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एक गांव में एक प्रसिद्ध मूर्तिकार रहता था । उसे एक बेटा हुआ और वह बेटा भी बहुत अच्छी मूर्तियां बनाया करता था । पिता औऱ पुत्र दोनों मूर्तियां बना कर काफी अच्छा धन कमा लेते थे , साथ ही अपनी कला की वजह से दूर दूर तक उन का नाम भी था । दोनों को अपनी कला से प्यार था और वो काफी मेहनत से एक एक मूर्ति बनाया करते थे । दिन औऱ साल बीतते गये और उन का जीवन सुख से चलता रहा । लेकिन एक समय ऐसा आया जब पिता अपने पुत्र की मूर्तियों पर टिप्पणी करने लगा ।

हर बार पिता बेटे के काम में कोई ना कोई कमी निकाल ही देता था । पहले बेटा भी कोई शिकायत नहीं करता था और पिता की बात पर अमल करते हुए मूर्तियों में सुधार करते रहता था । इस लगातार सुधार की वजह से बेटे की मूर्तियां पिता से भी अच्छी बनने लगी और ऐसा समय भी आ गया जब लोग बेटे की मूर्तियों को बहुत पैसा दे कर खरीदने लगे जबकि पिता की मूर्तियां उस की पहले वाली कीमत पर ही बिकती रही । पिता अब भी बेटे की मूर्तियों में कमी निकाल ही देता था लेकिन बेटे को अब ये बात अच्छी नहीं लगती थी । अब बेटे को पिता की टिप्पणियां नागवार लगती थी ।

एक समय ऐसा आया जब बेटे के सब्र ने जवाब दे

दिया । और अगली बार जब पिता ने बेटे के काम में कमी निकाली तो बेटे ने जवाब दिया कि पिता जी आप तो ऐसे कमियां निकलते हैं जैसे आप कोई बहुत बड़े मूर्तिकार हैं मुझे नहीं लगता कि मुझे आप की सलाह की जरूरत है मेरी मूर्तियां पुर्ण हैं और उन में कोई कमी नहीं है । पिता ने बेटे की बात मान ली और सलाह देना बंद कर दिया । पिता जानता था कि उस के बेटे को सफलता मिल गयी है और वो सफलता उस के सर चढ़ गई है , और उस को घमंड भी हो गया है । लेकिन पिता ने बेटे को कुछ समझने के बजाय शांत रहना ही बेहतर समझा , पिता जनता था कि अब उस का बेटा उस की बातों को नहीं सुनने वाला है , लेकिन पिता ये भी जानता था कि वक़्त उस के बेटे को वो सब कुछ सीखा देगा जो उस के शब्द नहीं सीखा पायेंगे ।

कुछ दिन तक बेटा खुश रहा लेकिन ज्यादा वक़्त बीतने पर बेटे ने पाया कि लोग अब उस की मूर्तियों की ना तो पहले जैसी तारीफ करते थे ना ही पहले जैसे ऊंची कीमत पर उन को खरीदते थे । शुरू में बेटे को कुछ समझ नहीं आया लेकिन अंत में परेशान हो कर बेटा पिता के पास जाता है । बेटे ने पिता को अपनी समस्या के बारे में बताया । पिता ने बेटे की बात बहुत शांति से सुनी ।बेटे ने भी पिता की शांति भरी प्रतिक्रिया देख कर पूछ ही लिया कि पिता जी क्या आप जानते थे कि ऐसा होने वाला है । पिता ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया हां क्योंकि आज से कई वर्षों पहले मैं भी ऐसे हालात से टकराया था । बेटे ने सवाल किया कि फिर आप ने मुझे समझाया क्यों नहीं। पिता ने जवाब दिया क्योंकि तुम मेरे को समझना नहीं चाहते थे और ऐसा भी नहीं है कि मेरी सलाह की वजह से तुम्हारी मूर्ति बेहतर बनी हो लेकिन जब मैं तुम्हारी मूर्तियों में कमियां दिखाता था तब तुम अपनी बनायी मूर्तियों से संतुष्ट नहीं होते थे और खुद को बेहतर करने की कोशिश करते थे ।वही बेहतर होने की कोशिश तुम्हारी कामयाबी का कारण था ।बेटा थोड़ी देर चुप रहा लेकिन फिर सवाल किया तो अब मुझे क्या करना चाहिए ? पिता ने एक वाक्य में जवाब दिया , असंतुष्ट रहता सीख लो मान लो कि तुम में हमेशा बेहतर होने की गुंजाइश है यही एक बात तुम को हमेशा बेहतर होने के लिए प्रेरित करती रहेगी और तुम हमेशा बेहतर बनते रहोगे। बेटे को सफलता का सूत्र मिल गया था । अब वो अपनी मूर्तियों को और बेहतर करने में लग गया । थोड़ा समय लगा और उस की मूर्तियों में एक अलग निखार दिखने लगा और एक बार फिर लोगों की भीड़ उस की मूर्तियों को खरीदने आने लगी । बेटा अब काफी खुश रहने लगा और उस ने ये भी निश्चित किया कि अब वो अपने पिता की बताई बातों पर गौर करेगा और उन से सलाह मशवरा कर के ही कोई कदम उठाएगा ।

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