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"वो शब्द जो... प्यार की भाषा का एक नाम है,
हम जैसे लिखने वालों पर एक एहसान है,
बेजान हो कर भी खुद में इतनी जान रखते हैं।
ना जाने कितने रिश्ते इसकी कमी से भिखरते हैं।
अनोखा जादू सा होता है इन शब्दों में,
कभी रौशनी की तरह तो कभी आग से होते हैं लम्हों में।
जादूं सा असर है इनमें, कुछ शब्द तोड़ दे घर,
या फिर बर्बाद मकानों से फिर खड़े हो जाए शहर।
पुकार है दिलों की, आवाज़ है मन की।
आओ चलो... ज़िक्र करें इन शब्दों की।
ये शब्द जो न दिखने वाले एहसास और ज़ख्म देते हैं।
कभी जुदा ना होने वाले रिश्ते भी हुए हैं अब अनजान से।
आशियानों को राख कर दे अपनी चीख से,
हँसमुख इंसान से उसकी मुस्कान छीन ले।
मायूस घड़ी में ये एक सहारा देते हैं।
इनसे ही तो हम, लिखने वाले बने।
ये नज़्म-ए-शायरी, कहानी का रूप है।
इन शब्दों से ही बना लफ़्ज़ों का संगीत है।
ये दुःख, सुख और रिश्तों का प्रतीक हैं।
इन शब्दों की कृपा से प्यार हमेशा सटीक है।