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प्रचीन काल में भारत में गुरुकुल शिक्षा पद्धति प्रचलित थी औऱ तब शिक्षक ज्ञान के बदले बहुत सामान्य सी गुरूदक्षिणा लिया करते थे । यह गुरू दक्षिणा कई बार बहुत थोड़ी सी रकम होती थी तो कई बार विद्यार्थियों को श्रम करके गुरु दक्षिणा चुकानी होती थी । यह वह समय था जब शिक्षा में बाज़ारवाद और रोजगार जैसे तत्व शामिल नहीं हुए थे । भारत में जब मुग़लों के शासन का दौर था तब मंदिर के साथ साथ मस्जिद भी शिक्षा के केन्द्र बन चुके थे । लेकिन अब भी शिक्षा में बाज़ार या रोज़गार जैसे तत्व नहीं आये थे औऱ शिक्षा विशुद्ध रूप से अध्यन अध्यापन का ही पर्याय थी । 

मुग़ल काल के बाद भारत दो सौ वर्षों तक ब्रिटिश शासन के अंतर्गत रहा औऱ ब्रिटिश भारत में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव हुए । हालांकि अंग्रेजों का मकसद शिक्षा के प्रसार के रुप में एक ऐसे भारतिय वर्ग को उत्पन्न करना था जो अंग्रेजी शासन का समर्थक हो । लेकिन अनजाने में ही ब्रिटिश काल में भारत में स्थपित स्कूलों और कॉलेजों से भारतीयों को न केवल पाश्यात्य जगत व संस्कृति इत्यादी का ज्ञान हुआ बल्की स्वतंत्रता सम्प्रभुता लोकतंत्र जैसी विचारधाराओं से भी भारत का विशाल जन समुह अवगत हो गया । भारत में अंग्रेजों के साशन के बाद कई दशकों तक कॉन्वेंट शिक्षा का बोल बाला रहा जो अंग्रेजों की ही देन थे । आज भी भारत में कॉन्वेंट स्कूल काफी लोकप्रिय है । कई अंतरराष्ट्रीय स्कूल और कॉलेजों ने भारत के अधिकांश विद्यार्थियों को आकर्षित किया है तब भी कॉन्वेंट स्कूलों की लोकप्रियता कम नहीं हुई है । कॉन्वेंट स्कूल और कॉलेजों को आज भी आधुनिक औऱ गुणवत्ता पुर्ण माना जाता है तो यह कई अर्थों में सत्य भी है ।

बीसवीं सदी में विश्व ने उदारीकरण और वैश्वीकरण का दौर देखा और भारत भी उस से अछुता नहीं रहा । इस दौर मे भारत मे उपभोक्तावादी संस्कृति ने अपनी जड़ें जमाना शुरू कर दिया औऱ भारत में सांस्कृतिक, सामाजिक और अर्थिक सभी पहलु पूरी तरह से एक अलग रूप में रूपांतरित हो गये । इन परिवर्तनों ने भारत के माध्यम वर्ग को सबसे ज्यादा प्रभावित किया । यदि शिक्षा में आये परिवर्तनो की बात करें तो भारत मे माध्यम वर्गों में उच्च और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए काफी ज्यादा जागरुकता आ गई थी । एक ओर जहाँ इस जागरूकता ने भारत में एक नया उच्च शिक्षित संपन्न वर्ग उत्पन्न किया तो दूसरी ओर इस ने शिक्षा का बाजारीकरण भी कर दिया । अब भारत में शिक्षा काफी महंगी हो गयी और शिक्षा संस्थान शिक्षा के साथ साथ एक व्यवसायकि केन्द्र भी बान गये । स्कूल स्तर की शिक्षा हो या कॉलेज स्तर की शिक्षा हो यह मंहगाई की वजह से सर्वसुलभ नहीं है ।

आज की बात करें तो स्कूली शिक्षा के लिए पहले विद्यार्थियों से रेजिस्ट्रेशन फीस लिया जाता है और दाखिले के बाद टयूशन फीस, अभिरुचि फीस और वाहन के लिए भी अलग से फीस देना होता है । कई स्कूलों में तो दाखिला लेने के लिए अलग से डोनेशन भी चलती है । स्कूल शिक्षा के साथ व्यवसाय भी कर रहे और अपने 'लोगो' वाले किताब कॉपी भी अधिक मूल्यों पर दे रहे हैं । स्कूलों ने ये अनिवार्य कर रखा है कि किताब कॉपी और यूनिफॉर्म इत्यादी एक निर्धारित किताब की दूकान से ही लिए जायें क्योंकि इन दुकानों से स्कूल वालों को अतरिक्त आय होती है । हालांकि एन सी आर टी इत्यादि सरकारी प्रकाशनो की किताबों के मूल्य कम होते हैं लेकिन ये किताबें केवल सरकारी स्कूलों में ही चलती हैं । कई स्कूलों का तो प्रकाशन समूहों के साथ भी टाई उप होता है और वे अपने छत्रों को केवल अपने प्रकाशकों की क़िताबें लेने के लिये बाध्य करते हैं ।

इतना ही नहीं पहले स्कूलों में व्यावसायिक शिक्षा , कला से संबंधित गतिविधियों जैसे कंप्यूटर, विदेशी भाषा, नृत्य इत्यादी के लिये विद्यार्थियों से अलग से कोइ रकम नहीं ली जाती थी लेकिन अब 'एक्स्ट्रा करिकुलर ' के नाम पर स्कूल ये फीस भी लेते हैं । ऐसे कई मध्यम और निम्न आय समुह के छात्र हैं जो इस फीस प्रणाली की वजह से या तो मनचाहे संस्थान से शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते या बैंक से लोन ले कर अतिरिक्त आर्थिक दबाव का वहन करने पर मजबूर हो जाते हैं । एसोचैम की हाल की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दस सालों में स्कूलों की कुल फीस में १६८% की बढ़ोत्तरी हुई है । यह स्थिति निश्चित रूप से गंभीर है ।

सरकारी स्कूलों की बात करें तो पिछले कई वर्षों तक लगातार यहाँ के छात्रो का प्रदर्शन औसत रहा है औऱ लोगों ने जो वास्तव में अपने बच्चों की शिक्षा को ले कर जागरूक थे, उन्होंने सरकारी स्कूलों के प्रति कोई रुझान भी नहीं दिखाया । जबकी दूसरी ओर प्राइवेट स्कूलों के परिणाम सरकारी स्कूलों से काफी बेहतर आते रहे हैं इसलिये जो विद्यार्थि प्राइवेट स्कूलों की फीस नहीं दे सकते थे वही सरकारी स्कूलों का रुख करते थे । सरकारी उच्च व तकनीकी कॉलेज की बात करे तो वहाँ फीस अब भी प्राइवेट संस्थाओं से काफी कम है और साथ ही इन कि शिक्षा भी प्राइवेट संस्थाओं से कहीं ज़्यादा बेहतर है । ऐसे सरकारी कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में आई आई टी, आई आई एम, दिल्ली विश्वविद्यालय औऱ जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय प्रमुख हैं । 

अभी कुछ माह पहले जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में फीस बढ़ोत्तरी के मुद्दे पर वहाँ के छात्रो ने काफी विरोध किया था । यदी इन संस्थाओं में भी भारी फीस का प्रावधान लाया गया तो शायद समाज का एक बड़ा तबका अच्छी शिक्षा से वंचित रह जयेगा । यदि भारत सस्ती शिक्षा उपलब्ध करवाये तो आज अपनि ६५% युवा अबादी के साथ भारत फिर से विश्व गुरू का दर्जा प्राप्त कर सकता है । भारत की सभी सरकारों ने जी डी पी का काफी कम हिस्सा शिक्षा के लिए आवंटित कर रखा है । विकाशशील देशो द्वारा शिक्षा के लिए किए गये जी डी पी व्यय में भारत १४३ वे नंबर पर है जिसे संतोषजनक नहीं माना जा सकता । अब समय आ गया है कि शिक्षा व्यय को बढ़ाया जाये । साथ ही बुनयादी शिक्षा के लिए प्राइवेट स्कूलों को 'पंच सितारा' बनने से रोकना होगा । इस में कई प्राइवेट स्कूल अपनी इमारत औऱ कैम्पस के साज सज्जा पे काफ़ी व्यय करते हैं औऱ इस खर्चे को विद्यार्थियों से फीस के रूप में वसूल करते हैं ।

