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मानव को ईश्वर की सर्वोत्तम कृति माना जाता है और मानव योनि में जन्म लेना सौभाग्य। ऐसा नहीं है कि अन्य जीव-जन्तु प्राकृतिक तंत्र में अपना कोई महत्त्व या स्थान नहीं रखते किंतु यह भी एक विशिष्ट सत्य है कि मानव उन सबमें सर्वश्रेष्ठ है और उसने समय-समय पर यह प्रमाणित भी किया है। इस संसार में जो एक तथ्य सभी जीव-जंतुओं और मानव पर समान रूप से लागू होता है, वह है जीवन और मृत्यु। संसार में कोई भी ऐसा नहीं है जो जन्म न लेता हो और जन्म लेने वाले हर व्यक्ति अथवा जीव-जंतु की मृत्यु होना भी एक सर्वमान्य और शाश्वत सत्य है किन्तु इससे जीवन की महत्ता कम नहीं होती।
वर्तमान समाज में एक विकृति चारों ओर दिखाई दे रही है जो है जीवन से हार मान लेने की स्थिति। आज प्रतिस्पर्धा के दौर में हम दूसरों से आगे निकलने की अंधी दौड़ में अपनी वास्तविकता को भूलते जा रहे हैं और ऐसे में थोड़ी सी असफलता ही हमें विचलित कर जाती है। इस भौतिकवादी संसार में जो लोग सुख-सुविधाओं से संपन्न हैं, उन्हीं को समाज सम्मान देता है। इसके विपरीत निर्धन अथवा संतोषी व्यक्ति को समाज में असफल माना जाता है। यही कारण है कि लोग जीवन में अधिक से अधिक पैसा कमाने और नित नई ऊँचाइयों को छूने के प्रयासों में ही लगे रहते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें अपनी नैतिकता और ईमानदारी को भी छोड़ना क्यों न पड़ जाए?
आज आधुनिकीकरण में उलझा मानव सफलता की नित नई परिभाषाएँ खोजते हुए अपनी अंतहीन इच्छाओं के मरुस्थल में भटक रहा है और सच्ची सफलता तथा सुख-शांति की प्यास से व्याकुल होकर अनेक मानसिक रोगों का शिकार बन रहा है। उसे पता ही नहीं कि जीवन में सफलता प्राप्त करना और सफल जीवन जीना, दोनों अलग-अलग बातें हैं। अतः हमें गंभीरतापूर्वक यह समझना चाहिए कि इच्छित फल को प्राप्त करना ही सफलता नहीं है और इस संसार में सभी को सब कुछ नहीं मिल सकता लेकिन जब हम इन बातों को स्वीकार नहीं कर पाते तो दूसरों से अपनी तुलना अथवा समाज में बार-बार अपमानित अनुभव करने पर हम बहुत जल्दी हार मान लेते हैं और ऐसी स्थिति में कई बार लोगों को अपने जीवन का भी कोई मोह नहीं रहता।
आज समाज में जिस प्रकार आत्महत्या की घटनाएं बढ़ गई हैं, ऐसे में यह सोचना बहुत जरूरी हो जाता है कि हमारे लिए जीवन इतना मूल्यहीन कैसे हो सकता है? जो लोग बिना सोचे समझे मृत्यु के आलिंगन में समा जाते हैं उनको एक बार यह विचार अवश्य करना चाहिए कि मानव जीवन संभावनाओं से भरा हुआ है और जीवन में कोई भी असफलता या लक्ष्य कभी भी अंतिम नहीं होता। साथ ही प्रत्येक व्यक्ति की अपनी क्षमताएं और सीमाएँ हैं और उनसे परे जाकर सबको हर मंजिल हासिल नहीं हो सकती। जीवन बहुत अमूल्य है और किसी असफलता पर जीवन से हार मान लेना केवल मूर्खतापूर्ण ही कहा जा सकता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि जीवन वास्तव में क्या है? जीवन शब्द ‘जीव’ शब्द के साथ ‘ल्युट’ प्रत्यय लगाने से बना है। जीवन का अर्थ है जीवनम् अर्थात् जिन्दा रहना। इसे जन्म से मृत्यु तक का समय अथवा जिंदगी भी कहा जाता है। ‘जीवन’ शब्द का अर्थ है जीता रहना, प्राण धारण करना, जीवित दशा, जिंदगी, जीवन की आधार रूप वस्तु। समय तथा समाज के परिवर्तन के साथ-साथ ‘जीवन’ शब्द का अर्थ भी बदलता रहता है। प्रारंभ में ‘जीवन’ को मात्र अस्तित्व समझा जाता था लेकिन मनुष्य के सांस्कृतिक विकास के लिए साथ-साथ जीवन का क्षेत्र भी विस्तृत होता गया।
