार टालने लग जाते हैं और धीरे-धीरे कार्य न करने की मानसिकता से ग्रसित होकर हिम्मत हार कर बैठ जाते भय हमारी बुद्धिमत्ता का सबसे बड़ा शत्रु है। यह हमारे दृष्टिकोण तथा जीवन के प्रति सोच को कुप्रभावित करता है। हम जब भी असफलता से भयातुर होते हैं, हमारे भीतर निराशा, आत्मग्लानि तथा अपमानित होने का भाव उत्पन्न होता है। कुल मिलाकर हमारे मस्तिष्क की शक्तियों का विकास अवरुद्ध सा हो जाता है। हम किसी भी गतिविधि या लक्ष्य की बात करें, यदि असफलता का डर हमारे भीतर हो तो हम उस गतिविधि या लक्ष्य से दूर भागते ही दिखेंगे और उन कार्यों या लक्ष्यों को पूरा न कर पाने का भय हमें उनके संबंध में सार्थक प्रयास करने से पहले ही असफलता की ओर धकेल देगा।

अब प्रश्न यह उठता है कि असफलता के डर पर काबू कैसे पाया जाए क्योंकि सफलता पाने के लिए हमें इस डर पर विजय पाना अनिवार्य है। सबसे पहले तो सभी को यह समझना आवश्यक है कि सफलता एवं असफलता मानव जीवन के दो तत्व हैं और असफलता का यह अर्थ कदापि नहीं है कि हम आगे भी सफल नहीं हो सकते। जीवन में सफलता किसी लक्ष्य से घबराकर, भाग कर या असफलता के डर से नहीं मिलती और न ही कोई अन्य व्यक्ति आपके स्थान पर कार्य करके आपको सफलता दिला सकता है। सफलता हमारे मजबूत इरादों, साहस और आत्मविश्वास के बल पर ही मिल सकती है। हमारा सकारात्मक दृष्टिकोण हमारी सबसे बड़ी ताकत है और चुनौतियों का सामना करने की दृढ़ इच्छाशक्ति हमारी पूंजी । यदि हम इन अस्त्रों के साथ अपने लक्ष्य की ओर लगातार कदम बढ़ाएँ तो सफलता अवश्य प्राप्त कर सकेंगे।

अब यदि असफलता की बात की जाए तो हमें समाज, राष्ट्र और विश्व में सफलता का कीर्तिमान स्थापित करने वाले व्यक्तियों के जीवन के बारे में भी सोचने की आवश्यकता है। हेनरी फोर्ड ने फोर्ड कंपनी की स्थापना से पूर्व पांच व्यवसायों में असफलता का मुंह देखा था। कोई अन्य व्यक्ति तो संभवतः निराशा और अवसाद का शिकार हो जाता किंतु हेनरी फोर्ड ने असफलता के डर पर जीत पाकर नया इतिहास रचा। इसी प्रकार 1000 असफल प्रयोगों के बाद बल्ब बनाकर एडिसन अमर हो गए। संसार के अनेक महापुरुषों, उद्योगपतियों, राजनेताओं तथा अन्य विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाले व्यक्तियों की सफलता का मूल कारण यही रहा है कि उन्होंने कभी भी असफलता के डर को स्वयं पर विजय प्राप्त नहीं होने दी। साथ ही असफल होने पर भी अपनी कमियां ढूंढ कर उन्हें दूर करते हुए सफलता का प्रयास किया और अंततः सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए।

आज जो व्यक्ति हमारे प्रेरणा स्त्रोत तथा आदर्श हैं, यदि वे असफलता के डर से हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाते तो न ही स्वयं सफल होते और न ही दूसरों को प्रेरित कर पाते। हमें यह ध्यान रखना चाहिए इस संसार में पशु पक्षी भी असफल होने के कारण लक्ष्य से पीछे नहीं हटते, हम तो फिर भी मनुष्य हैं जिसे ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति की संज्ञा दी जाती है। प्रसिद्ध कवि सोहन लाल द्विवेदी ने भी अपनी कविता के माध्यम से यही समझाया है- "लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।" विद्वान भी असफलता को सफलता की सीढ़ी मानकर निरंतर प्रयास करने की शिक्षा देते हैं। अतएव हमें यह समझना होगा कि असफलता के डर पर विजय प्राप्त करके ही सफलता मिल सकती है क्योंकि यह डर ही सफलता के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है।

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