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प्रभो आगमन शुभ सुस्वागत तुम्हारा,
असर इस तरह से दिखा दीजिएगा।
पुनः आये त्रेता भरत की धरा पर,
बुराई को जड़ से मिटा दीजिएगा।।
रहे धर्म कुसुमित मनुजता सुरक्षित,
बहे ज्ञान गंगा न मन हीन कलुषित।
भरत से अमर प्रीति जो आपकी थी,
वही प्रीति सबको सिखा दीजियेगा।
बढ़े नित्य उद्यम हृदय युक्त श्रम हो,
रहें स्वस्थ विलसित कहीं भी न भ्रम हो।
बिना घूस के ना करें काम कृप्या,
उन्हें आप खुद ही सजा दीजियेगा।।
बहन बेटियां पढ़ सकें मुक्त मन से,
सुरक्षित रहे भ्रूण वात्सल्य धन से।
कभी आंच आए अगर अस्मिता पर,
कन्हैया के जैसे बचा लीजिएगा।।
करे व्याधि बाधित नहीं अब किसी को,
जिएं उम्र भर आस ऐसी सभी को।
जियें उम्र वो जो विधी से मिला है
खुले हाथ संजीवनी नाथ रखना,
पड़े जब जरूरत पिला दीजियेगा।।
बढ़े ज्ञान विज्ञान में देश अपना,
अधूरा रहे ना किसी का भी सपना।
सनातन ध्वजा विश्व में नित्य लहरे,
प्रभो रीति ऐसी चला दीजिएगा।
रहे वृद्ध सम्मान सुत नाचिकेता,
लिये भाव सेवा चुने जाय नेता।
मिटे बाल श्रम का तिमिर 'शेष' जग से,
प्रभो दीप ऐसा जला दीजिएगा।।