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अवकाश प्राप्त करने के बाद अब करने को कुछ रह नही जाता. बेटा-बेटी अपने गृहस्थ जीवन में व्यस्त हैं. मेरी पत्नी अपने जीवन का हिस्सा काट कर भगवान को प्यारी हो चली हैं. उम्र ने असर दिखाना भी शुरु कर दिया है. पेंशन की आधी से अधिक राशि दवा-दारु पर खर्च हो जाती है. कोई बुरी लत नहीं बस पान खाने का शौकिन हूं पर मुआं दांत रहम की भीख कई बार मांग चुका है. रात के सन्नाटे में अचानक उठ बैठता हूं. फिर सोने की असफल कोशिश करवट दर करवट बदल किसी प्रकार रात काट लेता हूं. व्यस्त रहने की कोशिश के लिए टी.वी. माध्यम तो रहा लेकिन ज्यादा दिन तक सफल ना रह सका. धार्मिक चैनलों और कुछ बाबाओं की कारगुजारीयों से मोह भंग हो चला है. एम टी.वी. मेरे उम्र वालों के लिए नहीं. 

और अपने को पारिवारिक चैनल बताने वाले घूसपैठिये की बात कहूं तो सिर्फ द्वेष, बदला जैसे कार्यक्रम एक प्यारी सूचना द्वारा “कार्यक्रम के सारे पात्र और घटनाएं काल्पनिक है….” इतिश्री कर पल्ला झाड लेते हैं. आज सुबह की अखबार पढते वक्त अचानक मुझे अपने टिन के बक्से का ख्याल आते ही मैं उसे कबाड घर से बाहर निकाल लाया. उस बक्से में जवानी के दिनों की संजोयी गयी चीजें 30-35 वर्ष पीछे की यादों को ताजा कर दी. कुछ अखबार की कतरनें, दो-चार दिनमान मैग्जीन की प्रति और दो पोस्टकार्ड पडे थें. जिसकी आज कोई प्रासंगिकता नहीं रही. कॉलेज की पढाई करते वक्त मैंने सोच रखा था कि मै एक लेखक बनूंगा जिसकी नींव मैनें डाल दी थी. गवाह के तौर पर मेरे पास वही कतरन तथा दिनमान की प्रति मौजूद है. भला मै उस पोस्टकार्ड को कैसे भूलूं जिसमें संपादक नें मेरे लेखन की प्रसंशा की थी और साथ काम करने का निमंत्रण भेजा था. लेकिन पिताजी के दबाव के कारण मैं अपने सपने भूल उनके सपने पूरा करने की राह पर निकल पडा.

चलचित्र की भांति जवानी के वो दिन आंखों के सामने तैरने लगे. थोडी देर के लिए लगा कि मै अपनी जवानी दूसरी बार जी रहा हूं. ठीक उसी तरह बक्से में कतरन को रख मैं पलंग पर बैठ गया. शरीर स्फूर्ती, जोश, उमंग से भर ऊठा था. बुढापे में लोग कहते हैं कि बुढा सठीया गया है. मै सठीयाये खोपडी ने सोच लिया था कि कुछ लिखूंगा. काफी सोचा पर आकलन ठीक ढंग से नही कर पा रहा था. काफी विचारने के बाद मैने लिखना शुरु किया जो कुछ इस प्रकार थे – कृषि मंत्री, वित्त मंत्री अपने वरिष्ठ अधिकारियों से घीरे वातानूकूलित कमरे में बैठ देश में बढ रही महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और कालाधन पर चर्चा भले ही करते हों पर निदान हमेशा सिफर रह जाता है. सिर्फ महंगाई के ताजा आकडों की बात करें तो खाद्य मुद्रास्फीती 9.94 हो गई, सब्जियों के दाम 30.57 प्रतिशत तक बढें, जिस देश में दूध की नदियां बहा करती थी, वही आज दूध 15.29 प्रतिशत तक दाम बढ गये है. आने वाले समय में शायद दूध की तसवीर देख ही संतुष्ट होना पडे. भूखे लोग क्या आंकडे चबाएंगे? हमारे देश की सारी जिम्मेवारी उन लडखडाते बूढे नीति निर्माता के कंधो पर है जो देश को चला रहे हैं. तो देश लडखडायेगा ही, यह उम्र तो भजन कीर्तन करने का है. लाल-पीली बत्ती पर बैठने वाले, अवसरवादी एवं भौतिकवादी लोग भूख का असली चेहरा भला क्या जानें. उन्हें क्या आन पडी है अपने अन्दर उपस्थित सकारात्मक शक्तियों को संकल्प से जोडने की. भारतीय कहने के बजाए हमें मराठी, गुजराती, बिहारी कह कर कौन आपस में लडा रहा है. 

“हिन्द देश के निवासी सभी जन एक है….” की गुंज कहां गई. 1964 में हरित क्रांति के जनक स्वामीनाथन ने हरित काल का बीज बोया था. उस समय इतनी उन्नत टेक्नोलॉजी भी नहीं थी. 1947 के पहले का इतिहास अकाल, सूखा और अनाज संकट का इतिहास माना जाता था. साठ सत्तर के दशक में सरकार के एक छोटे से कार्यक्रम से विशाल जनअभियान बन गया. इसके बाद जो कुछ हुआ वह इतिहास के स्वर्णाक्षरो मे लिखा जा चुका है. जिसे हरित क्रांति के नाम से जानते हैं. आज 3जी, 4जी सुविधा सम्पन्न लोगों के लिए है, क्या नीति ऐसे लोगों के लिए ही बनने लगे है. आम आदमी के हाथ में तो बस वादा, भरोसा थमा दिया जाता है. जिसे वो पांच साल तक ले कर झूलते रहें. उद्योग कहता है भूख मिटा देंगे, रोग मिटा देंगे, ऊर्जा की समस्या हल कर देंगे वह भी कम लागत में. लेकिन वर्तमान दृश्य से हम सभी परिचित हैं. एक बात और आज के समय में मीडिया का महत्वपूर्ण स्थान है. मीडिया सामाजिक परिवर्तन का औजार रहा है और रहेगा. बहुराष्ट्रीय कंपनीयों ने पहले से ही चारा चुग्गा डाल रखा है. उन्हे ज्यों का त्यों छाप देना और दिखा देने भर से ही दायित्व पूरा नहीं होता. उनके गुण-दोष को भी परखना होगा. शिकारी आएगा, जाल बिछायेगा तुम उसमें फंसना नहीं.

बस, अब मन थक चुका है एक कप चाय की तलब जाग ऊठी है. बहू को मै कह नहीं सकता क्योंकि इसकी एक अलग कहानी है. तसल्ली है की मैं अपनी दूसरी पारी की शुरुआत कर चुका हूं. सच है धीरे-धीरे मैं व्यस्त रहना सीख जाऊंगा. आखिर मैनें बुढापे की लाठी जो खोज ली है.

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