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आज मैं क्या लिखुं, कुछ समझ ही नहीं आता है।
जिंदगी में मिलें कुछ हसीन पलों को जन्नत लिखूं,
या जिंदगी में मिलें बेहिसाब गमों को जहन्नुम लिखूं,
जिंदगी को जन्नत लिखूं या जहन्नुम लिखूं।।
कोई बन जाता है होंठों पर आई मुस्कुराहट की वजह,
तो कोई बन जाता है वजह आंखों को नम करने की,
उस मुस्कुराहट की वजह लिखूं या नज्ञ हुई आंखों की।
जिंदगी को मुस्कुराहट लिखूं या नहीं लिखूं।।
कुछ लोग पराई दुनिया से आकर, अपने बनजाते है,
और कुछ अपने पराए बनकर, पराई दुनिया में चलें जाते हैं,
उन अपनों से बने पराए को लिखूं या पराए से बने अपनों को लिखूं।
जिंदगी को पराया लिखूं या अपना लिखूं।।
कुछ ख्बाब़ सपनों में आकर हकीकत बन गये,
और कुछ हकीकत ख्बाब़ बन गये,
उन ख्बाबों से बनी हकीकत लिखूं या हकीकत से बने ख्बाबों को लिखूं।
जिंदगी को हकीकत लिखूं या ख्बाब़ लिखूं।।
नियति के खेल भी बड़े निराले हैं,
कभी दे देती है बिन मांगे सब कुछ,
तो कभी मांगे - मांगे जमीन भी नहीं देती,
जो बिन मांगे मिला वो लिखूं या,
मांगने पर जो जमीन भी न मिली उसे लिखूं।
जिंदगी को जन्नत लिखूं या मन्नत लिखूं।।
आज मैं क्या लिखु, कुछ समझ ही नहीं आता है।।