शिव शंभु गंगाधर, योगी वेशधारी, गौरी के संग कैलास निवासी न्यारी।
डमरू की ध्वनि से जग सारा जागे, भस्म रमाए तन पर, काम मोह त्यागे।
माधव मुरलीधर, राधा के प्यारे, वृंदावन की गलियों में लीला अपारे।
मोहन के सुर में बँध जाए जीवन, हरि नाम सुनते ही नाचे धड़कन ।
शिव तांडव से करते सृजन, संहार, माधव की बंसी लाए प्रेम अपार।
एक योग में लीन, एक रास में मगन, दोनों हैं सच्चिदानंद के चिरतन।
शिव हैं मौन में, माधव हैं राग में, फिर भी दोनों ही रमते हैं त्याग में।
शिव से शांति, माधव से प्रीति मिलती, दोनों की लीला अति दिव्य, अति मिलती।
जब शिव ने रचाई हरि की स्तुति, तब ब्रह्मा भी हुए नतमस्तक उस भक्ति।
शिव के हृदय में माधव का वास, माधव के गीतों में शिव का प्रकाश।
जय शिव शंकर, जय गोपाल, इनकी कथा है प्रेम का लाल।
दो रूप, एक ज्योति अनंत, शिव माधव की लीला अति पावन, अति संत।