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सच्चे लोग का यहां झूठा संसार है |
मतलब कि दुनिया में सच्ची सबकी बात है|
झूठा है सूरज यहां झूठी चांदनी रात है|
झूठो की इस बाज़ार में खरे मोल भाव है||
एक ने बेचा झूठ दूजे ने खरीद लिया|
दिखेंगे यहां बिकते हुए कितने घाव है|
है कितने हाथ जमीं पर टिके हुए|
और कितनो के सर पर पांव है||
झोपड़ी को छाया नहीं एक पेड़ की|
बंगले आगे छांव है|
बढ़ गए आगे शहर सारे|
पीछे छूटे गांव है||
आज भी आँगन की मिट्टी करती याद है|
कहाँ ठहरे वो दिन,कहाँ ठहरी उनमें वो बात है|
चिट्ठी से होती थीं बातें|
अब तो फोन बने आधार है|
छतो पर सोने को होते थे बिछौने|
अब तो बेड के नीचे ना होती बात है|
कहाँ गए वो दिन भी|
जहाँ देखो गाँव के बदले बसे बाजार है|
बढ़ गए आगे शहर सारे|
पीछे छूटे गांव है||
भीनी सी मिट्टी लगती थी प्यारी कितनी|
अब तो सडकों पर चलना सबके स्वभाव है|
पहले मिलती थी सब्जियाँ खेतों में|
अब तो पैकेटों में लगते भाव है|
बढ़ गए आगे शहर सारे|
पीछे छूटे गांव है||