प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में उन्नति के शिखर पर पहुँचने का सपना देखता है और उसे पूरा करने का भरसक प्रयास भी करता है। हर कोई चाहता है कि उसके सपनों अथवा कल्पना के संसार में दिखाई देने वाली वस्तुएं उसके पास हों। मनचाहे वस्त्र, भोजन, घर, वाहन तथा अन्य सुविधाजनक वस्तुओं की इच्छा हम में से अधिकांश व्यक्ति रखते हैं किंतु यह भी एक कड़वा सत्य है कि जीवन में प्रत्येक व्यक्ति को सब कुछ नहीं मिलता। समाज में जो व्यक्ति अपने निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त कर आगे बढ़ जाता है, उसे सभी सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। ऐसे लोगों को हम सफल मनुष्य की श्रेणी में रखते हैं लेकिन यदि कोई व्यक्ति अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाता तो समाज उसे असफल मानता है। सार यही है कि इस संसार में सफलता ही व्यक्ति को सम्मान दिलाती है और असफल व्यक्ति को समाज सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता।
जब हम सफलता की बात करते हैं तो उसके साथ ही असफलता का डर भी बीच में प्रकट हो जाता है। यह तो निश्चित है कि सफलता की राह सरल नहीं है, उसमें अनेक प्रकार की बाधाएँ आती हैं। ये बाधाएँ कभी व्यक्तिगत, कभी पारिवारिक तो कभी सामाजिक या आर्थिक हो सकती हैं। यदि हमें सफल होना है तो इन बाधाओं से पार पाना होगा। ऐसे में कई बार यह होता है कि हम बाधाओं का सामना करने से पहले ही डर जाते हैं और अपने लक्ष्य की प्राप्ति से पहले ही यह डर हमारे मन पर हावी हो जाता है। इसी प्रकार किसी कार्य को कुशलता पूर्वक संपन्न करने में स्वयं को सक्षम न मानने का भय भी हमें घेर लेता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि सफलता कैसे प्राप्त की जाए? सफलता पाने के लिए सबसे पहले हमें असफलता के डर पर विजय प्राप्त करना अनिवार्य है।
दृढ़ता और लगातार प्रयास के साथ किया गया श्रम आपको सफलता की ओर ले जाने में मदद करता है।
एक सफल व्यक्ति कभी अनिश्चित नहीं होता और उसके आत्मसम्मान में कमी नहीं आती। सफल व्यक्ति हमेशा सद्गुणों और संस्कारों को अपनाता है। वह हमेशा श्रम की गरिमा में विश्वास करता है और निरंतर अभ्यास करता है। इस प्रकार सफलता हमारे मजबूत इरादों, कठिन परिश्रम, साहस, लगन, समय के सदुपयोग और आत्मविश्वास के बल पर ही मिल सकती है। हमारा सकारात्मक दृष्टिकोण हमारी ताकत है और चुनौतियों का सामना करने की शक्ति हमारी पूंजी। यदि हम इन शस्त्रों के साथ अपने लक्ष्य की ओर लगातार बढ़ते रहें तो सफलता अवश्य प्राप्त कर सकेंगे। यद्यपि सफलता प्राप्त करने में इन सभी तत्वों का अपना महत्व है किंतु यदि हम श्रम न करें तो सफलता केवल दूर की कौड़ी ही बनी रहेगी। इसलिए श्रम के अभाव में सफलता की कामना करना केवल एक कोरी कल्पना ही कहा जा सकता है।
यहाँ यह समझना भी आवश्यक है कि यदि हम अपने प्रयास में विफल होते हैं तो इसका अर्थ यह है कि हमारे द्वारा किये गए श्रम में कुछ कमी रह गयी है और अगर हम कुछ प्रयासों के बाद हार जाते हैं या फिर निराश हो जाते हैं तथा दोबारा कोशिश नहीं करते हैं तो हम कभी भी सफलता के पायदान पर नहीं पहुँच पाएंगे। इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि श्रम का सफलता में सर्वाधिक योगदान होता है।
अपनी असफलता के बावजूद श्रम के बल पर सफलता प्राप्त करते हुए समाज, राष्ट्र और विश्व में सफलता का कीर्तिमान स्थापित करने वाले व्यक्तियों से भी हमें प्रेरणा लेने की आवश्यकता है। हेनरी फोर्ड जो विश्वप्रसिद्ध फोर्ड मोटर कंपनी के मालिक हैं, ने फोर्ड कंपनी की स्थापना से पूर्व पाँच व्यवसायों में असफलता का मुँह देखा था। कोई और होता तो पाँच बार अलग-अलग व्यवसायों में असफल होने और कर्ज में डूबने के कारण टूट जाता लेकिन फोर्ड ने ऐसा नहीं किया और निरंतर श्रम के बल पर इतनी बड़ी कंपनी के स्वामी बन गए।
