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कुछ ख्बाब ये आंखें सजाती है, अपनी पलकों में,
करती रात - दिन मेहनत उन‌ ख्बाबों के पूरा होने की आस में।
कई बार ये आंखें तड़पती हैं, जलती है, तरसती है, रोती है
पर कभी भी उस आस को कम नहीं होने देती,
जो सजी है उनकी आंखों में उन ख्बाबों के पूरा होने की।
यदि ये ख्बाब़ न होते आंखों में तो आंसुओं की अहमियत न होती।

गर मिल जाती मंजिलें, सबको‌ सिर्फ देखने से,
तो किसी को रास्तों की अहमियत न होती।
गर मिल जाता सुकुन सिर्फ चाहने से,
तो अपनों के बीच संघर्ष की जरूरत न होती।
गर मिल जाती खुशियां सिर्फ सोचने से,
तो गमों की अहमियत न होती।
गर मिल जाता अपनापन मांगने से,
तो अपनों की अहमियत न होती।

यू तो मिल जाता है परायों में कोई न कोई अपना सदा ही,
पर यदि अपनों में पराए न मिलते, तो परायों की अहमियत न होती।
 रूसवा तो कर जाती है जिंदगी, कई दफा, बहुत से मोड़ों पर,
पर यदि उन मोड़ों पे मंजिल न मिलती, तो रूसवाई की अहमियत न होती।

मिलते हैं बहुत दफा कांटों से भरी राहें ,
कुछ कांटे उन राहों के , चुभ जाते हैं पैरों में।
और कुछ न घुसकर भी जलन दे जाते हैं सीने में।
यदि इस दिल में प्यार न होता, तो सीने में जलन की अहमियत न होती।।

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