पिछले कुछ वर्षो में कुछ राज्यों ने सरकारी स्कूलों में काफी बड़े परिवर्तन लाये हैं और इस से ना केवल वहां के छात्रों के प्रदर्शन में बहुत सुधार हुआ है बल्कि लोगों का विश्वास भी सरकारी स्कूलों पे फिर से कायम हुआ है। दिल्ली राज्य इस का सबसे अच्छा उदाहरण है जहां पिछले वर्ष सरकारी स्कूलों का प्रदर्शन भी कुछ जाने माने प्राइवेट स्कूलों के बराबर रहा था ।

भारत मे अधिकांश जनता माध्यम औऱ निम्न आय वर्ग में आती है । शिक्षा के महंगा होने से ये लोग शिक्षा से वंचित रह जयेंगे । स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि शिक्षा से ही व्यक्ति का पूर्ण विकास सम्भव है और तब ही देश का नव निर्माण हो सकता है । इसलिए सर्व सुलभ शिक्षा को गंभीरता से लेने का समय आ चुका है ,और इस दिशा मे सबसे पहले शिक्षा के मूल्य में कमी लानी होगी । जब भारत के युवाओं का भविष्य उज्ज्वल होगा तभी हम एक उज्ज्वल भारत का निर्माण कर सकते हैं ।

शिक्षा के लिए प्राइवेट संस्थाओं पर भी सरकार को फीस संबधी नियम लागू करने चाहिये ताकि यहाँ शिक्षा के नाम पर व्यसाय बंद हो । साथ ही सरकारी शिक्षा संस्थाओं में सरकारी सब्सिडी के दुरुपयोग पर भी रोक लगानी चाहिए । कुछ नए प्रयोग भी किये जा सकते है । जैसे जो भारतिय विद्यार्थी विदेश जा कर शिक्षा ग्रहण करते हैं उन के लिए अधिक से अधिक स्टूडेंट्स एक्सचेंज प्रोग्राम की व्यस्तता की जा सकती है । नासा के वैज्ञानिकों ने दावा किया था कि संस्कृत भाषा कंप्यूटर के लिये सबसे उपयुक्त भाषा है । इस दिशा में प्रयास कर के भी शिक्षा और अवसरों के नये द्वार खोले जा सकते हैं औऱ से शिक्षा मे महंगाई की मार को रोका जा सकता है । जापान , जर्मनी और रुस जैसे देशो मे उच्च और तकनीक शिक्षा मातृ भाषा मे उपलब्ध है जो वहां अपेक्षाकृत सस्ती शिक्षा होने का प्रमुख कारण है । इन देशों ने अपनी मातृभाषा मे ही पुस्तकें और सॉफ्टवेयर इत्यादि को ला कर शिक्षा के मूल्य को नियंत्रित रखा है । भारत भी इस से प्रेरणा ले कर शिक्षा के मूल्यों को कम कर सकता है ।

भारत के संविधान में जिस समाजवाद की बात कही गयी है उस को सर्व सुलभः शिक्षा द्वारा ही अर्जित किया जा सकता है । एक शिक्षित भारत मे ही सच्ची एकता व समानता सम्भव है जो भारत को जाती , वर्ग ,धर्म औऱ समूह से मुक्त कर देगी ।

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