कुछ इस तरह है रिश्ता हमारा, तेरा मुझसे और मेरा तुझसे।
कुछ खट्टी है तू, पर तूने मिठास कभी कम नहीं होने दी।।
तूने गिराया तो बहुत है, पर हर बार उठाया भी तूने है।
कुछ इस तरह है रिश्ता हमारा।
तूने दुख तो बहुत दिए, पर कभी सुख की कभी भी नहीं होने दी।
तूने लिया तो हमसे बहुत कुछ है, तो दिया ही उससे ज्यादा ही है।।
तूने पराए तो बहुत दिए, पर अपनों का साया भी कभी हटने नहीं दिया।
तूने छीन लिए हमसे हमारे काफी अपने, पर कुछ खास जो सिर्फ हमारे हो ऐसे अपने भी तूने ही दिए हैं।।
कुछ इस तरह है रिश्ता हमारा।
तूने मुश्किलें तो हर राह में दी, पर साए की तरह हमेशा साथ भी रहीं।
तूने ठोकरें तो बहुत दी, पर गिरने से पहले उठने की हिम्मत भी तूने ही दी।
कि तू है तो मैं हूं, मैं हूँ तो तू है।।
जितना समझती है तू मुझे, शायद कोई नहीं समझ पाया।
कुछ इस तरह है रिश्ता हमारा।।
ये रिश्ता है कुछ इस तरह, जिसे लफ़्ज़ों में बयां करना शायद मुश्किल है।
पर फिर जो करते हैं कोशिश उनकी कभी हार नहीं होती।
एक ऐसी ही कोशिश कर रही हूं मैं करने बयां शब्दों में
डोर अपने रिश्तो की, कि
कुछ इस तरह है रिश्ता हमारा।
जैसे पतंग और मांझे का।
जैसे मिठास और चाशनी का।
जैसे फूल और डाल का।
जैसे राह और मुसाफिर का।
जैसे धूप और छांव का।
जैसे बादल और बरसात का।।