ढलते सूरज की हल्की किरणे
और रिमझिम बरसती बूंदें
खूबसूरत सांझ
और गीली मिट्टी की भीनी भीनी खुशबू
मेरी पूरे दिन की थकान को मिटाने के लिए काफ़ी थी,
अपनी बाल्कनी पे बैठा
मैं हल्की बूंदों का लहज़ा जी रहा था
तभी एक ध्वनि ने मेरा सारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया,
एक सुरम्य सी ध्वनि,
कोई अपनी बाल्कनी पे खड़ा गुनगुना रहा था
मानो अपनी मधुर ध्वनि से मेरी नफ्स को अपनी ओर बुला रहा था,
टहनियों को हटाते हुए वो थोड़ा आगे आई
पायल की छनछनहट थमी
और मानों जैसे मेरी धड़कने भी साथ थम गईं हो,
हल्के गीले बालों को झटकती वो
मेरी उंस बड़ा रही थी,
ये सच था या सिर्फ़ एक मृगतृष्णा
जो मेरी रूह को इतना तड़पा रही थी,
उसे पास से देखने के लिए मेरा व्याकुल मन मुझे और आगे ले चला,
और गीली ज़मीन ने कब मेरे पैरों को खिसका दिया
पता ही नही चला,
जैसे तैसे मेने खुद को संभाला और उसकी ओर देखा
इस बार वो भी मेरी ओर देखकर मुस्कुरा रही थी,
तभी बादल की गरज के साथ
ये खूबसूरत स्वप्न एक बार फ़िर टूट गया
और उससे मिलने का मेरा अरमान फ़िर अधूरा ही रह गया।