सांझ ढली हो, प्रेम गली हो,
मन प्रीत के दीप जलाता हो।
इक गंगा हो, इक जमुना हो,
तन मन संगम हो जाता हो।
प्रेम प्रणय का प्रथम सगुन हो,
मन मंद मंद मुस्काता हो।
एक गंगा हो, एक जमुना हो...
क्वार महीना, शुक्ल पक्ष हो,
शरद रात्रि की बेला हो।
ज्वार खेत हो, वहीं भेंट हो,
मन का मीत अकेला हो।
तन मन क्वांरे किशोरवय हों,
अल्हड़मन इठलाता हो।
एक गंगा हो.....
नभ में फैली चंद्रप्रभा हो,
चंद्रमुखी सी बाला हो।
महक रही हो रजनीगंधा,
प्रियतम भी मतवाला हो।
तन हो सुमन तो मन माखन हो,
मन, मन ही मन बौराता हो।
एक गंगा हो......
कंचन काया, चंचल मन हो,
तन मन का आलिंगन हो।
तन से तन का, मन से मन का
मधुरस प्रेम मिलन हो।
अंग अंग मधुबन सा महके,
यौवन रास रचाता हो।
एक गंगा हो एक जमुना हो...

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