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हिंदी मां का परचम लेकर,
सारे जग में घूम गयी ,
हिंदी माता पर गर्वित हो,
पगलो जैसा झूम गयी।।
हिंदी ही तो भाषा केवल,
जो मीठी है प्यारी है।
महाविद्यालय में हिंदी की,
ऐसी क्या लाचारी है।।
अलंकार की देवी से जो,
अपना नाता तोड गए।
गिर पड़े है मुंह के बल वो,
सर अपना ही फोड़ गए।।
माता के मस्तक पर शोभित,
जैसे कोई बिंदी है।
सबसे प्यारी भाषा जग में,
मेरी अपनी हिंदी है।।
जिस भाषा को विश्व समूचा,
पूज्यनीय है मान रहा।
आर्यवर्त में जिस भाषा का,
एक अलग स्थान रहा।।
जिस भाषा में वेद रचे है,
कवियों ने पुराण लिखे।
जिस भाषा में मीराबाई,
तुलसी और रसखान लिखे।।
जिस भाषा की कविताओं में,
नव रस का आभास मिले।
कही मिले श्रृंगार ,वीर तो,
कहीं कहीं परिहास मिले।।
जैसे कल कल बहती गंगा,
सिंधु सतलज कालिंदी है।
सबसे प्यारी भाषा जग में,
मेरी अपनी हिंदी है।।
एक तरफ गौदान,गबन है,
एक तरफ है पंचवटी।
एक तरफ है महल अटारी,
एक तरफ है पर्ण कुटी।।
एक तरफ है सुमन यहां पर,
एक तरफ है कृष्ण सरल।
करुण कथा कहने पर सबके,
होते रहे नयन सजल।।
छंद अलंकारों से मिलकर,
काव्य सृजन कर बैठे है।
तन मन धन से मां हिंदी का,
हम अर्चन कर बैठे है।।
सिक्ख गोरखा जाट मराठा,
या फिर कोई सिंधी है।
सबसे प्यारी भाषा जग में,
मेरी अपनी हिंदी है।।