निरंतर श्रम के बल पर सफलता प्राप्त करने का सबसे बड़ा उदाहरण थामस अल्वा एडिसन हैं जो 1000 असफल प्रयोगों के बाद लाइट बल्ब बनाकर अमर हो गए। इतना ही नहीं, अल्बर्ट आइनस्टाइन जो 4 साल की उम्र तक कुछ बोल नहीं पाते थे और 7 साल की उम्र तक निरक्षर रहे, लोग उनको दिमागी रूप से कमजोर मानते थे लेकिन अपने सिद्धांतों के बल पर वह दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिक बने। अब जरा सोचिए कि यदि हेनरी फोर्ड पाँच व्यवसायों में असफल होने के बाद निराश होकर बैठ जाते, या एडिसन इतने अधिक असफल प्रयोगों के बाद आशा छोड़ देते और आइंस्टाइन भी खुद को दिमागी रूप से कमजोर मान कर बैठ जाते तो क्या होता? ऐसी स्थिति में निश्चित रूप से हम बहुत-सी महान प्रतिभाओं और अविष्कारों से अंजान ही रह जाते। इन सभी की सफलता का मूल मंत्र निरंतर श्रम ही है।
हमने अपने बचपन में सफलता और असफलता से संबंधित कई प्रेरणादायक कहानियां सुनी हैं, जैसे- कछुआ और खरगोश की, चींटी की। खरगोश के तेज दौड़ने की क्षमता के बावजूद भी कछुए ने हार नहीं मानी और अंत में वह अपनी मेहनत और लगन के बल पर खरगोश से भी आगे निकल गया। इसी प्रकार चींटी पहाड़ पर चढ़ने की लगातार कोशिश करती है और सावधानी से जंग जीत जाती है। इन सबसे यही सीख मिलती है कि हमें तब तक कोशिश करनी चाहिए जब तक हम सफल नहीं हो जाते। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि आप धीरे चल रहे हो या तेज, बस अगर आप निरंतर श्रम कर रहे हो तो कोई भी कारण आपके रास्ते का अवरोध नहीं बन सकता है।
देश-विदेश के महापुरुषों, उद्योगपतियों, राजनेताओं, समाजसेवियों तथा अन्य विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्य करने वाले व्यक्तियों की सफलता का मूल कारण यही रहा है कि वे कभी भी श्रम करने से पीछे नहीं हटे तथा असफल होने पर अपनी कमियाँ ढूंढ कर उन्हें दूर करते हुए सफलता का प्रयास किया और अंततः सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किए।
किसी भी उपलब्धि का आधार श्रम है। श्रम के बिना किसी भी क्षेत्र में स्थायी और पूर्ण सफलता अर्जित कर लेना असंभव है। श्रम की महत्ता का प्रतिपादन करते हुए एक नीतिकार ने कहा है, ''उद्यम करने से ही कार्यो की सिद्धि होती है। इच्छा करने या सोचते-विचारते रहने से नहीं। सोते हुए सिंह के मुँह में मृग अपने आप ही नहीं चले जाते।'' इस बात में कोई संदेह नहीं कि श्रम किए बगैर पेट की तृप्ति करना भी कठिन होता है। श्रम से खाद्य पदार्थ उपार्जन करने होंगे, फिर उन्हें पकाना पड़ेगा और हाथों से मुँह तक पहुंचाना पड़ेगा, तभी भूख मिट सकेगी। इसी तरह किसी भी कार्य के श्रम का मूल्य चुकाए बिना सफलता प्राप्त नहीं हो सकेगी।
संसार में जो कुछ भी ऐश्वर्य, संपदा, वैभव और उत्तम पदार्थ हैं, वे सब श्रम की ही देन हैं। श्रम में वह आकर्षण है कि विभिन्न पदार्थ व संपदाएं उसके पीछे खिंची चली आती हैं। श्रम मानव को परमात्मा द्वारा प्रदत्त सर्वोपरि संपत्ति है। जहाँ श्रम की पूजा होगी, वहाँ कोई भी कमी नहीं रहेगी। आचार्य विनोबा भावे के शब्दों में, ''परिश्रम हमारा देवता है, जो हमें अमूल्य वरदानों से सम्पन्न बनाता है। परिश्रम ही उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करता है।''
जीवन के उत्थान में परिश्रम का महत्त्वपूर्ण स्थान है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए, ऊँचा उठने के लिए, सुयश प्राप्त करने के लिए श्रम ही आधार है। श्रम से कठिन कार्य सम्पन्न किए जा सकते हैं। जो श्रम करता है,भाग्य भी उसका साथ देता है। श्रम के बल पर ही मानव ने उत्तंग, अगम्य पर्वत-चोटियों पर अपनी विजय पताका फहराई है। श्रम के बल पर मनुष्य चन्द्रमा पर पहुँच गया। श्रम के माध्यम से ही उसने समुद्र को लाँघा, खाइयों को पाट दिया और कोयले की खदानों से बहुमूल्य हीरे खोज निकाले। मानव सभ्यता और उन्नति का एकमात्र आधार श्रम ही है। श्रम के सोपानों का अवलम्ब लेकर मनुष्य अपनी मंजिल पर पहुँच ही जाता है।
