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मंद मंद पवन पर, तिरंगा अपनी बोले बोल,
बोले सैनानी याद है क्या तुझे वो दौर?
दौर वो जहां लहू, उफान, पीड़ा से मिट्टी सिंची,
सिंची दिवारो की रूह, गोलियों से भीगी,
भीगी अमृतसर की सड़क भीगी, मिट्टी लाल जो भावे,
भावे फिरंगी के सोना भावे, पीर के पहाड़ बनावे,
बनावे पंत पपीहा बोले, तोड़ बेड़ियाँ भगत
भगत कम अध्याय जीवन के, जोड़ नए खंड भगत ,
भगत खंड खाली नहीं कभी वेदना की काली रात की
की मुल्क की सवेरे भी लहू की प्यासी,
प्यासी नदी अब कितना बोले, इत्ने लाश छुपा कर सोच,
सोच कर मंद मंद पवन पर तिरंगा अपनी बोले बोल।

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