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किसी परिंदे ने उड़ जब खोज कहीं जाना है|
कोई ना जाने फिर मिलना है या कहीं खो जाना है ||
मंजिल एक बहाना है|
या कश्ती जीवन की उसकी वही डूब जाना है|
क्या पता फिर उस परिंदे को कहाँ रह जाना हैं |
क्या कश्ती उसकी मंजिल है या रास्ता ही ठिकाना है||
आसमान उसकी राह है|
आसान ना उसकी चाह है|
उस नन्हें परिंदे को समय ना विराम है|
विरासत में मिला ना कोई आध्यात्म है||
माँ ने सेत उसे सिखाया है|
ग्रहण कर समान रूप बस उसी शिक्षा को उसने पाया है|
उसके साथ ही पंखों को हिम्मत से उठाया है|
उड़ने का साहस उसने कर पाया है||
अस्तित्व में ना कुछ रखा था|
नभ भी लगता अब सस्ता था|
ना अब कोई दस्ता था|
अब बस हिम्मत ही दिखती रस्ता था||
ऋतु भी ना अब दिखलाई परिंदे ने|
पँख फिर हिम्मत दिखा उठाई परिंदे ने|
बढ़ावा देने ना अब कोई आया था|
अन्य क्षेत्रों में सहयोग ना उसने पाया था||
जहाँ लगता ना साफ था कभी|
मंजिल तक पहुंचने का रास्ता ना पास था अभी|
तय करना ना आसान था|
पर परिंदा आँख खोल आसमान को देखने की एक बार हिम्मत दिखाता है|
पँख खोल खुले आसमान में उड़ जाता है||
नन्हें से परिंदे ने फिर भी असम्भव को सम्भव कर दिखाया|
विराम पर विराम चिन्ह उसने लगाया|
माना भले ही लौट कर ना आ पाऊँ|
बस एक बार खुल कर खुले आसमान में मन भरकर उड़ तो पाऊँ||