Image by VISHAL KUMAR from Pixabay

तू किरन है, रोशनी की।
तू साया है, खुशियों का।
तू श्याम है, स्वरूप में।
तू लीलाधर हैं, लीलाओं में।
तू मनमोहक है, सौन्दर्य में।
तू सुशोभित हैं, मोरपंख में।
तेरे हाथों में ठहरा सुदर्शन चक्र है।
तुझसे ही धुन मीठी बांसुरी की है।
तू है तो आस है , उम्मीदें हैं,
तू विश्वास है, हर एक भक्त का।।

तू कहलाता माखनचोर है, 
रणछोर भी तू ही कहलाता है ।
तू पारंगत हैं नृत्य में।
कलाएं चौसठ तुझसे ही है,
तू स्वामी है लक्ष्मी का।
तेरा एक रूप मोहिनी भी है।
हुआ जन्म तेरा कारागार में,
पला- बडा तू नंद-यशोदा की छांव में।
तूने बसाई द्वारिका नगरी, कहलाता तू द्वारिकाधीश है।
तेरे रूप है अनेक, अनगिनत।
शैय्या तेरी स्वंय शेषनाग है।।

तू प्रेम है, राधा का।
तू भक्ति है, मीरा की।
तू श्रृंगार है, रूक्मणि का।
तू आधार है, महाभारत का।
तू कृष्णा है, तू कुंज बिहारी है।
तू लीलाधर है, तू माधव मुरारी है।
तू राधे - राधे जपता है,
तू राधा में ही बसता है।।

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