मेरी जिंदगी की राह में
संभलते रहे ,बचते रहे, सभी से,
पर आज तक यह समझ नहीं पाए,
कौन अपना, कौन पराया, कौन मेरा है,
मेरी जिंदगी की राह में ,
सभी ने मुखोटे इतने पहने,
छल कपट बेईमानी के,
मैं निषछल समझ ना पाई,
कौन मेरा अपना है,
मेरी जिंदगी की राह में,
जिंदगी जैसे जैसे बीत रही,
मन में असंतोष बढ़ रहा है,
पर सोच सोच यही समझ आया,
प्रभु ही मेरा अपना और सच्चा है,
मेरी जिंदगी की राह में।

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