नज़्मों को दोहराऊं,या खुद ही एक नज़्म बन जाऊ
या १ दफा इस आसमाँ में सबसे प्यारा तारा बनकर रात भर टिमटिमाऊ
हर मर्तबा जिस ख्वाब को देखती हूँ उसे यूँ अधूरा कैसे छोड़ दू
सीधे,सरल और करीब मार्ग के चलते घूमावदार मार्ग से कैसे मुँह मोड़ लू
एक दफा गुनगुनाए मेरे लिये भी कोई सुने खुदको जैसे मैं खुदको सुना करती हूँ
वो भी कुछ कहानियों की महफ़िल लगाए, जैसे मैं कहानियाँ बुना करती हूँ
अब मैं थोड़ा आगे बढ़ना चाहती हूँ मतलब की राहों में मतलबी बनकर बिगड़ना चाहती हूँ
मुरझाने को है जो प्यारी सी कली वो कहती है मैं एक नई शुरूआत से फिर खिलना चाहती हूँ
मुझे ये पता है कि औरों को दिखाने के लिये महज मेरी जज़्बात बची है
काश मैं कभी कहूँ उन लोगों को की मेरे पास फकत ये आखिरी बात बची हैं
बात, जो बातें लोगो को चुभ जाया करती हैं एक दिन यादो में वो उन्हें रूलाया करेंगी
सोचकर उन बातों को और करके कैद यादों में दुनिया एक दिन अपनी आहें भरेंगी
मेरे देह को पुष्पो से लादकर मेरी माँ के आंसुओं को उनसे छुपाया न जाए
उस दिन भी उनके गोद में सोने पे सुकून होगा मुझे एक आखिरी बार उस गोद में सोया दिया जाए उठाया न जाये
ऐ ज़िंदगी बस मेरी माँ की ख्वाहिशों को पूरा करने दे जिसने मुझपे अपनी जान वारी है क्यूंकि इस जहाँ में एक वो ही है जो मुझे समझी और सबसे ज्यादा मुझे प्यारी है
माँ की गोद मेरा सुकून और पैरों पे जन्नत का आराम है
बाकी सब पूर्ण विराम है...