बाबा.. जब मेरे हाथ पीले करना,
तो खुद पीले मत पड़ जाना।
दहेज जुटाते -जुटाते वैसे ही
आधी उम्र में बृद्ध नज़र आते हो
अब और नहीं बढ़ना।
जब मेरा हाथ उनको देना,
तो अपने अधिकार मत दे देना,
इतना जगह बचाकर रखना
कि मैं सिर उठा कर आ-जा सकूं।
बाबा!जब मुझे विदा करना,
तो मुझे पराया मत करना
क्योंकि औपचारिकता निभाना
मेरे बस की बात नहीं है।
मैं निर्भीक होकर अपना घर कह सकूं।
बाबा!जब भी आना मेरे पास
तो मेरे बाबा बनकर आना,
बेटी का पिता बनकर मत आना
नहीं तो हम विवश और लाचार हो जाएंगे।
बाबा ! मुझे चल-अचल सम्पत्ति
नहीं चाहिए
पर इतना तो जरूर करना कि जब
मैं आऊं तो मेहमानों जैसी न रहूं
बल्कि बिंदास होकर
अपनापन बांट सकूं।
बाबा! बेटियों के लिए
सबसे कठिन समय क्या होता है?
जानते हैं ?नहीं,न
माॅं -दादी कहती हैं तुम पराया धन हो,
ससुराल वाले रूठकर कहते हैं
अपने घर जाओ,
मेरे यहां तुम्हारा गुजारा नहीं।
बाबा! उस समय समझ में नहीं आता
कि हमारा घर कहां है?
हम कहाॅं जाएं?
इसी उधेड़बुन में कितनी
बेटियां जीते जी मर जाती हैं।
अतः बाबा! इतना स्थान जरूर
रखना कि मैं इस उलझन से परे रहूं।