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हक़ खो दिया है उसने इंसान कहलाने का,
हक़ खो दिया है वह धरा पर अब जीने का।
पुंछ और सिंघ उसे नहीं है तो क्या हुआ,
लंबे-लंबे दांत उसके नहीं है तो क्या हुआ।
इंसान के भेष में कोई दुर्दांत दैत्य जैसा वह,
धरती पर विचरता कोई नर-पिशाच है वह।
नहीं है समझ उसे सामाजिक व्यवहारों का,
नहीं है ज्ञान उसे वैवाहिक रीति -रिवाजों का।
बहन-बेटी को देखकर लूटने जाता आबरु,
किस मुंह से अब ऐसे लोगों को वीर कहूं?
व्यभिचारी, दुराचारी, अनाचारी कहती दुनिया,
ऐसे बलात्कारी को फिर क्यों रखती दुनिया?
ऐसे ढोंगी इंसानों को समाज से अब दूर करो,
टुकड़ों में काट इन्हें यमराज को सुपुर्द करो।
जबतक ऐसे जीते रहेंगे समाज में गंदगी रहेगी,
इनके पाप के भार से माताएं सदा रोती रहेंगी।
आस्तीन के इन सांपों का सिर कुचलना होगा,
इनके खात्मे से ही दुनिया का भार कम होगा।

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