भारतीय विद्वानों के अनुसार-"जीवन वह नैसर्गिक शक्ति है जो प्राणियों एवं वृक्षादि को अंगों, उपांगों से युक्त करते हुए सक्रिय और सचेष्ट बनाती है जिसके फलस्वरूप वे अपना भरण-पोषण और अपने वंश की वृद्धि करते हैं।" इसी प्रकार पाश्चात्य विद्वानों का मानना है कि सार्थक जीवन ही वास्तविक जीवन है और सार्थकता के अभाव में जीवन मृत्यु के समान है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से जीवन का तात्पर्य अस्तित्व की उस अवस्था से है जिसमें वस्तु या प्राणी के अन्दर चेष्टा, उन्नति और वृद्धि के लक्षण दिखायी दें। यदि कोई वस्तु चेष्टारहित है तो उसे सजीव या जीवनयुक्त नहीं माना जाता है। दार्शनिकों के अनुसार जीवन का संबंध जीने से है, सिर्फ अस्तित्व का विद्यमान होना ही जीवन का चिन्ह नहीं है।
अतः हम यह कह सकते हैं कि हमारे जन्म से मृत्यु के बीच की कालावधि ही जीवन कहलाती है, जो कि हमें ईश्वर द्वारा दिया गया एक वरदान है। इसके अतिरिक्त जीवन का मुख्य अंग एक चेतन तत्त्व है जो जीवन की सभी क्रियाओं का साक्षी होता है। जीवन वह दशा है जो पशुओं, पौधों और दूसरे जीवित प्राणियों को अकार्बनिक और कृत्रिम चीजों से अलग करती है और जिसे सतत चलती रहने वाली चयापचय की क्रिया और वृद्धि की विशेष सामर्थ्य से पहचाना जाता है।
यहाँ यह भी विचारणीय तथ्य है कि हर एक जीवन महत्वपूर्ण है और हम आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। प्रत्येक प्रजाति, चाहे वह मनुष्य हो, पशु हो या पक्षी, इस संसार में अपने उद्देश्य की पूर्ति करते हैं और सभी एक- दूसरे को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से प्रभावित करते हैं। भले ही वह एक छोटी प्रजाति हो किंतु यदि लुप्त हो गई तो एक दिन प्राकृतिक असंतुलन उत्पन्न कर सकती है।
दार्शनिकों का मत है कि जीवन एक सुंदर उपहार है और प्रत्येक जीव का जीवन एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए होता है। पेड़, पौधे, पशु, पक्षी तथा मनुष्य से लेकर कीड़े-मकोड़े एवं सूक्ष्म जीव-जंतु तक, सभी अपने-अपने तरीके से प्रकृति और अन्य जीवों के विकास में योगदान करते हैं। वास्तव में ‘जीवन’ एक ऐसा शब्द है जिसे समझने का प्रयत्न किया जा सकता है, परन्तु जीवन को समझ पाना इतना सरल नहीं है।
