उम्र भर उठाया बोझ उस कील ने...
और तारीफ लोग तस्वीर की करते रहे..
ना शराब ना शबाब थी उस महफिल में..
फिर भी शब्दों से जाम अपने भरते रहे..
ना होश था हवाश था..
बस मिट्टी मे सजा एक ख्वाब था..
सामने दिलबर था..
बस मैं दिलदार था..
खुशबू महकी थी चमन बरस रहा था..
फिर भी मैं उसकी एक झलक को तरस रहा था..
अब बस दिल उसके ही दीदार को बेकरार था..
गवाह सारी कायनात थी..
वो मेरे और उसके बीच की बात थी..
मैं उसका का और वो मेरी है..
वो मेरी दुनिया है वो ही मेरी सौगात थी..