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चाहता था उद्धार, पहुँचा हरिद्वार,
वेग माँ का प्रचंड था तेज गंग धार,
बचपन से इच्छा थी पहुँचूँ हरिद्वार,
किया गंगा मे स्नान तीव्र थे जलधार !!
धीरे ही उतरा था सीढ़ी किनारे भीड़ अपार,
सिकड़ पकड़ा था, सोचा डुबकी लूँ पांच बार,
खिसका थोड़ा पाँव सो गया गंगा मे मजधार ,
फिर गंगा ने दिया वेग का धक्का जोरदार !
पकड़े पकड़े सिकड़ से खड़ा हुआ मिला आधार,
वरन सिकड़ न होता तो मैं बह जाता गंगा पार,
बीस सेकेंड का क्षण वो, रिश्तों संग दहशत की मार,
पता न चला हमे भी कैसे हुआ मेरा फिर अवतार !!
सीख मिली बड़ी, उत्श्रृंखल न बनो जाकार हरिद्वार,
अद्भुत तेज है बहती हुई माँ गंगा की धार,
माँ मनसा की मन्दिर पहाड़ी पर अति मनुहार,
उड़न खटोले से पहुँचे ,माँ को किये अर्पित पुष्पाहार !!
हर की पौड़ी मे मेले में भीड़ की थी भरमार,
हरिद्वार के दर्शन,स्नान ,आरती से किया माँ का आभार,
महिमा माँ गंगे की मानो होती हैं अपरंपार,
कपिलमुनी ने पहुंचाया माँ गंगा को गंगासागर गंगा के पार !!!

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