बहारे चमन से, जिंदगी का कोई वास्ता न था
मैं मुसाफिर तो था, मगर मंजिल का कोई रास्ता न था||
हम किस किस से करते शिकायत किस किस की।
अब कौन था उनकी महफिल में जो बेवफा न था।
बहारे चमन से....
मैं ख्वाब का, ख्वाब मेरा, यूं हमशकल थे।
हम लूटे मुसाफिर, दूर तक कोई कारवां न था||
बहारे चमन से...
तूफानों की बस्ती में, मैं कागज की कश्ती लिए...
साहिल तलाशता रहा, कोई साहिल का निशां न था||
बहारे चमन से...
चूमकर आशमां हम चौदहवीं के चांद हो जाते।
हम उछले कई बार, मगर फलक पर कोई आशमां न था||
बहारे चमन से...
जिस्म की चादर ओढ़कर उसने जिंदगी गुजर दी...
आशमां पर खुदा, जमी पर कोई रहनुमा न था||
बहारे चमन से...