वास्तव में समस्याओं रूपी चुनौतियों का सामना करने और उन्हें सुलझाने में जीवन का अपना विशिष्ट अर्थ छिपा हुआ है। समस्याएं एक दुधारी तलवार होती हैं जो एक ओर हमारे साहस और बुद्धिमत्ता को ललकारती हैं तो दूसरी ओर वे हमें धैर्य और बुद्धिमानी भी सिखाती हैं। मनुष्य की प्रगति तथा उपलब्धियों के मूल में समस्याएं ही हैं। यदि जीवन में समस्याएं नहीं होतीं तो हमारा जीवन नीरस ही नहीं, जड़ भी हो जाता। प्रख्यात लेखक फ्रेंकलिन ने सत्य ही कहा था- ‘‘जो बात हमें पीड़ा पहुंचाती है, वही हमें सिखाती भी है।’’ यही कारण है कि समझदार लोग समस्याओं से डरकर दूर नहीं भागते, बल्कि उनके प्रति भी सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं।
दूसरी ओर समस्याओं से कतराने और उनमें छिपी व्यथा से बचकर निकल जाने की प्रवृत्ति ही मनुष्य की मानसिक रुग्णता का मूल कारण है। ऐसी प्रवृत्ति हम सभी में न्यूनाधिक रूप में विद्यमान है। कभी-कभी हम समस्याओं के बुद्धिमत्तापूर्ण समाधान करने के स्थान पर कल्पना लोक में विचरण कर उनसे छुटकारा पाना चाहते हैं। ऐसे कल्पना लोक में जो यथार्थ से, वास्तविकता से बहुत दूर होता है। इस कल्पना लोक में विचरण मानसिक रोगों का सूत्रपात है और समस्याओं में अंतर्निहित पीड़ा से कहीं अधिक दुखदायी, कहीं ज्यादा घातक होता है। यही स्थिति एक दिन हमें जीवन की संभावनाओं से दूर करते हुए धीरे-धीरे मृत्यु की ओर धकेल देती है।
हमें समझना होगा कि मनुष्य जीवन में तभी ऊँचा उठता है, जब उसे स्वयं पर विश्वास हो जाए कि मैं शक्ति सम्पन्न और ऊर्जा का केन्द्र हूँ। अन्यथा जीवन में आधा दुःख तो हम इसलिए उठाते हैं क्योंकि हम समझ ही नहीं पाते कि सच में हम क्या हैं? हमें जीवन को अमूल्य तथा कठिन मानते हुए ही जीना चाहिए और बिना समय, भाग्य, परिस्थिति, अवसर या व्यक्ति की प्रतीक्षा किए इस कठिन जीवन के संग्राम को ‘कुछ’ कर सकने के हौसले से जीतने के लिए अग्रसर होना चाहिए।
मानव जीवन में कितनी संभावनाएँ छिपी हैं, इसकी कोई सीमा नहीं है। पशु से लेकर देवत्व तक की सारी सीढ़ियाँ मानवीय चोले में से होकर गुजरती हैं जिसके मूल में चुनौतियां छुपी होती हैं और बिना चुनौती के सारी संभावनाएँ सोई रहती हैं। संसार में जितने भी अवतार या महामानव हुए हैं, वे सब अपने-अपने समय की चुनौतियों के उत्तर हैं। हर युग की अपनी चुनौतियाँ होती हैं, जन सामान्य इन चुनौतियों को न तो पहचान पाता है और न ही उनका सामना करने की सामर्थ्य जुटा पाता है। परन्तु जो उन चुनौतियों को पहचान कर उनका उत्तर देने के लिए मैदान में कूद पड़ता है, लोग उसे ‘महापुरुष’ कहकर स्वयं उसका अनुगमन करने को तैयार हो जाते हैं। संसार में ज्ञान-विज्ञान की जितनी भी उन्नति हुई है, उन सबके मूल में भी चुनौतियाँ ही हैं। प्रत्येक चुनौती अपने साथ प्रगति के अवसर भी लेकर आती है और इस प्रकार मनुष्य के जीवन में संभावनाओं का कोई अंत नहीं होता।
अनिश्चितताओं और संभावनाओं की परिपाटी जीवनभर चलती रहती है। जन्म, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और विवाह आदि कोई भी क्षेत्र हो, नई दिशा में कदम बढ़ाने से पहले कई सवाल खड़े होने लगते हैं। जब सब कुछ अनुकूल एवं परिपूर्ण होता है, तब भी अनिश्चितताएं हमारा साथ नहीं छोड़तीं। पर ऐसे में क्या हम काम करना छोड़ देते हैं? प्रसिद्ध प्रेरक वक्ता टॉनी रॉबिन्स कहते हैं - "यही क्षण होते हैं, जब कोई संभावनाओं के नए क्षितिज ढूंढ लेता है और कोई अपनी ही आशंकाओं में कैद होकर रह जाता है। कुछ तय और स्थिर न होना ही भौतिक व आत्मिक विस्तार की नई राहें खोलता है। यही अनिश्चितताओं की खूबसूरती है।"