प्रकृति के प्रांगण में झाँककर देखें तो चीटियाँ रात-दिन अथक परिश्रम करती हुई दिखाई देती हैं। पक्षी दाने की खोज में अनंत आकाश में उड़ते दिखाई देते हैं। हिरन आहार की खोज में वन-उपवन में कुलाचे भरते रहते हैं। समस्त सृष्टि में श्रम का चक्र चलता रहता है। जो लोग श्रम को त्यागकर आलस्य का आश्रय लेते हैं, वे अपने जीवन में असफल होते हैं। भाग्य पर केवल आलसी व्यक्ति ही आश्रित होता है।
परिश्रम जीवन का एक ऐसा मूल मंत्र है जो मनुष्य को प्रगति की राह पर ले जाता है। सकारात्मकता और कठोर परिश्रम के माध्यम से ही मनुष्य को जीवन में सफलता प्राप्त होती है। सुनियोजित परिश्रम करके मनुष्य किसी भी उद्देश्य या लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
श्रम चाहे शारीरिक हो या मानसिक, हर रूप में यह मनुष्य के लिए ज़रूरी है। श्रम जीवन को सही आकार प्रदान करता है। श्रम के कारण व्यक्ति समाज में उन्नति करता है और प्रगतिशील बनता है। श्रम करने से मनुष्य की आर्थिक स्थिति में सुधार होता है और वह समाज में यश एवं मान-सम्मान को प्राप्त करता है।
श्रम संसार में सफलता दिलाने का सर्वाधिक महत्वपूर्ण साधन है। श्रम से ही हम जीवन की इच्छाओं, आकांक्षाओं की पूर्ति कर सकते हैं। यह संसार कर्मक्षेत्र है। यहाँ कर्म करके ही सब कुछ पाया जा सकता है। गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में कर्म (श्रम) के विषय में कहा भी है-"सकल पदारथ एहि जग माहीं। करमहीन नर पावत नाहीं।"
प्रत्येक कार्य में सफलता का मूल आधार परिश्रम है। श्रम से जीवन को गति मिलती है। हमारे सामने चींटी का उदाहरण है। चींटी को श्रमजीवी कहा गया है। वह श्रम करके एक-एक दाना जमा करती है ताकि वर्षाकाल में उसे भोजन का अभाव न हो। हम भी श्रम करके भावी कठिनाइयों और शारीरिक बीमारियों से जूझने की हिम्मत जुटा सकते हैं। इसके विपरीत यदि हम श्रम की उपेक्षा करते है तो हमारे जीवन में एक ठहराव-सा आने लगता है। श्रम न करने वाले लोग वास्तव में आलसी होते हैं। जो श्रम करने से कतराते हैं, उन्हें यह भली-भांति समझनी चाहिए कि जीवन में श्रम के बलबूते पर ही सफलता पाई जा सकती है।
मानव जीवन में परिश्रम की महिमा असीम है। यही राजा को रंक और दुर्बल को सबल बना देती है। परिश्रमी व्यक्ति अपना भाग्य-विधाता और समाज का निर्माता होता है। जिस देश के लोग परिश्रमी होते हैं, वह राष्ट्र उतनी अधिक उन्नति करता है। चीन, जापान, अमेरिका आदि इसके उदाहरण हैं। प्रकृति भी हमें परिश्रम करने की प्रेरणा देती है। वस्तुतः श्रम मानव का सबसे बड़ा मित्र जबकि आलस्य सबसे बड़ा शत्रु है।
हमारे जीवन में ऐसा अवसर भी आता है जब हम कई बार प्रयास करने के बाद भी सफल नहीं होते और ऐसे में असफलता का भय हमें बुरी तरह घेर लेता है। तब हम या तो कर्महीन हो जाते हैं अथवा भाग्यवादी होकर हाथ पर हाथ धरे बैठ जाते हैं अर्थात श्रम करना छोड़ देते हैं। परिणाम स्वरुप सफलता हमारे लिए दूर की कौड़ी बनकर ही रह जाती है क्योंकि श्रम के अभाव में सफलता नहीं मिल सकती। असफल होने या कर्महीनता के भाव से घिरने पर हमें प्रसिद्ध कवि सोहनलाल द्विवेदी की इन प्रेरक पंक्तियों को ध्यान में रखना चाहिए-
असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो,नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।।
इस प्रकार स्पष्ट है कि श्रम किए बिना सफलता के बारे में सोचना केवल दिवास्वप्न ही कहा जा सकता है। श्रम के अभाव में सफल होना तो दूर की बात है, मानव का जीवन ही व्यर्थ हो जाता है। वास्तव में श्रम ही मनुष्य की जीवंतता का प्रत्यक्ष प्रमाण और मानव जीवन का सच्चा सौंदर्य है क्योंकि श्रम के द्वारा ही मनुष्य स्वयं को पूर्ण बना सकता है। श्रम जीवन में उत्कर्ष और महानता लाने वाला है, श्रम ईश्वर की सच्ची उपासना है। श्रम ही जीवन है, वही मनुष्य का सच्चा मित्र है। श्रम की इसी महत्ता को ध्यान में रखते हुए भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 'श्रमेव जयते' का नारा दिया था। निष्कर्षतः हम यह कह सकते हैं कि मानव जीवन में श्रम ही सफलता का मूल आधार है और श्रम के अभाव में सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती।