रूस और यूक्रेन के विवाद ने युद्ध का रूप ले लिया है और एक बार फिर से द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हुआ अमेरिका औऱ रूस का ध्रुवीकरण चर्चा में है । 24 फरवरी 2022 को रूस के राष्ट्रपति पुतिन के आदेश से रूस की सेना ने यूक्रेन के कई शहरी इलाकों में अपने लड़ाकू विमानों से सैन्य कार्यवाही शुरू की है । रूस ने इस सैन्य कार्यवाही को खुद की सुरक्षा के लिये उठाया गया एक जरुरी कदम बताया है । भविष्य में ये युद्ध क्या मोड लेगा इस के विषय में कुछ भी कहना मुश्किल ही है , परंतु एक शांतिपूर्ण विश्व व्यवस्था के लिए युद्ध का थमना जरूरी है । यदि अमेरिका भी इस में शामिल हो जाता है तो परिणाम काफी हानिकारक हो सकते है या शायद ये तृतीय विश्व युद्ध के समकक्ष भी हो सकता है ।

रूस जब 1991 में विघटित हुआ तो 15 नए देशो का जन्म हुआ था । इन्हीं देशों में से एक यूक्रेन भी था। यूक्रेन क्षेत्रफल के अनुसार रूस के बाद यूरोप का द्वितीय सबसे बड़ा देश है । रूस से अलग हो कर यूक्रेन ने यूरोपीय यूनियन से निकटता रखना शुरू कर दिया था । यूरोपियन यूनियन की अमेरिका और नाटो से निकटता जग जाहिर है । नाटो ने अपनी विस्तार योजना के तहत यूक्रेन को भी आपने गुट में शामिल करने का प्रयास किया है । यूक्रेन की नाटो औऱ अमेरिका से बढ़ती नज़दकी रूस के लिए एक सामरिक खतरे के समान है क्योंकि नाटो की सदस्यता से नाटो की पहुंच रूस की सीमा तक हो जाती । ये रूस के लिये एक खतरे है । रूस ने ये प्रयास किये थे कि पूर्वी यूरोपीय क्षेत्र की शांति व सुरक्षा के लिए यूक्रेन को नाटो से दूर रखा जाय परन्तु अमेरिका को ये बात रास नहीं आती थी । इस कि वजह से आज यूक्रेन रूस के हमले का शिकार हुआ है और न तो अमेरिका न ही यूरोप के किसी देश ने अब तक यूक्रेन की मदद के लिए कोई सेना भेजी है ।

रूस औऱ यूक्रेन पिछले कुछ सालों के विदेश सबंधो की बात करें तो 2014 में रूस ने क्रीमिया पर नियंत्रण लिया था । इस के कुछ समय बाद यूक्रेन के डोनत्स्क और लुहांस्क में रूस समर्थक अलगाववादीयों की गतिविधियों में तेजी आई थी और इन क्षेत्रों ने अपनी स्वायत्तता की घोषणा भी कर दी थी । इन टकरावों में फ्रांस और जर्मनी ने यूक्रेन व रूस में समझौता करवाने का प्रयास किया था किंतु ये टकराव समाप्त नहीं हो सका । बाद में रूस की पुतिन सरकार ने डोनत्स्क और लुहांस्क की स्वायत्तता को मान्यता प्रदान कर दी जिस को पश्चिमी देशों ने विद्वेषपूर्ण और अलोकतांत्रिक कदम माना ।

यूक्रेन के पड़ोसी देश पोलैंड , हंगरी और रोमानिया पहले से ही नाटो के सदस्य हैं । औऱ अमेरिका चाहता है कि यूक्रेन भी नाटो का सदस्य बन जये । जबकि रूस की नीति सदा यही रही है कि पूर्वी यूरोप के देश नाटो में शामिल न हों । रूस के लिये इन देशों को एक तटस्थ देश के रूप में रहना रूस की सुरक्षा औऱ विदेश नीति के लिए आवश्यक है । यूनाईटेड नेशन्स ने रूस औऱ यूक्रेन के विवाद को एक दुखद घटना घोषित किया है और युद्ध को रोकने की अपील की है ।

भारत ने अभी तक निष्पक्षता दिखाई है तो वहीं ऑस्ट्रेलिया ने रूस की सेनाओं द्वारा यूक्रेन में किये गए कृत्य को क्रूर कार्य बताया है । चीन ने दोनों देशों से जल्द से जल्द शांति कायम करने की मांग की है । यूरोपियन यूनियन ने इस को द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कि सबसे अंधकारपूर्ण घटना घोषित किया है । फ़्रांस ने दोनों देशों को बात चीत द्वारा समाधान किये जाने की बात कही है वहीं अमेरिका ने अभी तक रूस के विरुद्ध यूक्रेन को कोई सैन्य सहायता नहीं भेजी है किंतु अमेरिका ने रूस को उस कि सैन्य कार्यवाही का परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने की चेतावनी जरूर दी है ।

यह संघर्ष भारत के लिए कई चुनौतियों को ले कर आया है । रूस भारत के 60 प्रतिशत सैन्य उपकरणों का निर्यातक है । चीन की विस्तारवादी नीति से भारत की उत्तरी सीमाओं की रक्षा में रूस के सैन्य उपकरणों की प्रमुख भूमिका रही है । रूस और यूक्रेन के विवाद में भारत को काफी हद तक एक दुविधापूर्ण स्थिति में ला कर खड़ा कर दिया है । भारत को रूस के साथ अपने पुराने संबंधो के साथ साथ अपने सैन्य और व्यापारिक लेन देन को ध्यान में रख कर ही कोई प्रतिक्रिया करनी चाहिए ।

यूक्रेन और रूस के बीच जारी टकराव यदि जल्द नहीं थमा , तो इसका विश्व राजनीतिक और आर्थिक व्यवस्था पर हानिकारक प्रभाव होगा । लंबे समय में यह संघर्ष अमेरिका , एशिया और मध्य पूर्व के कई देशों में क्षेत्रीय संघर्षों को और जटिल बना देगा ।अर्थव्यवस्था की बात करें तो तेल और शेयर बाजार के मूल्य प्रभावित हो सकते हैं । रूस विश्व का तृतीय सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है यदि रूस पर पश्चिमी देशों द्वारा प्रतिबंध लगाया जाता है तो पश्चिमी बाजारों में तेल की कीमतें काफी बढ़ जाएंगी या वहाँ तेल की कमी भी हो सकती है जो एक ऊर्जा संकट में भी तब्दील हो सकता है । यूक्रेन विश्व का पांचवा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है । यूक्रेन की कृषि व्यवस्था यदि इस युद्ध से प्रभावित होती है तो एक फूड क्राइसिस भी उत्पन्न हो सकता है। यदि अमेरिका या कोई अन्य शक्तिशाली पश्चिमी यूरोपीय देश भी यूक्रेन के पक्ष में अपनी सेनाएं भेज देता है तो युद्ध से होने वाले विध्वंसकारी परिणामों की सहज कल्पना की जा सकती है ।

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