अब यदि मृत्यु की बात की जाए तो मृत्यु और जीवन का संघर्ष बहुत पुराना है। जब से प्रकृति है, सभ्यता है, तब से यह संघर्ष है और इसमें जीवन ही विजयी हुआ है। इसी प्रकार सभ्यता का विकास और प्रसार हुआ है। मृत्यु लोगों के प्राण अवश्य ले लेती है किन्तु जीवन को वह पराजित नहीं कर पाती। यह समझना बहुत आवश्यक है कि जब तक जीवन है, तब तक संभावनाएं बनी हुई हैं किंतु मृत्यु के बाद जीवन का अंत हो जाता है और यदि जीवन की असफलताओं से हार मानकर कोई मृत्यु की ओर कदम बढ़ाता है तो वह केवल एक भयावह अंत की ओर ही जाता है। भले ही यह सत्य है कि मरने के बाद कोई समस्या नहीं रहेगी किंतु हमें यह भी समझना होगा कि मृत्यु किसी भी समस्या का अंतिम समाधान नहीं है। कहा भी जाता है कि मरना बहुत आसान है लेकिन जीना बहुत मुश्किल है और वास्तविक जीवन वही है जिसमें समस्याओं से जूझते हुए भी मनुष्य संघर्ष करना नहीं छोड़ता।
हम अपने आसपास दृष्टिपात करें तो समाज में न जाने कितने ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे जहां शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सामाजिक अक्षमताओं के बावजूद भी लोगों ने अपने जीवन में हार नहीं मानी और विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए भी सफलता की नई इबारत लिखी जिसके कारण वे दूसरों के लिए भी प्रेरणा स्त्रोत बने। कहने का तात्पर्य यही है कि जिन्होंने अपने जीवन को संभावनाओं से परिपूर्ण माना, वे लोग हर परिस्थिति का सामना करते हुए आगे बढ़े और इतिहास रच दिया। इसके विपरीत जिन्होंने जीवन की विषमताओं के आगे घुटने टेक दिए और चेतना शून्य या भावनाहीन होकर मृत्यु का वरण कर लिया, उन्हें कोई पूछता भी नहीं है। इसीलिए कहा भी गया है कि "जिंदगी जिंदादिली का नाम है, मुर्दा दिल क्या खाक जिया करते हैं।"
यह भी एक सर्वमान्य सत्य है कि जब भी हम मृत्यु के बारे में सोचते हैं, हमारी आत्मा तक काँप जाती है। भले ही मृत्यु एक शाश्वत सत्य है लेकिन जब भी हम इसे पास से देखते हैं तो हम भयातुर हो उठते हैं। इसके विपरीत हम जब भी अपने जीवन अथवा सुनहरे भविष्य को लेकर कुछ सोचते हैं तो हमारा मन प्रसन्न होता है जो यह सिद्ध करता है कि जीवन संभावनाओं से परिपूर्ण है जबकि मृत्यु एक भयावह कल्पना के सिवाय और कुछ भी नहीं है। जीवन है तो सब कुछ है अन्यथा सब व्यर्थ है। स्पष्ट है कि जीवन संभावनाओं से परिपूर्ण है और मृत्यु एक भयावह अंत। बस आवश्यकता तो इस बात की है कि हम अपने जीवन में संभावनाओं की ओर देखें और समझ सकें कि जीवन स्वयं में सार्थक रूप से जीने का अवसर है और दूसरों को ऐसा करने में सक्षम बनाने का भी। अन्ततः हम कह सकते हैं कि जीवन की असीम संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए हम ऐसा सार्थक जीवन जीएं जो दूसरों के लिए लाभदायक सिद्ध हो और प्रेरणादायी भी।