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आज का इंसान कल की चिंता का साक्षात स्वरूप बन गया है,
दौड़ रहा है,
खुद से जुदा, खुद से खफा
खुदसे ही लापता हो गया है,
आज का इंसान कल की चिंता का साक्षात स्वरूप बन गया है!
लिख रहा है कागज़ों पर कल की चिंताएं,
फिर सह रहा है हर पल मन की यातनाएं,
खुशियों की राहों को ढूँढते - ढूँढते, खुद तक पहुंचने की राह को भूल गया है,
इस क्षण के लिए भी वह धूल के समान हो गया है!
उसके लिए यह क्षण कुछ नहीं और इस क्षण के लिए भी उसका कोई अस्तित्व नहीं रह गया है,
आज का इंसान कल की चिंता का साक्षात स्वरूप बन गया है!
इसी क्षण में, इसी पल में छिपा सम्पूर्ण जीवन का सार है,
बिना फल की चिंता किए जो कर्म करता जाए,
उसी को जीवन का हर सुख प्राप्त है,
यही जीवन है और यही जीवन का सम्पूर्ण सार है!

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